बुधवार, 18 मई 2022

ग़ज़ल , इस शोर शराबे से हट निकला है

      नमस्कार , 16 मई 2022 यानी बुद्ध पूर्णिमा के पावन दिन पर आ रही खबरों के हवाले से मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आज आपके समक्ष हाजिर कर रहा हूं यदि ग़ज़ल पसंद आए तो अपने ख्याल हमसे साझा करें |


इस शोर शराबे से हट निकला है 

इल्ज़ामों के भवर से बच निकला है 


खबर तो सब यही बता रहे हैं 

पुराने तहखानों से सच निकला है 


उस इमारत की बुनियाद ही झूठ थी 

उसके गिरने से सच निकला है 


मैने यही समझा है लावा देखकर 

जमीन के रोने से फट निकला है 


मुहब्बत में गिरवी रखना पड़े दिल 

तनहा ऐसी गुलामी से बच निकला है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , वो और लोग हैं जिन्हें जमाने का संकट है

      नमस्कार , करीब दो से ढाई महीने पहले मैने इस ग़ज़ल को लिखा था और किसी पत्र या पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था | आज मैने ये निश्चय किया कि इसे अपने इस पटल पर साझा करुं |


वो और लोग हैं जिन्हें जमाने का संकट है 

मेरे सामने तो कमाने खाने का संकट है 


देने वाले देते होंगे अपनी जान मुहब्बत में 

मगर मुझे तो जान बचाने का संकट है 


बड़ी-बड़ी बातें बहुत अच्छी हैं मसलन 

दुनियां के सामने फलाने का संकट है 


नशीली आंखों का जादू उन पर नही होता 

जिनके सामने घर चलाने का संकट है 


अब आसमान से कोई फरिश्ता नही आएगा 

इन लोगों को ये सच समझाने का संकट है 


नही भी नहीं कहा उसने हां भी नहीं कहा उसने 

यही तो नए-नए दिवाने का संकट है 


अब मुहब्बत करना बहुत बड़ी बात नहीं है 

सब के सामने निभाने का संकट है 


तीन बार ना कहा है तनहा उसने मुझसे 

अब मुझे ये रिश्ता बचाने का संकट है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


ग़ज़ल , जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए

      नमस्कार , यह ग़ज़ल मैने करीब ढाई महीने पहले एक पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए लिखी थी जिसे मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि आप उस समय चल रही खबरों से इसे जोड़कर पढ़ेगें तो आपको इसका ज्यादा आनंद आएगा |


उसे इस बेतुके सवाल का जवाब चाहिए 

जिसे किताब के बदले में हिजाब चाहिए 


इस सुरत में भला तालीम को भी क्या हासिल होगा 

जहां किताब के हर पन्ने पर नकाब चाहिए 


मैं न मानूंगा तुम्हारी तरक्की पसंद दलीलों को 

यहां हर बच्ची जब तक न कहेगी मुझे किताब चाहिए 


एक ही घर है हिन्दुस्तान और हम सब को रहना है 

वही संस्कार और अदबो आदाब चाहिए 


अंजाम से बीना खौफ खाए जिसने सच बोला है 

ऐसे शख्स को मिलना तो ख़िताब चाहिए 


गैर की हयात के फैसले करते हैं जमी वाले 

ऐसे नामुरादों को भी खुदा से सवाब चाहिए 


हिन्दी और उर्दू ही नही कन्नड़ में भी शेर कहेगा तनहा 

हां बस आपकी मुहब्बतें बेहिसाब चाहिए 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


Trending Posts