शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

तीन रुबाईया

नमस्कार , ये तीन मुक्तक यानी की रुबाईया मैने 24 जनवरी 2017 को लिखा था |आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं

तीन रुबाईया


(1)

नफरतों से इश्क जब ज्यादा हो जाए
जनम जनम के साथ का जो वादा हो जाए
प्रेम की अमर दास्तां बने
मैं श्यामा हो जाऊंगा जो तू राधा हो जाए मुक्तक

(2)

तुम्हारे बिना अब मेरा कहीं गुजारा नहीं है
इस सागर का  अब और कोई किनारा नहीं है
पर्ची देखकर जब उन्होंने मेरी तरफ घूर कर देखा
तो हमने कहा यह कहीं और से आया है हमारा नहीं है

(3)

तू जो रुठ कर गई तो टूट कर बिखर जाएंगे हम
तेरे प्यार में हद से गुजर जायेंगे हम
वैसे  मुझे गहरे पानी से बहुत डर लगता है
लेकिन तेरे लिए उतने पानी में भी डूब कर मर जाएंगे हम   

     मेरी रुबाईयों के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Trending Posts