सोमवार, 30 सितंबर 2019

भोजपुरी लोकगीत, बनलबा मूड रानी

     नमस्कार, आज मैने एक नया भोजपुरी लोकगीत लिखा है जिसे मैं आपके अपने साहित्य के आंगन में रख रहा हूं, मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा ये लोकगीत अच्छा लगेगा |

आजु कुछ नही मिली
झनी हमरा फेरा में आब
कर झनी माना रानी
हमरा कोरा में आब
पुरा ना होई जउन तोहर
आजु राती के डिरीम बा
आब , बनलबा मुड रानी
लाइट भी डिम बा

जहिआ ले नथिया कीन के न लईब
तबले निमन समान के नेमान नाही पईब
एक करवटी में नीद नाही लागी
पुरा राती भूखाइल रह जईब
हाली बोल तोहर आगे के का स्कीमबा
ए आब , बनलबा मुड धनी
लाइट भी डिम बा

बात हमार मान गोरी लगे तू आब
मोकाबा मिलल जानू फयदा उठाब
कर ल प्यार के प्यार से क़बूल रानी
झूठे के ढेरे बहाना न बनाब
तोहरे चाहत के रंग हमरा दिल के थीमबा
ए सुनना , बनलबा मुड धनी
लाइट भी डिम बा

      इस भोजपुरी लोकगीत और मेरे बाकी के प्रकाशित सभी लोकगीतों के विषय में में एक सुचना बताना चाहता हूं कि यदि आप एक गायक, संगीतकार, संगीत निर्माता या संगीत निर्देशक हैं और यदि आप इन लोकगीतों में से किसी को भी गाना या संगीतबद्ध करना चाहते हैं तो आप मुझे email कर सकते हैं या आप मुझे मेरे instagram पर मैसेज कर सकते हैं |

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      इस लोकगीत को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मंगलवार, 24 सितंबर 2019

ग़ज़ल, तू मेरी मोहब्बत में टुटकर राई छाई होजा

     नमस्कार , आज सुबह ही मैने एक नयी गजल लिखी है जिसे मैं आज ही आपके दयार में नुमायाँ कर रहा हूं इस नयी गजल के लिए मुझे आपसे प्यार की उम्मीद है

आ तुझे दिल की तिजोरी में रखु तू मेरी मोहब्बत की पाई पाई होजा
मै चटकुं तेरी चाहत में तू मेरी मोहब्बत में टूटकर राई छाई होजा

पैरहन की खुबसुरत कलाकारी समझने लगें हमे दुनिया वाले
मैं तेरा रंग बिरंगा धागा हो जाउं तू मेरी सिलाई कढ़ाई होजा

तू रोशनी होकर तीरगि को सजाए मौत दे दे हाकिम मेरे
मै तेरे सच का घासलेट हो जाउं तू मेरी चिमनी सलाई होजा

मेरी जहालत को तेरी तालीम मिले तेरी जहालत को मेरी तालीम मिले
आ मै तेरा स्लेट बस्ता हो जाउं तू मेरी पढाई लिखाई होजा

मोहब्बत कोई लजीज पकवान की तरह स्वादिष्ट लगने लगे
मै तेरा राशन पानी हो जाउ तू मेरी खटाई मिठाई होजा

मकान की उखड़ी हुई छत मेरी गुरबत देखकर हंसती है
मै तेरा छूही माटी हो जाउं तू मेरी छपाई मुनाई होजा

तनहा घर के दरवाजे वही रहते हैं बस चिलमन बदलती रहती है
मै तेरा नेकी बदी हो जाउं तू मेरी अच्छाई बुराई होजा

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कविता, तुम मुझसे भी बेहतर हो

      नमस्कार, आज कल देश में बाकी सब विषयों के अलाव एक विषय लैंगिक समानता है जिस पर बात हो रही है और इस विषय पर बात होनी भी चाहिए यह देश की आधी आजादी की बात है | और मुझे लगता है कि लैंगिक समानता की शुरुआत आप के अपने घर से होनी चाहिए , यहां मैं प्रमुखता से वैवाहिक जीवन में लैंगिक समानता की बात कहना चाहूंगा | लैंगिक समानता के बाधक तत्वों में हमारे समाज कि वो कई विचारधाराए आती हैं जो कहती हैं कि पत्नी तो पैर की जुती होती है या ये की औरतों का काम है बच्चों और परिवार को संभलकर रखना और इसी तरह की कई बातें | विवाह एक पारिवारिक जिम्मेदारी है जिसमें औरत एवं मर्द बराबर के हिस्सेदार हैं इसमें कोई कम या ज्यादा नही है |

      आसानी से और कम शब्दो में मै अपनी बात पुरी करना चाहुं तो यू कह सकता हूं कि अब यह समय है कि हर भारतीय पति को अपनी मर्जी से घर के रोजमर्रा के कामों में बढचढ कर अपनी पत्नी की मदद करनी चाहिए और आपको उनकी भावनाओ और विचारों का आदर एवं ख्याल रखना चाहिए | इसी विषय पर मैने मेरी एक छोटी सी कविता लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं , कविता इस तरह से है कि

तुम मुझसे भी बेहतर हो

मै जो एक शब्द हूं तो
तुम पुरा एक अक्षर हो
                  तुम मेरे बराबर तो हो ही
                  तुम मुझसे भी बेहतर हो

मै तो दफ्तर से आकर
थककर आलस में आ जाता हूं
तुम जब दफ्तर से आती हो
मैं तुम पर ही चिल्लाता हूं
तुम पुरा दिन थककर भी
सब के लिए खाना बनाती हो
सब को खिला लेने के बाद
सबसे आखिर में तुम खाती हो
मैने कभी नहीं की है घर
के कामों में मदद तुम्हारी
मै मानता हूं ये है गलती हमारी

मैं हूं केवल पाता यहां का
तुम तो पुरा परिचय हो
                   तुम मेरे बराबर तो हो ही
                   तुम मुझसे भी बेहतर हो

न जाने कितना कुछ तुमने सहा है
ऐसा कोई प्यार नही
तुम पर हाथ उठाने का मेरा कोई
अधिकार नही है
पर ये पाप भी मैने किया है
तुम्हें लाखों कष्ट दिया है
पर फिर भी तुमने ये रिश्ता न तोड़ा
मुझे मेरे हाल पर ही अकेला न छोड़ा
तुमने मुझ पर एहसान किया है
मेरी सभी गलतीयों के लिए
माफ करदो तुम मुझे
बस यही दलील हमारी है
मेरी पत्नी होने का हर
फर्ज निभाया हैं तुमने
अब बारी हमारी है

मैं अगर कामयाबी की इमारत हूं तो
उसमें हर एक पत्थर तुम हो
                    तुम मेरे बराबर तो हो ही
                    तुम मुझसे भी बेहतर हो

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शनिवार, 21 सितंबर 2019

भोजपुरी लोकगीत, पहीले खिड़की के पाला सटा ली, केवाडी के कीली लगा ली

    नमस्कार, वैसे तो रह भाषा ही बहोत मिठी होती है मगर भोजपुरी भाषा के लिए यह कहा जाता है कि दुनिया कि सबसे मीठी भाषा है भोजपुरी भाषा भारत के कई उत्तर भारतीय राज्यों में बोली एवं समझी जाती है मगर फिर भी भोजपुरी भाषा आज भी मात्र एक बोली है इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं है |भोजपुरी भाषा की अपनी एक फिल्म इंडस्ट्री है जिसे भोजबुड कहते हैं जो काफी मसहूर एवं कामयाब होती हुई फिल्म इंडस्ट्री है | इसी भाषा की मधुरता पर मोहित होकर मैने दो नए भोजपुरी लोकगीत लिखे है जिनमे से दूसरा इस तरह है

उपरउछता हमार मोहब्बत के पानी ए रानी
आव तोहके सीना से सटा ली
एजी हटी , पहीले खिड़की के पाला
सटा ली , केवाडी के कीली लगा ली

बड़ी भाग से मिलल आजू के रात बा
केतना हसीन तोहर हमार मुलाकात बा
प्यार में पागल हमनी के दू पंछी
आज इ सारी कायनात हमनी के साथ बा
चलाइ प्यार के गाड़ी आव मोमबत्ती जला ली
एजी हटी , पहीले खिड़की के पाला
सटा ली , केवाडी के कीली लगा ली

सात जनम के साथ बा मिलल खिलल फूलवा गुलाब के
सोलह सिंगार अउर सोना के सुघराई ओहु पर रुप महताब के
सांच भईल आज रोज देखल हर सपनवा
लागे जईसे पुरा हो कउनो मोहब्बत के कहानी किताब के
मन करे तोहके कोरा में उठा ली
एजी हटी , पहीले खिड़की के पाला
सटा ली , केवाडी के कीली लगा ली

उपरउछता हमार मोहब्बत के पानी ए धनी
आव तोहके सीना से सटा ली
एजी हटी , पहीले खिड़की के पाला
सटा ली , केवाडी के कीली लगा ली

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भोजपुरी लोकगीत, ए हमार धनी हमके उ दे द ना

    नमस्कार, वैसे तो रह भाषा ही बहोत मिठी होती है मगर भोजपुरी भाषा के लिए यह कहा जाता है कि दुनिया कि सबसे मीठी भाषा है भोजपुरी भाषा भारत के कई उत्तर भारतीय राज्यों में बोली एवं समझी जाती है मगर फिर भी भोजपुरी भाषा आज भी मात्र एक बोली है इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त नहीं है |भोजपुरी भाषा की अपनी एक फिल्म इंडस्ट्री है जिसे भोजबुड कहते हैं जो काफी मसहूर एवं कामयाब होती हुई फिल्म इंडस्ट्री है | इसी भाषा की मधुरता पर मोहित होकर मैने दो नए भोजपुरी लोकगीत लिखे है जिनमे से पहला इस तरह है

नाही चाही केहू अउर से तू दे द ना
ए हमार धनी हमके उ दे द ना

तोहार बाली उमर जइसे पानी के लहर
सुराही के नियन के तोहार पतली कमर
इ काने के बाली इ ओठवा के लाली
दिलवा पर हमरे गीरावता कहर
आज लव के डोज हमके लव गुरू दे द ना
ए हमार रानी हमके उ दे द ना

ए राजाजी तोहार परपोजल हम करतानी खारिज
झूठे के हमार ऱउआ करतानी तारीफ़
आज कुछो ना मिली साधा जाई आफिस
बीन मौसम के हमरा पर करतानी प्यार के बारिश
हमके घर के ठेर काम से निजात केहू दे द ना

नाही चाही केहू अउर से तू दे द ना
ए हमार दिलजानी हमके उ दे द ना
नाही चाही केहू अउर से तू दे द ना
ए हमार धनी हमके उ दे द ना

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कविता, चेतना के वेद मंत्र

     नमस्कार, मैने कल रात को एक नयी कविता लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख हाजिर कर रहा हूँ

चेतना के वेद मंत्र

चेतना के वेद मंत्र
चिंतन के प्रथम यंत्र
समस्या है भीड़ तंत्र
समाधान है लोकतंत्र

चेतना के वेद मंत्र
विरोध के लिए हो स्वतंत्रत
मत बनाओ विरोध के अधिकार को
संपूर्ण राष्ट्र के लिए षड्यंत्र

चेतना के वेद मंत्र
यहॉ कोई नही है महंत
हर आत्मा हो सकती है संत
दुर विकारों का होगा अंत

चेतना के वेद मंत्र

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कविता, तुम अपने अपनों के लिए हेलमेट पहन लो

     नमस्कार, एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर वर्ष एक लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं इसकी बजह है आम जन में सड़क यातायात नियमों के प्रति जागरूकता की कमी एवं नियम तोड़ने पर दंड का मामुली प्रावधान | यही बजय है कि जब केन्द्र सरकार ने एक सितंबर से नए नियम लागू किए तो बडी मात्रा में लोगों के चालान काटे गए और कुछ लोगों में नए नियमों को लेकर असंतोष भी देखने को मिला | आगामी चुनावों को देखते हुए कुछ राज्य की सरकारों ने इस नए नियम को लागू ही नहीं किया या लागू भी किया तो चालान की राशि बहोत कम करदी | देश का एक जिम्मेदार नागरीक एवं जिम्मेदार शायर होने के नाते मेरा ये मानना है की राज्य की सरकारों को स्वयं की राजनीति से उपर उठकर लोगों के हित में इन नए नियमों को लागू करना चाहिए | इसी विषय पर मेरी ये छोटी सी नयी कविता देखें

तुम अपने अपनों के लिए हेलमेट पहन लो

चाहो तो जेवर समझकर पहन लो
या इसे फैशन कहकर पहन लो
मगर तुम्हें कसम है इनकी
तुम अपने अपनों के लिए हेलमेट पहन लो

ये सड़क केवल तुम्हारी नहीं है
पर जान तुम्हारी अपनी है
यह नियम यह कानून सब तुम्हारे लिए हैं
पहचान तुम्हारी अपनी है
याद रखो घर पर कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा है
शराब पीकर वाहन चलाने को कह दो नो
तुम अपने अपनों के लिए हेलमेट पहन लो

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कविता, कल यही हाल तुम्हारा भी होगा

     नमस्कार, धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ऐसा हम दिन रात टीवी और अखबार में पढ़ते एवं सुनते रहते हैं लेकिन फिर भी बहोत बड़ी संख्या में आज हमारे देश में धूम्रपान करने वालों की संख्या है और यह संख्या निरंतर बढती जा रही है | बीडी सिगरेट को जलाने वाला हर व्यक्ति यह जानता है कि यह उसके लिए खतरनाक है लेकिन फिर भी वह इनका सेवन करता है आखिर ऐसा क्यों |धुम्रपान कई तरह के कैसर एवं मुंह तथा फेफडे में गोनी वाली बीमारीयों की वजह बनता है लेकिन फिर भी यह देश की हर गली हर शहर हर गांव हर मोहल्ले हर चौराहे बाजार बड़े बड़े होटलों में विकता है | जिस तरह से अब देश की सरकार ने ई सिगरेट बैन किया है यह बहोत सराहनीय कदम है सरकार का उसी तरह से अब समय आ गया है कि पूरे देश में हर तरह की सिगरेट बीडी बैन कर दी जाए |

    अगर आप मेरे विचारों से सहमत हो तो इस पोस्ट एवं इस कविता को देश के जन जन तक पहुंचाने में मेरी मदद करे, एवं इसे अपने दोस्तों एवं परिवार जनों खासकर वो जो धूम्रपान करते हो के साथ साझा करें |

कल यही हाल तुम्हारा भी होगा

धूआ उड़ाना दिलकश नहीं है
इसमें कोई इज्जत नहीं है
ये आफत है , राहत नहीं है
ये कोई अच्छी आदत नहीं है
मुंह में कैंसर , गले में कैंसर , फेफड़े में कैंसर
यही नजारा तुम्हारा भी होगा
उसको मरता हुआ आज पूरा शहर देख रहा है
याद रखो कल यही हाल तुम्हारा भी होगा

जब सिगरेट हाथ में पकड़ता था वो
उसे छोड़ने के लिए किसी ने नहीं कहा था शायद
पर तुम्हें अभी समय है , मैं कह रहा हूं
यह आदत तुम्हारी प्रयास से छूट जाएगी एक दिन
यकीन मानो मैं कह रहा हूं
बुझा कर फेंक दो सिगरेट को
ये सारा जहां तुम्हारा भी होगा
अगर जो घूए को पीना छोड़ोगे नहीं
तो याद रखो कल यही हाल तुम्हारा भी होगा

       मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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कविता, मै मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की बात कर रहा हूं

     नमस्कार, आज जो मै बात कहने जा रहा हूँ वो पढकर हो सकता है आप मुझसे सहमत ना हो या हो कुछ भी हो सकता है और आप इस कविता को पुरी ना पढ़े ये भी हो सकता है मगर मेरी आपसे गुजारीस है कि एक बार जरूर पढ़े |  समय के साथ साथ हर चीज प्रासंगिक नही रह जाती है ऐसा हमारे धार्मिक किताबों के साथ भी होता है हां ये जरुरी नही है कि ऐसा हर किताब के साथ हो मगर कुछ किताबों के साथ ऐसा जरूर होता है उसी तरह की एक किताब है , मनुस्मृति | हमारे भारत देश के महान संविधान की मूल भावना सभी देशवासीयो की संविधान के समक्ष समानता और स्वतंत्रता है और हमारे देश का संविधान हम सभी देशवासीयो के लिए वरदान स्वरुप है | मगर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जातिवाद, छुआ छुत और कहीं न कही मनुवाद भी हमारे देश के लोकतंत्र की सफलता और संविधान की सफलता में भी बाधक तत्व हैं |

मैं मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की बात कर रहा हूं

समाज में खाई तुम्हारी ही बनाई हुई है
इसमें गिर भी तुम्हेी रहे हो
रिश्तो में ये आग भी तुम्हारी ही लगाई हुई है
इसमें जल भी तुम्हीं रहे हो
अपनों के बीच यह दीवार भी तुम्हारी ही बनाई हुई है
सिर भी इस पर तुम्हें पटक रहे हो
क्या रामायण नहीं पढा तुमने ?
क्यों श्रीराम को भुला दिया तुमने ?
क्यों गीता नहीं पढी तुमने ?
भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों को ठीक से सुना नहीं तुमने
एक ने शबरी के जूठे बैर खाए
तो दूसरे ने ग्वालों संग माखन खायी
तुम तो उनके हाथ का पानी तक नहीं पीते
जिन्होंने तुम्हें रामायण बताई
स्नातन है वसुधैव कुटुंबकम मानने वाला
तुम किस किताब की बात मान रहे हो
कौन मनु ?, किसकी स्मृति ?
मैं मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम की बात कर रहा हूं
तुम किसकी बात कर रहे हो ?

       मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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कविता, क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

     नमस्कार, ये तो पुरी दुनिया जानती है कि हमारे देश भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बढाने वाला एक ही देश है और वो है पाकिस्तान और पाकिस्तान केवल भारत के लिए ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है | पाकिस्तान और उसके प्रायोजीत आतंकवाद से हमारे देश भारत की सेना लड़ाने मे सक्षम है और लड ही रही है मगर यदि हमारे देश में ही रहकर हमारे देश के कुछ नेता हमारे देश का ही खाकर हमारे ही देश कि सेना का अपमान करते हैं और राष्ट की एकता को आघात पहुंचाते हैं तो एक कवि एक शायर को इस तरह कि कविता लिखने के लिए विवश कर देते हैं

क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

बाढ़ से हाहाकार मची है
हर ओर छींक पुकार मची है
आशियाने बह रहे हैं सैलाबों उनके रेल में
जान बचाओ जान बचाओ धरती मां भी पुकार उठी है
जब जान बचाई एक बच्चे की सेना के जलदूतों ने
सलाम किया था बच्चे ने सैनिक को मन से सोचो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

यह भारत मां के बब्बर शेर गीदड़रों से नहीं डरते हैं
मातृभूमि के खातिर यह भूखों पेट लड़ते हैं
लोगों कि जान बचाने की खातिर जब भी भीषण बाढ में उतरते हैं
कंधो पर कई जिंदगियां बैठाकर पानी में मिलो पैदल चलते हैं
जबान ने जब जान बचाई एक मां की तो चरण स्पर्श कर लिए मां ने समझो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

ये वंशज है राणा के , पृथ्वी के , सुभाष के
इन सब के तेवर हैं जैसे भगत सिंह , आजाद के
मंगल पांडे , टाटा टोपे की बलिदानी इनको याद है
झांसी वाली रानी की कहानी इनको याद है
आतंकी धूर्त मूर्ख पड़ोसी को हमने चार बार हराया है
अब एक बार फिर लड़ने को वह हमसे अकुताया है
इस बार क्या होगा अंजाम तुम्हारा दुश्मन मेरे मत पूछो तुम
क्या है भारत की सेना दुनिया वालों देखो तुम

       मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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नज्म, बोलो क्यों लाज नही आयी तुमको

      नमस्कार, ये तो पुरी दुनिया जानती है कि हमारे देश भारत में आतंकवाद फैलाने वाला बढाने वाला एक ही देश है और वो है पाकिस्तान और पाकिस्तान केवल भारत के लिए ही नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए खतरा है | पाकिस्तान और उसके प्रयोजतीत आतंकवाद से हमारे देश भारत की सेना लड़ाने मे सक्षम है और लड ही रही है मगर यदि हमारे देश में ही रहकर हमारे देश के कुछ नेता हमारे देश का ही खाकर हमारे ही देश कि सेना का अपमान करते हैं और राष्ट की एकता को आघात पहुंचाते हैं तो एक कवि एक शायर को इस तरह कि नज्म कहने के लिए विवश कर देते हैं

बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

दशकों से कश्मीर को धू धू के जलाया तुमने
कश्मीरी पंडितों को उनके घर से भगाया तुमने
मारे हैं सैनिकों के गालों पर जो तमाचे तुमने
कश्मीर में सेना पर पत्थर भी फेकवाया तुमने
तिरंगे से लिपटे हुए वीर सपूतों को भ्रष्टाचारी कहके
शहीदों की शहादत का भी अपमान किया है तुमने
तुम्हारे ऐसे देशप्रेम की हो ढेरों बधाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

कभी कहते हो आतंकवाद का मजहब नहीं होता है
लेकिन फिर भी दुनिया को हिंदू आतंकवाद तुम ही बताते हो
जिस राम का नाम बसता है भारत के हरेक कण-कण में
उस राम के एक नाम को युद्धघोष तुम बताते हो
असली आतंकवाद देख चुकी है पूरी दुनिया की नजरें
क्या नहीं देता है दिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

हरेक रंग का फूल इस गुलिस्तान में शामिल है
जिस एक रंग से नफरत है तुम्हें कयामत तक
वह एक रंग भी मेरे तिरंगे की पहचान में शामिल है
जब भी कुछ कहते हो नफरत से ही कहते हो तुम मेरे लिए
यह जहरीली भाषा बोलो किसने है सिखाई तुमको
बोलो क्यों लाज नहीं आयी तुमको

       मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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