शनिवार, 10 दिसंबर 2016

हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती

   
      नमस्कार दोस्तों ,मैं हरि नारायण साहू आप सभी का एक बार फिर अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूं | आशा करता हूं मुझसे हुई गलतियों को आप लोग क्षमा करेंगे |
 
       मैं आप सभी से एक बात पूछना चाहता हूं , क्या? हारने के बाद या असफलता के बाद सब खत्म हो जाता है, क्या?असफलता के बाद सफलता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, क्या? एक बार गिर जाने के बाद फिर खड़े नहीं होना चाहिए | खड़ा होना चाहिए ना | फिर क्यों? हारने के बाद हम यह मान लेते हैं कि हम इस नाकामयाबी से उभर नहीं पाएंगे, फिर क्यों ? हम खुद से हताश हो जाते हैं, फिर क्यों ? हम इस अनमोल जिंदगी से निराश हो जाते हैं और आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाते हैं |

'हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

        हमें यह समझना चाहिए कि जीवन सिर्फ इतना सा नहीं है , जीवन तो सुख , दुख का , कामयाबी , नाकामयाबी का समयचक्र है जो निरंतर अपनी गति में चलता रहता है | हमें खुद को एक और मौका देना चाहिए खुद के भीतर कि प्रतिभा को दुनिया के सामने लाने के लिए |

       अपने इन्हीं जज्बातों को मैंने एक कविता की शक्ल देने की कोशिश की है | उम्मीद करता हूं मेरी यह कविता आप सभी को अच्छी लगेगी | कविता का शीर्षक है ,

                                                'हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

क्या हुआ अगर , गिर पड़े राह में
क्या हुआ अगर ,बाधाएं हैं चाह में
एकाग्रचित हो आगे बढ़ो
कभी-कभी मंजिले आसान नहीं होती
पर्वतों की चढ़ाई आसान नहीं होती
हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

'हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

एक बार नहीं बार-बार प्रयास कर
स्वयं पर विश्वास कर
चट्टानों से हारकर नदियां नहीं रोती
विजयपथ पर कठिनाइयां तो होंगी ही
बादलों से घिरकर भी चांदनी निराश नहीं होती
 हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

एक धागा टूट गया तो क्या हुआ
एक मौका छूट गया तो क्या हुआ
मन मारकर बैठना उचित नहीं
तैयार हो जाओ आने वाले कल के लिए
क्या नई सुबह के साथ नए दिन की शुरुआत नहीं होती
हारने के बाद , जिंदगी खत्म नहीं होती |

      मेरी यह कविता कैसी लगी मुझे जरूर बताइएगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ आप लोगों से बातें करने ,तब तक के लिए अपना ख्याल रखें ,नमस्कार |

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

बचपन वापस आना चाहिए


      नमस्कार दोस्तों ,मैं हरि नारायण साहू आपका अपने ब्लॉग पर स्वागत करता हूं | यह मेरा पहला ब्लॉग है इसलिए इसमें जो भी गलतियां हो उसके लिए आप लोग मुझे क्षमा करें|

       दोस्तों,'बचपन कितना सुनहरा होता है ना, किसी बात की चिंता नहीं ,किसी का डर नहीं बस दिन भर घूमना ,खेलना और खाना| लड़ना झगड़ना और सरारत करना| इंसान की जिंदगी में यह वह पल है जो शायद सबसे खूबसूरत होते हैं फिर हम जैसे जैसे बड़े होते हैं हमें चिंताएं सताने लगती हैं, कुछ बनने के लिए कुछ करने की भागदौड़ और परेशानियों से जिंदगी भर जाती है, हमारी मासूमियत कहीं खोज जाती है| इन्हीं बातों को सोचते हुए मैंने एक कविता लिखने की कोशिश की है उम्मीद करता हूं आप सभी को पसंद आएगी| कविता का शीर्षक है,

'बचपन वापस आना चाहिए'

 'बचपन वापस आना चाहिए' 

कहीं मिट्टी में खेलते हुए
कहीं तुतलाते बोलते हुए
कहीं आपस में झगड़ते हुए
कहीं तितलियों के पीछे दौड़ते हुए
जीवन की सारी परेशानियां भूल जाना चाहिए
 बचपन वापस आना चाहिए

न मन में छल हो
न किसी के प्रति ईर्ष्या हो
अहंकार हमें छुए नहीं
जीवन सदाचारी हो सदा
बिन बात मुस्कुराना चाहिए
बचपन वापस आना चाहिए

ना खबर हो दुनिया की
न धर्म की ,ना जात की
सब मिल एक साथ फिर गिल्ली डंडा खेलना गली में 
सब एक साथ रोना, हंसना
सब मिल मुस्कुराना चाहिए
बचपन वापस आना चाहिए

                मेरा यह प्रयास कैसा रहा अपने विचार जरुर बताइएगा |

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