नमस्कार , एक दिवस पूर्व मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत करना चाहता हूं |
नही का मतलब नही , नही होता
इस मोहब्बत मे नही , नही होता
आंखें भी बहुत बोलती हैं उसकी
ओठ जो कहें दें वही , नही होता
मोहब्बत में मिला जख्म नही दिखता
दर्द दिल के सिवा कहीं , नही होता
सजा पाता हूं उसके किए जुर्म का
हर बार वही तो सही , नही होता
रहती हैं उसकी यादें सदा बनकर
तभी तो मैं तनहा कभी , नही होता
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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