बुधवार, 24 अप्रैल 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 2

    नमस्कार, कागज पर आडि तिरछी लकीर के समान कुछ पांच छह महीने में जो थोड़े बहोत मुक्तक लिख पाया हूं उन्हें आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं

पढने लायक किताब हो जाओ तो बताना मुझे
कोई नया ख़िताब हो जाओ तो बताना मुझे
क्या कहा तुम मेरी मोहब्बत हो ठीक है
जब मुझसे बेहिसाब हो जाओ तो बताना मुझे

अब अथाह गहराई तक उतरना पड़ेगा तुम्हें
ओंठ से दिल तक का रास्ता बहोत लम्बा है बहोत दुर तक चलना पड़ेगा तुम्हें
इस कमरे के हर कोने को रोशनी की जरुरत है
जुगनूओं अब चिराग बनकर जलना पड़ेगा तुम्हें

इस रात की सहर होगी तो नजर आएगा ये साया कौन है
ये तो वक्त ही बताएग तुम्हारा अपना कौन है पराया कौन है
रुको जरा गौर से सुनने दो ये आहट मुझे
कुछ मालुम तो चले मेरे दिल में आया कौन है

डर दिखाकर प्यार खरीदने आया है
मजहब के नाम पर एतबार खरीदने आया है
ये सोचकर अपने सपने मत बेच देना
बिरादरी का है पहली बार खरीदने आया है

करना ही चाहो अगर इतनी बुरी चीज भी नही है
रसीद नही मिलती इसकी पक्की चीज नही है
दिल विल टूटने का खतरा बना रहता है और क्या
ये मोहब्बत ओहब्बत कोई अच्छी चीज नही है

    मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे

    नमस्कार, कागज पर आडि तिरछी लकीर के समान कुछ पांच छह महीने में जो थोड़े बहोत मुक्तक लिख पाया हूं उन्हें आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं

लोकतंत्र के गाल पर एक और थप्पड अच्छा नही होगा
मां भारती के रखवालो पर अब एक और पत्थर अच्छा नही होगा
हिन्दुस्तान के बाहर भीतर के दुश्मनों गद्दारो कान लगाकर तुम ये सुनलो
भारतीय फौज के सब्र का बांध टूटेगा तो अच्छा नहीं होगा

एक तो सीट हरा के आया है
दुसरा पैसा गवा के आया है
आईना देख लेता चुनाव लड़ने से पहले
अपनी जमानत तक बचा न पाया है

तो फिर जंगे मैदान में आते क्यों हो
अमन की बात करते हो तो फिदायीन हमले करवाते क्यों हो
तुम तो कहते हो के भारतीय वायुसेना ने कुछ दरख़्त मार गिराए हैं बस
तो फिर टूटे दरख्तों का इंतकाम लेने भारतीय सीमा में आते क्यों हो

खुद अपनी शख्सियत मिटाने में डर लगता है
फिर से दिल लगाने में डर लगता है
बड़ी जतन से एक बार जला पाया हूं
अब ये चिराग बुझाने में डर लगता है

यहां हर एक का इमान आजमाकर बैठा हूं
इसलिए बाजार में अपनी कीमत लगाकर बैठा हूं
बो चाहता था के मोहब्बत के बहाने से मेरा सब कुछ लूट ले जाए
इसलिए मै खुद ही सब कुछ गवाकर बैठा हूं

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मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

शेरो शायरी, कुछ रुह की सुना दूं 6

   नमस्कार, तीन चार महीनो के अंतराल में जो कुछ थोडे बहोत शेर कह पाया हूं वो आपके दयार में रख रहा हूं समात करें

वहां चोरों का परिवार नाम बदलकर रहता है
बदन पर कपड़े सलामत चाहते हो तो उस गली जाना मत

ये एक दीया जला है जो तुम्हारे हक की रोशनी तुम्हें देता है
यदि उजाले में रहना चाहते हो तो ये दीया बुझाना मत

जलती हुई धूप को ठंडा कर दिया इसने
इसी बीन मौसम की बरसात ने चंद लम्हे सुकून के मयस्सर कराए हैं हमे

तुम्हें जरा देर से समझ आएगी
ये मेरे दिल की बात है यार

शायरी सब को समझ में नहीं आती
बहोत सही बात है यार

तनहा तुम आज खुलकर कह दो
जो वो नही समझ रहे हैं वही बात है यार

मिलने को फुल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
पत्थर का क्या है कही भी हो सकता है

कमी तो तनहा चलने वालों में होगी वरना
रास्ता तो कही भी हो सकता है

तुम्हारे दिल पर ऐसे ही किसी ऐरे गैरे कि हुकूमत नही होनी चहीए
तुम नेहा हो तुम्हें झूठी तारीफ़ों की जरुरत नही होनी चाहिए

इस रात की सहर होगी तो नजर आएगा ये साया कौन है
ये तो वक्त ही बताएग तुम्हारा अपना कौन है पराया कौन है

डर दिखाकर प्यार खरीदने आया है
मजहब के नाम पर एतबार खरीदने आया है

ये सोचकर अपने सपने मत बेच देना
बिरादरी का है पहली बार खरीदने आया है

करना ही चाहो अगर इतनी बुरी चीज भी नही है
रसीद नही मिलती इसकी पक्की चीज नही है

दिल विल टूटने का खतरा बना रहता है और क्या
ये मोहब्बत ओहब्बत कोई अच्छी चीज नही है

तुम्हें तिजारत करने का सलीका नही आता
दुनियां को डराने का सही तरिका नही आता

बस यही खता होती है मुझसे बार बार
मुझे घुमा फिरा कर बात करना नही आता

यहां कोई खुटे से बंधा नही हैं
मै कोई हाथी नही हूं और तू भी कोई गधा नही है

पत्थर भी अगर प्लास्टिक होगा तो पानी पर तैर जाएगा
यहां सच किसी से छीपा नही है

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शेरो शायरी, कुछ रुह की सुना दूं 5

    नमस्कार, तीन चार महीनो के अंतराल में जो कुछ थोडे बहोत शेर कह पाया हूं वो आपके दयार में रख रहा हूं समात करें

आज तेरे बहोत करीब आया हूं मैं
खुद से बहोत दुर जाना है मुझे

फकत कौन चाहता है घर छोड़कर सफर करना
पेट की आग परिंदों को दरबदर भटकाती है

हर शहर में एक नया घर बनाना पड़ता है
मुसाफिर होने में यही खसारा है

सितमगरो देखो ना में हंस रहा हूं
मुझे रोता हुआ देखना चाहते थे ना तुम लोग

उस लहजे में नही इस लहजे में गुफ्तगू करुं तुमसे
यही तरिका चाहते थे ना तुम लोग

तेरी खिड़की की तरफ से ये उजाला कैसा
आज की रात रात है या कुछ और है

तुम कह रही हो तुम्हें फूलों से पत्तों से मोहब्बत है
यही बात है के बात कुछ और है

पढने लायक किताब हो जाओ तो बताना मुझे
कोई नया ख़िताब हो जाओ तो बताना मुझे

क्या कहा तुम मेरी मोहब्बत हो ठीक है
जब मुझसे बेहिसाब हो जाओ तो बताना मुझे

अभी तो तुम किसी आंगन का चिराग हो
जब कभी आबताब हो जाओ तो बताना मुझे

अब अथाह गहराई तक उतरना पड़ेगा तुम्हें
ओंठ से दिल तक का रास्ता बहोत लम्बा है बहोत दुर तक चलना पड़ेगा तुम्हें

इस कमरे के हर कोने को रोशनी की जरुरत है
जुगनूओं अब चिराग बनकर जलना पड़ेगा तुम्हें

वो जो कभी मेरे जिस्म को लिबास की तरह पहनेगा
बस उसके लिए खुद को साफ सुथरा बनाए रखा है

आज महफिल ए सुखन के निजाम जो बने बैठे हो तुम
तो याद रहे के हर सुखनवर के शेर पर वाह वाह कहना पड़ेगा तुम्हें

अभी तो ये इंसानो के रहने के लायक ही नहीं है
अभी तो इस शहर में थोडा सा जंगल मिलाया जाएगा

यकीनन मुल्क को खिलौनो का घर बना दोगे
गर एक बच्चे को घर का मालिक बना दोगे

तरक्की का ख्वाब पुराना पैतरा हैं उनका
ख़ानदानी मक्कारों के बहकावे में आना मत

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शेरो शायरी, कुछ रुह की सुना दूं 4

    नमस्कार, तीन चार महीनो के अंतराल में जो कुछ थोडे बहोत शेर कह पाया हूं वो आपके दयार में रख रहा हूं समात करें

तेरी मोहब्बत का असर देखुंगा
एक बार जहर पीकर देखुंगा

तो फिर जंगे मैदान में आते क्यों हो
अमन की बात करते हो तो फिदायीन हमले करवाते क्यों हो

तुम तो कहते हो के भारतीय वायुसेना ने कुछ दरख़्त मार गिराए हैं बस
तो फिर टूटे दरख्तों का इंतकाम लेने भारतीय सीमा में आते क्यों हो

सुना है के तुम हमसे याराना करना चाहते हो
तो मिया आतंकवादी को आतंकवादी कहने में घबराते क्यों हो

खुद अपनी शख्सियत मिटाने में डर लगता है
फिर से दिल लगाने में डर लगता है

बड़ी जतन से एक बार जला पाया हूं
अब ये चिराग बुझाने में डर लगता है

शेर से आंख मिलाने की औकात नही रखते
झुंड में तो कुत्ते भी हाथी को देखकर भोंकते हैं

बड़े बड़े मका मिलते हैं मगर वजूद नही मिलते यार
इस शहर में सब कुछ मिलता है मगर ताजे अमरुद नही मिलते यार

कितना मुनासिब होता अगर ये तयशुदा शफर नही होता
और तो सब कुछ है मगर यहां मां के हाथ का खाना मयस्सर नही होता

वो जो इस इमारत कि दसवीं मंजिल पर एक मदारी रहता है
इससे ज्यादा खुश मेरे गाव की गली का भिखारी रहता है

मेरे खिलाफ उठी हर एक आवाज की हिसाब दूं क्या
अब मै कुत्तो के भोंकने का भी जबाब दूं क्या

तेरे पहलु में बैठकर दो धडी रो भी नही पाया मै
कुछ खत लिखे थे तुझे देने को दे भी नही पाया मै

चल ना ज़िन्दगी आज कुछ ज्यादा मुनाफा कमाते हैं
बड़े दिन होगए गाव घूमकर आते हैं

यहां हर एक का इमान आजमाकर बैठा हूं
इसलिए बाजार में अपनी कीमत लगाकर बैठा हूं

बो चाहता था के मोहब्बत के बहाने से मेरा सब कुछ लूट ले जाए
इसलिए मै खुद ही सब कुछ गवाकर बैठा हूं

इसकी बिसात हजारों दुआओं से ज्यादा है
कलाई पर बंधी राखी को सिर्फ धागा मत समझलेना तुम

किन अल्फ़ाज़ों से नवाजू में ऐसे रईसजादों को
कमीना लफ्ज भी इनसे बेहतर होता है

यार ये मोहब्बत करना ठीक नही है
मरने के लिए कोई और रास्ता तलाशुंगा मैं

अपने सारे गम हिफाजत से रखता हूँ मैं
अभी कुछ दिन और मुस्कुराना है मुझे

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ग़ज़ल, यहां सच किसी से छीपा नही है

   नमस्कार, आज ही लिखी मेरी इस गजल के कुछ शेर यू देखे कि और आजकल हमारे देश में आम चुनाव हो रहे हैं इसे ध्यान में रखकर ये गजल देखें

यहां कोई खुटे से बंधा नही हैं
मै कोई हाथी नही हूं और तू भी कोई गधा नही है

पत्थर भी अगर प्लास्टिक होगा तो पानी पर तैर जाएगा
यहां सच किसी से छीपा नही है

क्या अंजाम चाहते हो अपनी कहनी का अब फैसला तुम्हें करना है
सोच लेना वो पेड़ पेड़ ही नहीं है जो हरा नही है

नफरत का जहर अभी भी फुक रहा है मुल्क में
बस सिर कटा है सांप अभी मरा नही है

देने को तो देवताओं को भी गाली दे देते हैं कुछ लोग
जितना प्रचार किया जा रहा है वो शख्स उतना भी बुरा नही है

नागफनी को गुलाब कहो या शराब को शहद
यहां झूठ बोलने की कोई सजा नही है

शहर तुम्हारा है हवा तुम्हारी है सांस तुम्हें लेना है
तनहा मेरे कहने को और कुछ बचा नही है

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मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

ग़ज़ल, पत्थर का क्या है कही भी हो सकता है

   नमस्कार, आज ही लिखी मेरी इस गजल के कुछ शेर यू देखे कि

यकीन कही भी बेअसर हो सकता है
भूत होने का डर कही भी हो सकता है

दिल यहां सही सलामत हैं
उसका धड कही भी हो सकता है

मिलने को फुल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
पत्थर का क्या है कही भी हो सकता है

हर जगह मोहब्बत करना नामुमकिन है
झगड़ा तो कही भी हो सकता है

कमी तो तनहा चलने वालों में होगी वरना
रास्ता तो कही भी हो सकता है

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ग़ज़ल, मोहब्बत नयी बात है यार

   नमस्कार, आज ही लिखी मेरी इस गजल के कुछ शेर यू देखे कि

वही पुरानी बात है यार
आज फिर चांदनी रात है यार

तुम्हें जरा देर से समझ आएगी
ये मेरे दिल की बात है यार

शायरी सब को समझ में नहीं आती
बहोत सही बात है यार

में उसे पिछले कई वर्षों से जानता हूं
मगर मोहब्बत नयी बात है यार

तनहा तुम आज खुलकर कह दो
जो वो नही समझ रहे हैं वही बात है यार

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शनिवार, 13 अप्रैल 2019

कविता, एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

    नमस्कार, इस कविता की भूमिका में मै कुछ भी नही कहना चाहता आप पढीए एवं स्वयं फैसला कीजिए कैसी रही हां बस इतना कहना चाहूंगा के ये मेरी अभी तक की कुछ बेहतरीन रचनाओं में से एक है

एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

शैतानों हैवानों का राज है इस कलयुग में
एक सच्ची कहानी लिख रहा हूं कविता के रूप में

तपती दुपहरी में पीपल का छाव था
रहती थी मुनिया जहां एक ऐसा भी गांव था
 
किसी कोमल फूल के पंखुड़ियों सी सरस
करती थी काम मगर उम्र थी बारह बरस

जीतोड़ मेहनत से दो वक्त का गुजारा मुमकिन था
रहते थे खुशहाल भले परिवार दीन था 

परिवार में एक बुढ़िया रमुआ और उसकी पत्नी थी
मुनिया अकेली नहीं चार बहने थी

एक दिन की बात है आरही थी काम से
समझना दिमाग से सुनना मगर ध्यान से

बेधड़क चलते थे भेड़िए सीना तान के
आखिर क्यों नही चिराग थे ठाकुर खानदान के

नहर के मोड पर संकरी थी गली
मासूम कुमारी हवस की आग में जली

फाड़ डाला उसके बदन के चीर को
चार चार कुत्तों ने मिलकर नोचा उसके शरीर को

खून के दाग धोकर चले गए
अधमरा कर नहर में फेंककर चले गए

इस कायर जमाने में अपनी जिंदगी जीने से डर गयी
नहर के पानी में मुनिया डुबकर मर गयी

घर न आई मुनिया दिन से रात , रात से सहर हुई
तब कही जाकर खोजबीन शुरु हुई

एरिया के पुलिस को किसी से जानकारी मिली
नहर में एक बच्ची कि लाश है मिली

रोते मां बाप को खिचकर दुर हटाया गया
सबके सामने लाश का शिनाख़्त कराया गया

कैसे है करतूत का सबूत मिटाय जल्लादों
अपने अपने बापों को डर के मारे सब बताया ठाकुरों के औलादों ने

बेटों को फाँसी पर चढ़ता सोचकर
ठाकुरों ने तरकीब निकाला ताल ठोंककर

डॉक्टर की कलम से सच पहली बार निकला
पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में सामूहिक बलात्कार निकला

सब को अपनी अपनी किमत ठाकुरों से मिल गयी
चंद मिनटों के अंदर अंदर पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बदल गयी

पुलिस ने भी गुनहगारों को सजा होने से बचा लिया
ठाकुरों की फेंकी बोटीयां खाया और पचा लिया

जिसने भी यह खबर सुनी उसकी रुह तक डर गयी
पुलिस ने रिपोर्ट निकाला गरीबी से तंग आकर मुनिया नगर में कूदकर मर गयी

हर सरकार यही कहती है हमे गरीबी मिटानी है
मगर गरीबों की अब भी वही कहनी है

अमिर अब भी फाइबस्टार होटल में लाखों का खाना खाते हैं
गरीबी में अब भी बच्चे कुपोषण से भूख से मर जाते हैं

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गाना, मै सातों वचन मोहब्बत मांगती हूं

    नमस्कार, ये गाना मैने तकरीबन एक साल पहले लिखा था अभी तक इसे आपके सामने ये सोचकर नही रख रहा था के मुझे लगता है कि मेरा ये गाना थोडा सा अस्सी - नब्बे के दशक में आने वाले गानों के जैसा है तो मुझे लगता था के यहां तो सुनना भी नही है पढना है और इस तरह के गाने को एक ब्लॉग पर कौन पढ़ेगा | लेकिन कल जब मैने मेरे एक दोस्त को कवि प्रदीप का लिखा एक गाना कही से पढ़ते देखा तो मुझे भी लगा कि मुझे भी मेरा गाना आपके सामने रखना चाहिए सो आज यहा लिख दिया

मैं सातों वचन मोहब्बत मांगती हूं

न ऐसो आराम न रुतबा तुम्हारा
न धन न दौलत न गहने मांगती हूं
हर जन्म तुम रहना साथ मेरे पिया
मैं सातों वचन मोहब्बत मांगती हूं

सीताराम सी जोडी हो अपनी
खुशीयां रहें ज्यादा हमेशा
कमाई भले हो थोड़ी अपनी
मै भला कहा कोई ताजमहल चाहती हूं
हर जन्म तुम रहना साथ मेरे पिया
मैं सातों वचन मोहब्बत मांगती हूं

तुमको प्राणों से प्यारी रहूं
सातों जन्म तुम मेरे रहो
सातों जन्म मै तुम्हारी रहूं
तुमको ही बस मै वर चाहती हूं
हर जन्म तुम रहना साथ मेरे पिया
मैं सातों वचन मोहब्बत मांगती हूं

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भजन, मेरी लेखनी में उतरआ मां मै तुझे बुलाता हूं

     नमस्कार , आज मै आप को मेरी कुछ दिन पहले लिखी मेरे जीवन की पहली सरस्वती वंदना सुना रहा हूं मुझे इस बार पुरा विश्वास हैं कि मेरी ये छोटी सी सरस्वती वंदना आपको पसंद आएगी

मेरी लेखनी में उतरआ मां मै तुझे बुलाता हूं

मेरे हर राग हर छंद का सार मुझे बनाता हूं
तेरे कमल चरणों में अपना सिर झुकाता हूं
हे मां वीणावादीनी तेरी अर्चना में अपने शब्द चढाता हूं
मेरी लेखनी में उतरआ मां मै तुझे बुलाता हूं

सारे अलंकार तेरे ही
सारे रस तुझसे ही
तेरे आने की आशा में
मैं अपना आंगन किताबों से सजाता हूं
मेरी लेखनी में उतरआ मां मै तुझे बुलाता हूं

सातों सुर तेरे उपासक
सारे राग तेरे सेवक
हे मां उसे संगीतमय करदे
जैसा भी हो मै जो कुछ भी गाता हूं
मेरी लेखनी में उतरआ मां मै तुझे बुलाता हूं

     मेरा भजन अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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बुधवार, 10 अप्रैल 2019

ग़ज़ल, तनहा ये तरिका बदलना पड़ेगा तुम्हें

    नमस्कार, आज ही लिखी मेरी इस गजल के कुछ शेर यू देखे कि

अब अथाह गहराई तक उतरना पड़ेगा तुम्हें
ओंठ से दिल तक का रास्ता बहोत लम्बा है बहोत दुर तक चलना पड़ेगा तुम्हें

हुस्न भी हुस्न के बगैर बेकाम है
इन खुबसुरत चेहरों के लिए कुछ शेर कहना पड़ेगा तुम्हें

मोहब्बत को मां के हाथ का बना हलवा मत समझलेना
एक ही ज़िन्दगी में कई बार जीना मरना पड़ेगा तुम्हें

अब भी अगर खामोश रहे तो सर काट डाला जाएगा
अपनी जान बचाने के लिए अब लड़ना पड़ेगा तुम्हें

इस कमरे के हर कोने को रोशनी की जरुरत है
जुगनूओं अब चिराग बनकर जलना पड़ेगा तुम्हें

ऐसे तो उन्हें मोहब्बत समझ में आने से रही
तनहा ये तरिका बदलना पड़ेगा तुम्हें

     मेरी यह गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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