नमस्कार , टुटा हुआ कांच हूं छुओगे तो चुभ जाऊंगा गजल को मैने 1 फरवरी 2017 को लिखा था | गजल का मतला और दो तीन शेर देखें के -
टुटा हुआ कांच हूं छुओगे तो चुभ जाऊंगा
मोम का पत्थर हूं आंसुओं से भी पिघल जाऊंगा
मोम का पत्थर हूं आंसुओं से भी पिघल जाऊंगा
अब तक घर नहीं है क्या बताऊं पता तुमको
बहता हुआ पानी हूं नहीं मालूम कहां जाऊंगा
बहता हुआ पानी हूं नहीं मालूम कहां जाऊंगा
मैं तो मजबूर हूं सच बताएगा आइना तुमको
मैं मर जाऊंगा उस दिन जब तुम्हें भुलाऊंगा
मैं मर जाऊंगा उस दिन जब तुम्हें भुलाऊंगा
नफरत का दायरा इतना छोटा है कि क्या बताऊं तुमको
मैं जो खोना भी चाहूं तो कहीं ना कहीं मिल जाऊंगा
मैं जो खोना भी चाहूं तो कहीं ना कहीं मिल जाऊंगा
ये वादा है न टूटेगा मरते दम तक
मैं जो जाऊंगा तो लौट कर ना आऊंगा
मैं जो जाऊंगा तो लौट कर ना आऊंगा
तुम मुझे माफ करो ये हम नहीं कहते
इतना मालूम है रुलाकर तुम्हें मैं ना मुस्कुराऊगा
इतना मालूम है रुलाकर तुम्हें मैं ना मुस्कुराऊगा
मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
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