रविवार, 12 अगस्त 2018

ग़ज़ल, वह अपने मुकद्दर बनेगा

नमस्कार , गजलों की इस फ़ेहरिस्त में एक और खुशगवार इजाफा हुआ है | जिस दिल का तू मुकद्दर बनेगा इस गजल को मैने 10 नवम्बर 2017 को लिखा था | गजल का मतला और दो तीन शेर देखें के -

जिस दिल का तू मुकद्दर बनेगा
वह अपने मुकद्दर का सिकंदर बनेगा

कड़ी धूप जब भी सताएगी मुझको
यकी है मुझे तू मेरा साया बनेगा

किसी और को मैं कैसे चाहूं
जब तेरा प्यार मेरा खुदाया बनेगा

मैं क्यों हाथ की लकीरों को देखूं
मेरा हमसफ़र तेरा साया बनेगा

यूं हक से न पूछो गम की वजह को
नई पहचान तेरा सितमगर बनेगा

रेजा - रेजा टूटा था ख्वाबों का घर
जिसे हमने सोचा था महल बनेगा

     मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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