सोमवार, 6 जनवरी 2020

कविता . घी अशुद्ध होगया

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

घी अशुद्ध होगया

जो धर्मग्रंथों बेदो पुराणो अपनिषदो
में नही हुआ वो होगया
शुद्धता कि पहचान
शुद्ध कि परिभाषा
अशुद्ध होगया
कैसे होगया तो जबाब मिला
फलाने ने छु दिया
फलाना कौन था ?
फला जाति फला लिंग का इंसान
हे भगवान
कैसे होगा कल्याण
ये तो अपवित्र हो गया
घी अशुद्ध होगया

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

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