नमस्कार , यह कृण्डलियां मैने 29 जुलाई 2018 को लिखी थी | आज मै इन्हें आप समक्ष रख रहा हूं |मुझे आशा है कि मेरी ये रचनाए आप को अच्छी लगेंगी -
हरि की कृण्डलियां
(1)
कर्मरत मन हो , लक्ष्य तय हो तुम्हारा
तैरना जिसे आता है , मिल जाता है उसे किनारा
मिल जाता है उसे किनारा , जो धार से लड़ते हैं
समय की धारा पर , नाम अपना लिखते हैं
कहे कवि हरि , फल पाते हैं वो
फल पाने की चाह छोड़ , कर्म को धर्म बनाते हैं जो
तैरना जिसे आता है , मिल जाता है उसे किनारा
मिल जाता है उसे किनारा , जो धार से लड़ते हैं
समय की धारा पर , नाम अपना लिखते हैं
कहे कवि हरि , फल पाते हैं वो
फल पाने की चाह छोड़ , कर्म को धर्म बनाते हैं जो
(2)
पानी सिर बादल बने , बने बादल से पानी
सब पहले से निर्धारित है , नियति केहू न जानी
नियति केहू न जानी , तब काहे की सोच
कल की चिंता छोड़ दे , बस आज की तू सोच
कहत कवि हरि , अज्ञान है मनुष्य
वर्तमान खो देता है , सोचने में भविष्य
सब पहले से निर्धारित है , नियति केहू न जानी
नियति केहू न जानी , तब काहे की सोच
कल की चिंता छोड़ दे , बस आज की तू सोच
कहत कवि हरि , अज्ञान है मनुष्य
वर्तमान खो देता है , सोचने में भविष्य
मेरी कृण्डलियां के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
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