नमस्कार , एक ग़ज़ल का मतलब और कुछ शेर देखे | ये जो ग़ज़ल मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं इसे मैंने तकरीबन 4 महीने पहले लिखा है | गजल पेश-ए-खिदमत है -
आज आसमान में सितारे नहीं हैं
शुक्र है रात उनके सहारे नहीं है
शुक्र है रात उनके सहारे नहीं है
समय रहते ही मिट गई सभी ग़लतफ़हमियां
अब ये जाहिर है के वो हमारे नहीं हैंं
अब ये जाहिर है के वो हमारे नहीं हैंं
साहिल भी है , दरिया भी है और जाना भी है उस पार
एक नाम भी है मगर पतवारें नहीं हैं
एक नाम भी है मगर पतवारें नहीं हैं
सुकून के लम्हे मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाते हैं
हमने ऐसे लम्हे कभी गुजारे नहीं हैं
हमने ऐसे लम्हे कभी गुजारे नहीं हैं
ये शहर भी वही है ये लोग भी वही हैं
मगर इस शहर में दिलवाले नहीं हैं
मगर इस शहर में दिलवाले नहीं हैं
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
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