नमस्कार , कल हमरंग विषय पर यू ही ये कविता लिखी जिसे आपसे साझा कर रहा हूं
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
वह हरी हरी बिंदी के साथ
गुलाबी चुनरिया ओढ़े हुए
लाल चूडियाँ खनकाती हैं
काली आंखों का बंधन वो
प्रेम जिसका एक सहारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
कोई काले मीठे अंगूर जैसा
कोई लाल-लाल सेब के जैसा
संतरे के जैसा रसीला कोई
तो कच्चे आम जैसा खट्टा कोई
फल के हैं प्रकार ये सभी
बोलो तुम्हें कौन सा प्यारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
अलग-अलग है आकारों का रंग
अलग-अलग है विचारों का रंग
अलग-अलग है प्रकारों का रंग
सृजनयोगी सहयोगी हैं हम
हम सब में है वो एक समरंग
हां सृजन रंग ही हमारा सहारा है
वही हमरंग हैं हम , हर रंग हमारा है
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-02-2022) को चर्चा मंच "हर रंग हमारा है" (चर्चा अंक-4349) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को इतना सम्मान प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार डॉक्टर साहब 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार आदरणीया
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहुत आभार
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