रविवार, 14 मार्च 2021

ग़ज़ल , हिसाब मागुंगा मै

       नमस्कार 🙏 मैने इस ग़ज़ल को करीब एक साल पहले लिखा था और लिखकर कॉपी बंद करके रख दिया था पिछले हफ्ते में मैने इसे टाइप करके एक अखबार में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर अखबार ने इसे प्रकाशित नही किया तो मैने कहा के साहब ये यहां वहा प्रकाशित करवाने का झंझट खत्म करते हैं और दोस्तों के साथ साझा करते हैं तो लीजिए और पढ़ कर बताइए के कैसी रही |


कुछ आंशु , कुछ जज़्बात , कुछ ख्वाब मागुंगा मैं 

आज उससे तोहफ़े में कुछ और मुलाकात मागुंगा मैं


ज़िन्दगी   तू   पाई पाई   याद  रखना  मेरा 

किसी दिन फुर्सत में बैठकर हिसाब मागुंगा मैं 


आखिर  मेरे  कत्ल  की  वजह  क्या  थी 

खुदा से इस सवाल का जबाब मागुंगा मैं


जिसे दुनियां का हर एक शख्स पढ़ सके 

खुदा  से  ऐसी  कई  किताब  मागुंगा  मैं


रात के मानिंद तिरगी है आजकल दिन में

सूरज से  कतरा भर आबताब  मागुंगा  मैं 


कुछ और बेशकीमती असार कह सके तनहा 

खुदा  से  कुछ  और  अल्फाज  मागुंगा  मैं 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


5 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल खूबसूरत है । थोड़ा टाइप करते समय वर्तनी पर ध्यान देने की आवश्यकता है ।

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    1. इस सुझाव के लिए आपका बहुत आभार मां आदरणीया मै इस पर कार्य करूंगा, आपसे निवेदन है की इसी तरह मेरी से मुझे अपने विचारों से अवगत कराती रहिएगा 🙏

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  2. मेरे रचना को पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत आभार 🙏

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  3. जिसे दुनियां का हर एक शख्स पढ़ सके

    खुदा से ऐसी कई किताब मागुंगा मैं

    बहुत खूब....

    जवाब देंहटाएं

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