सोमवार, 25 जून 2018

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

     नमस्कार ,  नज्मों का मिजाज हमेशा से ही यू रहा है के कोई भी गमजदा , दिलफेक , इश्कजदा इंसान नज़्मों को पड़ता है और उन्हें अपने दिल के बेहद करीब पाता है |   नज़्मों के जरिए हमेशा से ही ऐसे विषय उठाए गए हैं जो समाज की भीड़ में कहीं खो से जाते हैं |  चाहे वह नारी शोषण हो , कन्या भ्रूण हत्या हो , बाल विवाह , बाल मजदूरी हो या फिर मोहब्बत हो तो |

      आज मैं जो नज़्म पेश करने जा रहा हूं इसे मैंने बस चंद दिनों पहले ही लिखा है | मेरी यह नज्म एक किताब की कहानी कहती है | नज्म का उनवान है -

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

कोई दिलकश नजारा होती
किताब होने से बेहतर था
कोई दिलकश नजारा होती
तो लोग निगाह लगाकर देखते तो सही
कुछ इल्म जुटाने की जद्दोजहद करते
मगर
किताब हूं
वह भी गुजरे हुए लम्हों की
संजीदा सी
उधड़े हुए जिल्ड वाली
गुमसुम मिजाज वाली
अपने कोई मोहब्बत की दास्तान तो हूं नहीं
तभी
शायद

         मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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