गुरुवार, 4 मार्च 2021

ग़ज़ल, , कौन कहता है के मुझे गम है

       नमस्कार , तकरीबन एक वर्ष पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी और लिखकर मैने कॉपी अलमारी में रख दी थी अब जब वक्त मिला तो दिल किया के कुछ पुराने लिखे भी दोस्तों के साथ साझा किए जाए तो हाजिर है ये ग़ज़ल |

कौन कहता है के मुझे गम है 

ये मेरा बहुत पुराना जख्म है 


क्या शिकायत करें इस जिस्म की हम खुदा से 

जो मिला है वही कौन सा कम है 


अभी कुछ और उलझेगा अभी कुछ और सुलझेगा 

ये उनके बालों में नया नया ख़म है 


पहले भी मेरी मोहब्बत नही समझता था आज भी नहीं 

मेरा सनम अब भी वही सनम है 


मैं जो कुछ भी तेरी तारीफ़ में लिख पाता हूं 

खुदा के नमाजें फन का करम है 

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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