नमस्कार , 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का मकसद जनमानस में पर्यावरण के प्रति चेतना जागरूक करना है | बढ़ती जनसंख्या से निरंतर पेड़ों की कटाई एवं जंगल का सफाया हो रहा है जिससे दिन-प्रतिदिन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है | इसका दुषपरिणाम मौसम में अनिश्चितकालीन परिवर्तन हो रहे हैं , तूफान बाढ़ , भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आना बढ़ गया है | इन सभी आपदाओं से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित किया जाए | यदि पर्याप्त मात्रा में पेड़ लगा दिए जाएं तो पृथ्वी का तापमान नियंत्रित किया जा सकता है | वृक्षारोपण मानव कल्याण की ओर बढ़ता हुआ एक सुनहरा कदम है और इसे हमें निरंतर जारी रखना चाहिए |
प्रकृति के इसी सौंदर्य का बोध कराती हुई तकरीबन एक साल पुरानी मेरी एक कविता है , जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -
पतझड़ का मौसम
ठंडी हवा
सुहानी धूप
फागुन का महीना
पुराने पत्ते टूट कर
पेड़ों में नए पत्ते उगने का मौसम
दिल के तिल - तिल बढ़ने का मौसम
पतझड़ का मौसम
सुहानी धूप
फागुन का महीना
पुराने पत्ते टूट कर
पेड़ों में नए पत्ते उगने का मौसम
दिल के तिल - तिल बढ़ने का मौसम
पतझड़ का मौसम
पेड़ों की छाया
प्रियतम की याद आती माया
फागुन की खूमारियां
दोस्त - यार , सखियां - सहेलियां
प्रीत से दूरियों का गम
कहीं प्यार का मदहोशी भरा आलम
पतझड़ का मौसम
प्रियतम की याद आती माया
फागुन की खूमारियां
दोस्त - यार , सखियां - सहेलियां
प्रीत से दूरियों का गम
कहीं प्यार का मदहोशी भरा आलम
पतझड़ का मौसम
मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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