सोमवार, 2 जुलाई 2018

कविता , अब चांद को चमकने नही दिया जायेगा

      नमस्कार ,  राजनीति के समीकरण हमेशा बदलते रहते हैं राजनेताओं के मायने भी हमेशा बदलते रहते हैं | नेता चुनाव में किए वादे ऐसे भुला देते हैं जिस तरह से सूखी रेत को हवा उड़ा ले जाती है |  जब चुनाव नजदीक हो तो राजनीति के गलियारों का माहौल गरमाया रहता है |

        राजनीतिक गलियारों कैसे गर्मी पर आधारित मैंने एक कविता लिखी है | यह कविता मैंने आज से तकरीबन 10 ,15 दिन पहले लिखी है जिसे मैं आज आपके साथ साझा कर रहा हूं -

कविता , अब चांद को चमकने नही दिया जायेगा

अब चांद को चमकने नहीं दिया जाएगा

खबर ये है कि कल रात में
बादलों ने झुंड बनाया है
अब चांद को चमकने नहीं दिया जाएगा
चाहत की रोशनी का विरोध किया जाएगा
विरोध पूरी रणनीति बनाकर किया जाएगा

पहले तारों को चांद के खिलाफ
भड़काया जाएगा
फिर चांद की नाकामियों का
बखान किया जाएगा
बहलाया जाएगा , फूसलाया जाएगा
तोड़ा जाएगा , खरीदा जाएगा

चाहे कुछ भी करना पड़े
दुश्मनों के गले ही क्यों ना लगना पड़े
हर मुमकिन से मुमकिन तक
नामुमकिन से नामुमकिन तक
सब कुछ आजमा कर देखा जाएगा
खबर ये है कि कल रात में
बादलों ने झुंड बनाया है
अब चांद को चमकने नहीं दिया जाएगा

      मेरी कविता के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार

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