नमस्कार , लगभग हफ्ते भर पहले मैने एक छोटी सी नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है आपका प्यार मिलेगा |
मैने उसका मेरे दिल में घर होने दिया
मैने जहर को असर होने होने दिया
मै भी चाहता तो अधुरी छोड़ सकता था
मैने कहानी को मुख्तसर होने दिया
रात भर मर मे भी मर सकता था रिश्ता
मगर मैने ही सहर होने दिया
दर्द तो इतना था के मत ही पूछो तनहा
मगर मैने उसे बेअसर होने दिया
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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