शनिवार, 4 अगस्त 2018

हरि की कृण्डलियां

नमस्कार , यह कृण्डलियां मैने 29 जुलाई 2018 को लिखी थी | आज मै इन्हें आप समक्ष रख रहा हूं |मुझे आशा है कि मेरी ये रचनाए आप को अच्छी लगेंगी -

कृण्डलियां


हरि की कृण्डलियां

                            (1)

कर्मरत मन हो , लक्ष्य तय हो तुम्हारा
तैरना जिसे आता है , मिल जाता है उसे किनारा
मिल जाता है उसे किनारा ,  जो धार से लड़ते हैं
समय की धारा पर ,  नाम अपना लिखते हैं
कहे कवि हरि ,  फल पाते हैं वो
फल पाने की चाह छोड़ , कर्म को धर्म बनाते हैं जो

                            (2)

पानी सिर बादल बने , बने बादल से पानी
सब पहले से निर्धारित है , नियति केहू न जानी
नियति केहू न जानी ,  तब काहे की सोच
कल की चिंता छोड़ दे , बस आज की तू सोच
कहत कवि हरि , अज्ञान है मनुष्य
वर्तमान खो देता है , सोचने में भविष्य

       मेरी कृण्डलियां के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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