नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |
वो है मेरी तुमने जिसको नही देखा
और पूछ रहे ह़़ो किसको नही देखा
चमेली को गुलाब समझ बैठे हो तुम
यकीनन ही तुमने उसको नही देखा
हकिकत ये के सिक्के के दो पहलू हैं
इल्जाम से पहले इसको नही देखा
कशीदा पढ़ रहे हो हूरों की शान में
मतलब ज़मीन पर उसको नही देखा
कुछ कहने से है चुप ही रहना बेहतर
तनहा जबतक तुमने खुदको नही देखा
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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