नमस्कार , एक ऐसा छंद जो मुल रुप से हिंदी का नहीं है परंतु हिंदी साहित्य के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में शामिल है रुबाई उसका नाम होता है | रुबाई फारसी और उर्दू का छंद है जिसे दूसरे शब्दों में तराना या तरन्नुम भी कहा जाता है | गजल की पहली चार पंक्तियां रुबाई कहीं होती है | रुबाई और मुक्तक एक ही विधा है |
यहां मैं मेरी लिखी कुछ रुबाइयां आपके साथ साझा कर रहा हूं | मेरी ख्वाहिश है कि मेरी यह रचना है आपको बेहद पसंद आयें
(1)
वो सरेआम नहीं होने देता
मुझे गुमनाम नहीं होने देता
वो अब भी मिलाता है नजरें मुझसे
मुझे बदनाम नहीं होने देता
मुझे गुमनाम नहीं होने देता
वो अब भी मिलाता है नजरें मुझसे
मुझे बदनाम नहीं होने देता
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(2)
मोहब्बत को आजमाया था
किसी को अपना बनाया था
ये दास्तान बड़ी लंबी है
कभी मैंने भी दिल लगाया था
किसी को अपना बनाया था
ये दास्तान बड़ी लंबी है
कभी मैंने भी दिल लगाया था
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(3)
मैं मुखातिब हूं एक सितारे से
इश्क हो गया है इस नजारे से
तेरी दानाई पर यकीन है मुझे
दिल की बात कह रहा हूं इशारे से
इश्क हो गया है इस नजारे से
तेरी दानाई पर यकीन है मुझे
दिल की बात कह रहा हूं इशारे से
मेरी रुबाई के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
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