गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

ग़ज़ल , अपना कहने का अधिकार हार गई

      नमस्कार , आज सुबह मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा | एक जरा सा सलाह है आपके लिए यदि आप वर्तमान खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल को पढ़ने का पुरा आनंद आएगा |


अपना कहने का अधिकार हार गई 

आज से वो मेरा ऐतबार हार गई 


जिनके सीने की नाप है 56 इंच 

हैरत है कि उनकी सरकार हार गई 


सब ने कहा ये जीता है वो जीता है 

मेरी नजर में खेतों की बहार हार गई 


जश्न की रौनक उस चूल्हें पर कहां है 

जिस पर आग भी हुई लाचार हार गई 


अब कौन इतनी हिम्मत दिखाएगा यहां 

मुल्क की आत्मा है बीमार हार गई 


यही तो सियासत है तनहा तुम क्या जानो 

ऐसा तो नहीं है कि पहली बार हार गई 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 18 नवंबर 2021

ग़ज़ल , एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

एक दिन मैं सबको चौका दूंगा

उस दिन में जिंदगी को धोखा दूंगा

मेरी मौत पे शायद होंगे सब परिवार के लोग इक्ट्ठा
मैं मरकर ही सही सबको मिलने का एक मौका दूंगा

गर कोई करे जुरअत तुम्हें जबरदस्ती छूने की
तुम मां काली भी हो, मैं मेरी बेटी को ये समझा दूंगा

वो करती है गुमान मुझे छोड़ जाने का 
उसे मैं आसमां से एक परी बुलाकर दिखा दूंगा

अगर रखेगा खयाल वो तुम्हारा ए दोस्त
खुदा क़सम मैं मेरे रकीब को भी दुआ दूंगा

✍🏻Rahul Jerry

October 11 , 2021

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

ग़ज़ल , कलतलक हम भी उनकी तारीफ़ मुंहजबानी करते थे

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


कलतलक हम भी उनकी तारीफ़ मुंहजबानी करते थे 

जब तक वो दिल में मोहब्बत की बागवानी करते थे 


आज हम जहां के गुलाम शहरी कहे जाने लगे हैं 

एक दौर में हमारे पुरखे यहीं हुक्मरानी करते थे 


हयात की हकीकत को छुपाना क्या बताना क्या 

ज़िन्दगी के शुरुआती मरहले में हम चाय पानी करते थे 


अब के बच्चों में बड़े होनी कि इतनी जल्दी है की रब्बा 

तनह हम इनकी उम्र में थे तो नादानी करते थे 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , दरिया के साथ कहीं समंदर नही जाता

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


दरिया के साथ कहीं  समंदर  नही  जाता 

आंखों के साथ चलकर मंजर नही  जाता 


हर इंसान में होता है मगर कम या ज्यादा 

तमाम कोशिशों के बाद भी बंदर नही जाता 


ख्वाबों ने बना दिया है दिवालिया मुझको 

हर इंसान में रहता है सिकन्दर नही जाता 


तमाम लोग बोलते हैं झूठ किस मक्कारी से 

इसका सच मेरे हलक के अंदर नही जाता 


आखिरत का खौफ़ नही है तनहा मुझको 

रुह जाती है आसमान तक पंजर नही जाता 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्क्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा 

और पूछ रहे ह़़ो किसको नही देखा 


चमेली को गुलाब समझ बैठे हो तुम 

यकीनन ही तुमने उसको नही देखा 


हकिकत ये के सिक्के के दो पहलू हैं

इल्जाम से पहले इसको नही देखा 


कशीदा पढ़ रहे हो हूरों की शान में 

मतलब ज़मीन पर उसको नही देखा 


कुछ कहने से है चुप ही रहना बेहतर 

तनहा जबतक तुमने खुदको नही देखा 


    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए

      नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |


मुस्कान पर दिल दिया आह  में मर गए 

कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए 


खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं 

तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए 


तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना 

हम  एक  मोहब्बत के गुनाह  में मर  गए 


पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक 

आज से   तुम  मेरी   निगाह में   मर  गए 


इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या 

कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए 


कातिल से तो तुम बच निकले तनहा 

हम तो  अपनों  की पनाह में मर गए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 6 अक्तूबर 2021

ग़ज़ल , मै ये बात कभी नहीं बताता उसको

     नमस्कार , आज कि रात मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज सुबह आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 


मैं ये बात कभी नहीं बताता उनको 

मुहब्बत में लड़ने का हुनर नही आता उनको 


कहां कहां भटका हूं पानी की तलाश में 

वो मेरी प्यास समझते तो बताता उनको 


कितने जख्म दिए हैं उनकी बेरुखी ने 

दिल कोई चीज होती तो दिखाता उनको 


या खुदा उन्हें कोई तो गम दे रोने को 

मेरी चाहत वो मेरे कंधे पे रोते तो हंसाता उनको 


वो आज आसमान में बादल है नही तो 

चांद को उँगलीयों से छुके दिखाता उनको 


मलाल ये के असल में वो तो वो कोई हैं ही नहीं 

जब भी हम तनहा होते सताता उनको 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 9 सितंबर 2021

कविता , रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

रोज ढलता है सूरज और मेरी एक प्याली चाय 


विश्वास ही नहीं होता मुझको 

आप को भी नही होता ना 

किसी को भी नहीं होता होगा 

आखिर किसी को हो भी कैसे सकता है 


कि कोई सूरज नाम का चीज है 

जो रोज सुबह जन्म ले लेता है 

और कुछ घंटे जीवित रहता है 

फिर मृत्यु को हो जाता है 


और फिर अगली सुबह जीवन पाता है 

यानी ना तो ये पुर्णत: अमर है 

और ना ही नश्वर 

इसे किसने इस काल चक्र में फंसाया है 

किसी मनुष्य ने यक्ष ने गंधर्व ने या के ईश्वर 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक महल और मैं

      नमस्कार , लगभग हफ्ता भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक महल और मैं 


एक महल की छायाचित्र देखकर 

स्वयं को उस महल में कल्पना करने लगा 

वो सोने के आभूषण वो नौकर चाकर 

वो महंगें वस्त्र वो आलीशान विस्तर 

बहुत सी लंबी लंबी गाड़ीयां 

वो हवाई जहाजों पर सवारीयां 

कितने होंगे स्वादिष्ट पकवान 

तभी एकाएक वापस लौट आया ध्यान 

आज घर में सब्जी क्या बनी है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , एक कच्ची मिट्टी का घडा

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक कच्ची मिट्टी का घडा 


एक कच्ची मिट्टी का घडा 

मुझसे ये कहते हुए रो पड़ा 


कि मैं टूट जाउंगा 

मुझे विश्वास मैं टुट जाउंगा 

उस पक्की मिट्टी के घडे से 

बराबर करते हुए 

उससे खुद को बेहतर 

साबित करने का युद्ध लडते हुए 


उसकी आंखों से 

अश्रु धारा बहने लगी 

और वह अधीर होते हुए 

सीसक कर बोला 

मैं कहां ये युद्ध लड़ना चाहता हूं 

वास्तव में यह युद्ध ही नही है 

यह तो मेरा अपना अस्तित्व 

बचाने का प्रयास है 

मुझे विश्वास है कि मैं नही टुटुंगा 


क्योंकि अगर मैं टुट गया 

तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व 

कच्ची मिट्टी के घडों का 

लोग यह कहकर नही खरीदेंगे की 

कच्चे घडे तो कमजोर होते हैं 

ये बहुत जल्दी टुट जाते हैं 

और फिर कुम्हार हमें 

बनाएगा ही नहीं यह कहकर 

ये कच्चे घडे तो बिकते ही नहीं 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , पंजाब की तो बात ही निराली है

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


पांच नदिया बहती है जिसमें 

वो पावन भूमि जैसे एक थाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


अमृतसर का अमृत सर है 

गुरुग्रंथ का यह पावन घर है 

गुरुवाणी का प्रभाव सब पर है 

भाषा तो मानो शहद की प्याली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 


भांगडा़ , गिद्दा सब की शान हैं 

दसों गुरुओं पर जन-जन को अभिमान है 

किसानों की आन खेत खलिहान हैं 

लोहड़ी , होली , दशहरा और दिवाली है 

पंजाब की तो बात ही निराली है 

       मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , हिमाचल और हिमालय

       नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

हिमाचल और हिमालय 


हिमाचल और हिमालय 

जैसे शिव और शिवालय 


शिमला , मनाली कि पहाड़िया 

किनौर कि शॉलें कुल्लू की टोपीया 


डलहौजी का मोहक पर्यटन है 

खेल स्कीइंग और पर्वतारोहन है 


प्रकृति के वो अनमोल नजारे 

सौन्दर्य से भरपूर नदियों के किनारे 


संस्कृति का विसाल संग्रहालय 

हिमाचल और हिमालय 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , लद्दाख संस्कृति है कितनी महान

       नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 


लद्दाख को मिल गई अपनी पहचान 

पर्वतों पर पला है बौद्ध ज्ञान

एक से बढ़कर एक विद्वान 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 


गोम्पा उत्सव विश्वंभर में प्रसिद्ध है 

कितना आकर्षक मुखौटा नृत्य है 

यहां काली मां भी पाती सम्मान 

लद्दाखी संस्कृति है कितनी महान 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , जिसे कहते हैं हम जम्मू कश्मीर

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

जिसे कहते हैं हम जम्मू.कश्मीर


मां वैष्णो देवी का ये उपकार है 

बाबा अमरनाथ का भी दरबार है 

जिसे कहते हैं हम जम्मू.कश्मीर में 

स्वर्ग की अनुभूति का आनंद ही अपार है 

नवरेह का नवचंद्र का नव वर्ष है 

ईद , दशहरा , शिवरात्रि का भी पर्व है 

कश्मीरी कश्मीरीयत का यही अर्थ है 

तभी तो कहते हैं जम्मू.कश्मीर स्वर्ग है 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

ग़ज़ल , उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

      नमस्कार , लगभग एक से दो हफ्ता पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा 

उस खुबसुरत चेहरे की कलाकारी देखो

फिर दिल के भीतर की मक्कारी देखो 


गर नमूना देखना हो तुम्हें ईमानदारी का 

तो जा के कोई दफ्तर सरकारी देखो 


आज इंसानों ने बहुत तरक्की कर ली है 

मगर जानवरों की वफादारी देखो 


दवा बनाने से पहले कब्रिस्तान बनाए गए 

महामारी में सरकारों की तैयारी देखो 


एक बार में पुरा हासिल नही होगा तनहा 

मुझे देखना हो यार तो बारी-बारी देखो 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 29 मई 2021

ग़ज़ल , नही का मतलब नही , नही होता

      नमस्कार , एक दिवस पूर्व मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूं |

नही का मतलब नही , नही होता 

इस मोहब्बत मे नही , नही होता 


आंखें भी बहुत बोलती हैं उसकी 

ओठ जो कहें दें वही , नही होता 


मोहब्बत में मिला जख्म नही दिखता 

दर्द दिल के सिवा कहीं , नही होता 


सजा पाता हूं उसके किए जुर्म का 

हर बार वही तो सही , नही होता 


रहती हैं उसकी यादें सदा बनकर 

तभी तो मैं तनहा कभी , नही होता 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 26 मई 2021

कविता , अपनों को खोकर

      नमस्कार 🙏विधा कविता में विषय अपनों का गम पर दिनांक 4/4/2021 को मैने एक रचना की थी जिसे आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 

अपनों को खोकर 


आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

न अब सावन 

लगेगा मन भावन 

और फागुन 

फिका फिका लगेगा 

पकवान अब कोई 

न मीठा लगेगा 

आपनों को खोकर 

जीवन रस फिका लगेगा 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की

     नमस्कार , 26 मई 2021 को मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये ग़ज़ल अच्छी लगेगी 

मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की 

तुम तो सुनते हो बस इस जमाने की 


तुम्हारे महल की ठंडक तुम्हें मुबारक हो 

मेरी तमन्ना है बस मेरा घर बनाने की 


मैं वो नही के इमान को गिरवी रखदूं 

अना तो चीज ही होती है नजर आने की 


इसबार की बहार आए तो यही शर्त रखुंगा 

मुझसे वादा करो लौटकर न जाने की 


यही हुआ है के एक अरसे से मै तनहा हूं 

ये सजा मिली है मुहब्बत न समझ पाने की 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


रविवार, 16 मई 2021

कविता , एक गिलहरी देखा मैने

      नमस्कार 🙏 करीब दो हफ्ते पहले मैने एक प्रतियोगिता के लिए यह कविता लिखी थी जिसमें मेरी यह कविता सम्मानित की गई है | अब इसे मै आपके हवाले कर रहा हूं कविता कैसी रही जरूर बताइएगा 

एक गिलहरी देखा मैने 


रेत के टीले में लोट लगाकर 

सागर जल में खुद को धोती थी 

ऐसा वो क्यों बार-बार करती थी 

देख इसे मन ही मन सोचा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 


तब निश्चय किया कि इसे 

क्या पीड़ा है , पूछ तो लू 

इसकी हृदय वेदना सून तो लू 

कर निश्चय फिर पूछा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 


गिलहरी ने कहा प्रभु श्री राम से 

आप लंका चले है धर्मरक्षा के काम से 

मौन रहकर यू ही मै शांत नही बैठुंगी 

सहयोग करुंगी,सागर में रेत भरने सोचा मैने 


एक गिलहरी देखा मैने 

   मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

बुधवार, 5 मई 2021

कविता , रोजगार का बंटाधार

        नमस्कार  🙏विषय - रोजगार पर विधा - कविता में दिनांक - 01/05/2021 को मैने एक रचना की थी जिसे आपके समक्ष रख रहा हूं 

रोजगार का बंटाधार 


कोरोना का काला जाल 

चली कैसी इसने चाल 

बुरा किया सब का हाल 

हो मालामाल या कोई कंगाल 

रोटी दाल के लाले पड़ गए 

चलते चलते पांव में छाले पड़ गए 

रोजगार का बंटाधार 

कर दिया कोरोना ने 

    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शनिवार, 1 मई 2021

ग़ज़ल, कोई आसान नहीं है दोस्ती

      नमस्कार , साहित्य संगम संस्थान मध्यप्रदेश इकाई पटल पर विषय - दोस्ती विधा - ग़ज़ल पर मैने दिनांक - 30/4/2021 को यह रचना की थी जिसे आपके समक्ष रख रहा हूं |

कोई आसान नहीं है दोस्ती 

कैसे आसमान नहीं है दोस्ती 


घर से कम नही है मेरा यार

मगर मकान नही है दोस्ती 


गैर जरुरी कानून है हैसियत 

कोई अपमान नहीं है दोस्ती 


गाढ़ा वक्त गुजर जाए तो कन्नी 

कोई सामान नही है दोस्ती 


घाटा मुनाफा देखते रहें तनहा 

कोई दुकान नही है दोस्ती

    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

English Poetry ,One Remembrance

      Good Evening,  few days ago I was wrote a poetry and now I'm sharing with you hope you like it 

One Remembrance


One Remembrance

First Entry in my Collage Gate 

I was Feeling Like all set 

When i was just sixteen 

When i was just wondering 

About my up coming collage life 

At the one moment i thought 

Can this will same like movies 

At another moment i thought 

No , it will just Like Remontic Noble series 

But , but , but in reality there was nothing like movies 

My dream came broken after entering collage Gate 

     How is poetry please let me know , comment your thought and please share also | Good Evening |



बुधवार, 28 अप्रैल 2021

कविता , सफरनामा है ज़िन्दगी

       नमन मंच  🙏 विषय - ज़िन्दगी विधा - कविता दिनांक - 23/4/2021 को मैने एक कविता की रचना की जिसे मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा | 

सफरनामा है ज़िन्दगी 


पहले रोने से लेकर 

अंतिम सांस तक का 

सफरनामा है ज़िन्दगी 


जिल्द पर माता पिता का 

दिया नाम लिखा है 

पहले पेज पर भूमिका में 

परिचय तमाम लिखा है 


दूसरे पन्ने पर हासिल की गई डिग्रीयां लिखी है 

अगले पन्ने पर महबूबा कि चिट्ठीयां लिखी है 


ये जो एक सादा पन्ना है 

वो टूटा हुआ सपना है 

एक भरे हुए पन्ने पर तमाम उम्र कमाई दौलत का हिसाब लिखा है 


अभी कुछ और पन्ने जोड़ने है सफरनामे में 

अरे याद आया कविता के चक्कर में नाड़ा डालना रह गया पैजामे  में 


अभी सफरनामे का लेखन कार्य बाकी है 

जब तक ये ज़िन्दगी है 

     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

Poetry , Let's Celebrate the hope

     Good Evening,  few days ago I was wrote a poetry and now I'm sharing with you hope you like it 

Let's Celebrate the hope 


Hope pandemic will end one day 

Hope let's remove our masks ,

We will say one day 

Hope no breaking news will come for death numbers 

No one cry for help 

Not be isolate myself 

Today I have no reason for celebration 

but I have a Vaccine called smile today

but I have a great hope 

Let's Celebrate the hope 

    How is poetry please let me know , comment your thought and please share also | Good Evening |

ग़ज़ल , सत्य के बीना कहीं गुजारा नही है

     नमस्कार , कल मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये नही ग़ज़ल पसंद आएगी |

सच के बीना कहीं गुजारा नही है 

तुमने ये सच जहन में उतारा नही है 


साजिशन अफ़वाह उड़ाई जा रही है 

तुम्हारा प्रधान इतना नाकारा नही है 


जिसे दोस्त समझ बैठे हो प्रधान मेरे 

वो अमेरिका दोस्त तुम्हारा नही है 


वसुधैव कुटुम्बकंम अब बहुत होगया 

ये पुरी वसुधा परिवार हमारा नही है 


नेकी का हासिल है ये दर्द का समंदर 

जिसमें लहरें तो हैं किनारा नही है 


मदद का हाथ अब मुफ्त मे मत दो 

यहां सब स्वार्थी हैं कोई विचारा नही है 


तमाम रात भर चमकता तो है सच है 

मगर ये जुगनू है यार मेरे सितारा नही है 


सियासत न करो लाशों पर हुक्मरानों 

तनहा तुम्हीं हो कोई और सहारा नही है 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , धन का भजन

      नमस्कार  🙏साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता हिन्दी_काव्य_कोश में विषय - धन पर विधा - कविता में दिनांक - 23/4/2021 को रचना भेजी , रचना तो हार गई तो मैने सोचा के आपके साथ साझा किया जाए |

धन का भजन 


धन का भजन लगे बड़ा निराला 

जैसे हो कोई शहद का प्याला 


धन का सूरज बड़ा ही काला 

न दे पाता जीवन को उजाला 


धन तो केवल साधन है साधना नही 

धन तो केवल प्राप्य है अराधना नही 


धन मोहक तो है मोहन नही 

धन प्रिय तो है मगर प्रीतम नही 


धन धारण हो धारणा नही 

धन भोजन हो भावना नही 


धन सम्पति हो संतति नही 

धन समाधान हो विपत्ति नही 


धन का प्रयोग हो पालन नही 

धन का सम्मान हो शासन नही 


धन विचार हो आचार नही 

धन सक्षम हो लाचार नही 

    मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

मुक्तक , नवरात्रि

     नमस्कार 🙏आपको श्री राम नवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ | विषय - नवरात्रि पर विधा - मुक्तक में दिनांक - 17/4/2021 दिन - शनिवार को साहित्य बोध के फेसबुक पटल पर मैने ये मुक्तक लिखा था जिसे पटल के द्वारा सम्मानित किया गया है | आप भी रचना पढ़े व बताएं की कैसी रही | 

रचना - 


अपनी शक्ति सब को फिर दिखाओ मां 

अपने भक्तों को इस संकट से बचाओ मां 

कोरोनारुपी असुर पाप लेकर आया है 

इस असुर का भी सर्वनाश करने आओ मां 

    मेरा ये मुक्तक आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 11 अप्रैल 2021

दो मुक्तक , फिर वही बात

     नमस्कार , काव्य कलश पत्रिका परिवार के साप्ताहिक प्रतियोगिता आयोजन शब्द सुगंध क्रमांक -40 में विषय-फिर वही बात में विधा-मुक्तक में दिनांक-19/02/2021 , दिन-शुक्रवार को मैने अपने लिखे दो मुक्तक प्रतियोगिता में सम्मिलित किए थे जिन्हें प्रतियोगिता के संपादकों के द्वारा सम्मानित किया गया है 

रचना-


ये सभी नखरे आज कर रही है

चल ना इशारे ये रात कर रही है

मैं कह तो रहा हूँ हां मोहब्बत है

यार तू फिर वही बात कर रही है


वो थोडा़ बहुत घबराई है

फिर तब जरा सा शर्माई है

क्या अदाकारी है रुठने की

फिर वही बात नजरआई है

     मेरे ये मुक्तक आपको कैसे लगे मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

ग़ज़ल , मेरे गम , मेरे जख्म या मेरी दवा चाहते हो

        नमस्कार , मेरी ये ग़ज़ल जिसका विषय मोहब्बत है विधा ग़ज़ल है  मेरी ये रचना संगम सवेरा के मासिक ई पत्रिका मे प्रकाशित हुई है | पर उसमें एक शेर जो पांचवें क्रमांक का पर है प्रकाशित नही की गई है | आप इस पुरी ग़ज़ल को पढ़ीए और अपनी राय दीजिए | 

मेरे गम , मेरे जख्म  या  मेरी दवा चाहते हो 

एक बार बता तो दो  की तुम क्या चाहते हो 


अब इनके चहचहाने पर भी तुम्हें एतराज है 

तो क्या तुम परिन्दों तक को बेजुबा चाहते हो 


अब हर कोई तुम्हारी मोहब्बत की दुहाई देता है 

सुना  है  के  तुम  मुझे  बेइंतिहा  चाहते  हो 


मुसलसल  मन्नतें  करते हो  आजकल  तुम 

तुम  क्या  मुझे  ही  हर  मर्तबा  चाहते  हो 


फासले भी घटने नही देते नजदीकीयां भी बढ़ने नही देते 

क्या तुम जुलम भी मुझपर तयशुदा चाहते हो 


एक बस तुम्हारा दिल ही तनहा नही है तनहा 

किसी  को  तो  तुम भी  बेपनाह  चाहते हो 

       मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

बुधवार, 31 मार्च 2021

ग़ज़ल , आंख नम है इसलिए चुरा रहा हूं मैं

      नमस्कार , मैने पिछले वर्ष इस ग़ज़ल को लिखा था लिखने के बाद तमाम अखबारों में पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजकर नाकाम होने के बाद आखिरकार मैने निर्णय लिया के इसे आपके साथ साझा किया जाए तो ये रही अब आप पढ़े एवं मुझे अवगत करवाएं की कैसी रही |

आंख नम है  इसलिए  चुरा  रहा हूं मैं 

ये  बात  नही है के  शर्मा   रहा  हूं  मैं 


मुसलसल कई दिनों से उन्हें एक गुलाब देता हूं 

पत्थर  पर   लकीर  बना  रहा  हूं  मैं 


कांच के टूटे तोहफ़े को फिर तोड़ रहा हूं 

अपने जख्मों पर नमक लगा रहा हूं मैं 


मैने सोचा था उनके दिल को मोहब्बत से भर दूंगा

सदा के लिए ये चिराग बुझा रहा हूं मैं 


शक के दायरे में मेरा आना लाज़मी ही नहीं 

कोई बात ही नहीं जिसे छुपा रहा हूं मैं 


तनहा होना बड़ा सुकून देता है दिल को 

ये बात अपने तजुरबे से बता रहा हूं मैं 

    मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


गुरुवार, 25 मार्च 2021

ग़ज़ल , न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं

       नमस्कार , एक मशहूर शायर की ग़ज़ल की बहर पर मेरी ये ग़ज़ल देखें अगर आप को अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत करवाएं |

न बहुत ज़्यादा न बहुत कम देखते हैं 

उन्हें बार-बार  बस  हम  देखते  हैं 


हासिल  क्या  होता है  मोहब्बत  में 

हम भी एकबार खाकर कसम देखते हैं 


मुझे तड़पता देखकर कोई यकीन नही करता 

अब दर्द देखने से पहले लोग जख्म देखते हैं 


क्या वजह थी मौत की किसी को क्या मतलब 

लाश देखने से पहले लोग कफन देखते हैं 


कब तक आग के मानिंद जलता रहूंगा मैं 

तनहा आओ मोहब्बत में सितम देखते हैं 

     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 21 मार्च 2021

कविता , दिनकर है मेरी कविता

      नमस्कार 🙏 मैने यह कविता साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता हिन्दी काव्य कोश के विषय - दिनकर के लिए विधा - कविता में दिनांक - 19/03/2021 को भेजी थी रचना तो विजयी नही हुई पर मैने ये सोचा के क्यों न आपके साथ भी इसे साझा किया जाए तो पेश कर रहा हूँ पढ़ कर विचार जरूर बताइएगा 

दिनकर है मेरी कविता


दिनकर है कर्तव्यपरायण 

दिनकर है उपकारी 

दिनकर के गुणगान करों 

दिनकर है सदाचारी 


दिनकर का उपकार दिन है 

दिनकर का आभार भी 

दिनकर का व्यवहार काव्य है 

दिनकर का विचार भी 


दिनकर को एक समान लगे 

दानी , धनी और दीन 

दिनकर सब का अपना है 

बलवान , अबला हो या हीन 


दिनकर मंगल वंदन में 

दिनकर स्वागत अभिनंदन में 

दिनकर सूक्ष्म विसाल सब है 

दिनकर ही भारत लंदन में 


दिनकर हर विधा में है 

दिनकर है अविधा में भी 

दिनकर मेरे शब्द-शब्द में 

दिनकर है मेरी कविता में भी 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 14 मार्च 2021

ग़ज़ल , हिसाब मागुंगा मै

       नमस्कार 🙏 मैने इस ग़ज़ल को करीब एक साल पहले लिखा था और लिखकर कॉपी बंद करके रख दिया था पिछले हफ्ते में मैने इसे टाइप करके एक अखबार में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर अखबार ने इसे प्रकाशित नही किया तो मैने कहा के साहब ये यहां वहा प्रकाशित करवाने का झंझट खत्म करते हैं और दोस्तों के साथ साझा करते हैं तो लीजिए और पढ़ कर बताइए के कैसी रही |


कुछ आंशु , कुछ जज़्बात , कुछ ख्वाब मागुंगा मैं 

आज उससे तोहफ़े में कुछ और मुलाकात मागुंगा मैं


ज़िन्दगी   तू   पाई पाई   याद  रखना  मेरा 

किसी दिन फुर्सत में बैठकर हिसाब मागुंगा मैं 


आखिर  मेरे  कत्ल  की  वजह  क्या  थी 

खुदा से इस सवाल का जबाब मागुंगा मैं


जिसे दुनियां का हर एक शख्स पढ़ सके 

खुदा  से  ऐसी  कई  किताब  मागुंगा  मैं


रात के मानिंद तिरगी है आजकल दिन में

सूरज से  कतरा भर आबताब  मागुंगा  मैं 


कुछ और बेशकीमती असार कह सके तनहा 

खुदा  से  कुछ  और  अल्फाज  मागुंगा  मैं 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


कविता , मेरे पथिक सून

       नमस्कार 🙏हिन्दी काव्य कोश पर चल रहे एक साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता में विषय पथिक पर विधा कविता में दिनांक 12/03/2021 को मैने मेरी एक रचना भेजी थी रचना तो विजयी नही हुई पर मैने ये सोचा के क्यों न आपके साथ भी इसे साझा किया जाए तो पेश कर रहा हूँ पढ़ कर विचार जरूर बताइएगा |

मेरे पथिक सून 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 

रात काली और घनी है 

मेरा तुझको वास्ता है 


कल सवेरा हो तो जाना 

लौट कर फिर तुम न आना 

आज का खटका है मुझको 

कह रहा हूँ तभी तो तुझको 

झूठ का सच कह रहा हूँ 

सच को झूठा कह रहा हूँ 

इसमे मेरा क्या भला है 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 


आगे पथ से अनजान है तू 

इस शहर में मेहमान है तू 

चार पहर की रात है ये 

इतनी खामोशी आज है ये 

हो न जाए कुछ अनहोनी 

जीत तो है सच की होनी 

उस पे मेरी आस्था है 


ओ पथिक मेरे पथिक सून 

सांझ का ये रास्ता है 

     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

गुरुवार, 4 मार्च 2021

ग़ज़ल, मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया

       नमस्कार , लगभग हफ्ते भर पहले मैने एक छोटी सी नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है आपका प्यार मिलेगा |

मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया 

मैने जहर को असर होने होने दिया 


मै भी चाहता तो अधुरी छोड़ सकता था 

मैने कहानी को मुख्तसर होने दिया 


रात भर मर मे भी मर सकता था रिश्ता 

मगर मैने ही सहर होने दिया 


दर्द तो इतना था के मत ही पूछो तनहा 

मगर मैने उसे बेअसर होने दिया 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल, , कौन कहता है के मुझे गम है

       नमस्कार , तकरीबन एक वर्ष पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी और लिखकर मैने कॉपी अलमारी में रख दी थी अब जब वक्त मिला तो दिल किया के कुछ पुराने लिखे भी दोस्तों के साथ साझा किए जाए तो हाजिर है ये ग़ज़ल |

कौन कहता है के मुझे गम है 

ये मेरा बहुत पुराना जख्म है 


क्या शिकायत करें इस जिस्म की हम खुदा से 

जो मिला है वही कौन सा कम है 


अभी कुछ और उलझेगा अभी कुछ और सुलझेगा 

ये उनके बालों में नया नया ख़म है 


पहले भी मेरी मोहब्बत नही समझता था आज भी नहीं 

मेरा सनम अब भी वही सनम है 


मैं जो कुछ भी तेरी तारीफ़ में लिख पाता हूं 

खुदा के नमाजें फन का करम है 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

कविता , चल उजाला छीन लाते हैं

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता बीते हुए परसों में लिखी है जिसे मै आपके समक्ष रखना चाह रहा था | ये कविता आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |

चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


नाव लेकर चलते है मजधार में

उम्मीद बांध लेते हैं पतवार में

डुब भी गए तो क्या होगा हमारा

खबर तक नही छपेगी अखबार में

एक दिन सब बदल जाएगा दोस्त

ये जूगनु यही यकीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


पेट खाली है तो समझो सब बंजर है

भरा है पेट तो हसीन हर मंजर है

इमारतों की रोशनी आंख में चुभती है

मेरे बल्ब में कई चांद से मंजर हैं

एसी की ठंडक है मेरे टेबल फैन की हवा में

इस बार धनतेरस में सिलाई मशीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे 

      मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

ग़ज़ल , मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

      नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके साथ साझा करना चाहूँगा और ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराइएगा |

मैं यू ही उसको बंजर नही कहता

हर कहानी खुद मंजर नही कहता


जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो

घाव कितना देगा खंजर नही कहता


आंशुओं को नापें तो भला नापें कैसे

कितना गहरा है समंदर नही कहता


मोहब्बत लिखते लिखते होगया तनहा 

अब हार गया है सिकंदर नही कहता

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

कविता , कोरोना' तुझे हाय लगेगी मेरी

       नमस्कार , कोरोना महामारी के इस काल में हम सब ने कई अनुभव पाए जैसे कोरोना बीमारी का दर्द , कही हो न जाए इसका डर , अपनों को खोने का गम , घरों में कैद रहने की घुटन आदी | इन्ही एहसासों को मैने एक कविता में लिखने की कोशिश की है और मुझे यह आपको बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की मेरी इस कविता को साहित्यपीडिया ने अपने साझा कविता संग्रह 'कोरोना' में प्रकाशित किया है | मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार अवश्य बताइएगा |

'कोरोना' तुझे हाय लगेगी मेरी


मैं कई महीनों से कैद हूँ घर में

बस तेरे डर से

अनलाँक नही कर पा रहा हूँ खुद को

बस तेरे डर से

दूर रहना बस तू सदा ही कोरोने

मेरे प्यारे घर से

नही तो सुनले वर्ना

‘कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी


घमंड छोड़कर सच को देख

तूने किए हैं पाप अनेक

अपने अंजाम को पाएगा तू

एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा तू

अब जो एक भी जीवन छीना तूने

तो कान खोलकर सुनले वर्ना

कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी


      मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

       इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

रविवार, 24 जनवरी 2021

कविता , तांडव शब्द को बदनाम मत करो

      नमस्कार , तांडव विवाद तो आपको पता ही होगा इसी को ध्यान में रखते हुए मैने एक कविता लिखी है जिसे मै आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ कविता पर अपने विचार जरुर बताइएगा |

तांडव शब्द को बदनाम मत करो


तांडव शब्द को बदनाम मत करो

अपनी ओछी विचारों वाली फिल्मों से

तांडव वो नृत्य है जिससे सृष्टि का सृजन हुआ

तांडव वो नृत्य है जिससे काम भस्म हुआ

तांडव सत्य का नाद है

तांडव पाप का विनाश है

तांडव है दहकती हुई आग की ज्वाला

तांडव है नीलकंठ में धारित हाला

मन का करुण विलाप तांडव है

संगीत का प्रथम आलाप तांडव है

तांडव केवल शिव नही है शक्ति भी है

तांडव केवल भय नही है भक्ति भी है

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 23 जनवरी 2021

कविता , नेता हो तो सुभाष जैसा हो

        नमस्कार , भारत की आजादी के प्रथम प्रमुख नायको मे से एक , राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति के प्रतिक पुरुष ,  महान नेता एवं क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद बोस को उनकी जन्मजयंती पर मेरा नतमस्तक नमन वंदन 🇮🇳🇮🇳🙏

        एक देश एवं इस महान देश के नागरीक होने के नाते हम नेताजी का जितना भी गुणगान करें वह कम होगा पर किर भी मैं अपनी छोटी सी एक कविता नेताजी के श्री चरणों में समर्पित करता हूँ


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो


कर्तव्यनिष्ठ राष्ट्रप्रेमी देशभक्त

स्वयं के स्वार्थ को परे रख

सत्य के पथ पर होकर अटल

तीव्र वेग से चलने वाले

पुण्य प्रकाश के जैसा हो


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो


जिसकी आवाज सुनकर के

देश के दुश्मनों के पैर कांपे

जो वचनबद्ध होकर के कर्तव्य 

निभाने को आठो पहर जागे

जिसका व्यक्तित्व आकाश जैसा हो


नेता हो तो सुभाष जैसा हो

वर्ना ना हो

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शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

ग़ज़ल , इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें

        नमस्कार , मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मै आपके सम्मुख रख रहा हूँ मेरी ये नयी ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |

इंसानों कों पहचानने में कच्ची हैं तेरी आंखें

तीन साल की मासूम बच्ची हैं तेरी आंखें


कोई बनावटी अंदाज नही उतरता इनमें

तुझसे तो सौ गुना अच्छी हैं तेरी आंखें


खुदा की कसम कितनी बडी़ झुठी है तू

कसम से यार कितनी सच्ची हैं तेरी आंखें


तमाम झुठ तमाम सच फिर भी हैं मासूम

तू तो होगई जवान मगर बच्ची हैं तेरी आंखें

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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