नमस्कार , आज मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि ग़ज़ल आपको अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए
मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है
और जल्लादों को सिपाही कहना है
लगाई है ऐसी बंदिश जेहन पर मेरे
मुझे अपने क़ातिलों को भाई कहना है
जो है वो कह दूं तो बल्बा हो जाएगा
मुझे कुडे के ढेर को सफाई कहना है
पर्वतों से ऊँची है इंसानों की शोहरत
मुझे चिथड़े कम्बल को रजाई कहना है
न काफिया है न रदीफ शेर में तनहा
मगर मुझे तुकबंदी को रुबाई कहना है
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 29 जून 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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मेरी रचना को पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंवैसे वाकई आज कल ऐसा ही चल रहा है । बढ़िया लिखा है ।।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत शुक्रिया
हटाएंमेरी गुज़ारिश है कि आप मेरी नयी ग़ज़ल भी अवश्य पढ़े वह भी आपको इसी तरह पसंद आएगी
बहुत आभार
बहुत सुंदर, समयानुसार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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