मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

कविता , चल उजाला छीन लाते हैं

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता बीते हुए परसों में लिखी है जिसे मै आपके समक्ष रखना चाह रहा था | ये कविता आपको कैसी लगी मुझे जरुर बताइएगा |

चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


नाव लेकर चलते है मजधार में

उम्मीद बांध लेते हैं पतवार में

डुब भी गए तो क्या होगा हमारा

खबर तक नही छपेगी अखबार में

एक दिन सब बदल जाएगा दोस्त

ये जूगनु यही यकीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे


पेट खाली है तो समझो सब बंजर है

भरा है पेट तो हसीन हर मंजर है

इमारतों की रोशनी आंख में चुभती है

मेरे बल्ब में कई चांद से मंजर हैं

एसी की ठंडक है मेरे टेबल फैन की हवा में

इस बार धनतेरस में सिलाई मशीन लाते है


चल उजाला छीन लाते है

फिर साम को उससे दीया जलाएंगे 

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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