शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

ग़ज़ल, शायर का मिजाज तो अंगारा होना चाहिए था

एक नई ग़ज़ल आपके सामने रख रहा हूं। 


शायर का मिजाज तो अंगारा होना चाहिए था 

और उसकी शायरी को तो शरारा होना चाहिए था 


ये जो लड़की अदाएं दिखा रही है सिर पर ईंटें उठाएं हुए 

असल मे इस लड़की को तो अदाकारा होना चाहिए था 


जिस कली को फूल बनने के पहले ही तोड़ा गया हो 

ऐ मेरे परमात्मा उसका जन्म तो दोबारा होना चाहिए था 


अपनी गरीबी का मजाक बना रही है उड़ने का सपना देखकर 

इस लड़की की किस्मत में तो एक सितारा होना चाहिए था 


अब मेरे एहसास किसी समंदर कि तरह हो गए हैं 

मगर इसमें तो एक किनारा होना चाहिए था 


जब बहुत जरुरत थी छांव कि तभी वह पेड़ उखड़ गया 

बुढ़ापे में तो बच्चों को मां-बाप का सहारा होना चाहिए था


मैं जानता हूं तुम क्या सोच रहे हो साकी 

ये सारा मयखाना तो तुम्हारा होना चाहिए था 


हमने कई वर्षों तक तनहा रातें गुजारी हैं 

नुर-ए-मुहब्बत पर पहला हक तो हमारा होना चाहिए था


ग़ज़ल कैसी रही मुझे कमेंट करके अवश्य बताएं, नमस्कार। 

बुधवार, 24 जुलाई 2024

पुस्तक प्रकाशित, देह मन्दिर को बनाकर

नमस्कार, हर लेखक या कवि का यह सपना होता है कि एक दिन उसकी किताब प्रकाशित होगी और अब वह मेरा सपना सच हो गया है। 

मेरा पहला कविता संग्रह अब उपलब्ध है Amazon और Flipkart पर, लिंक निचे दिया गया है।

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मंगलवार, 23 जुलाई 2024

कविता, भारत अखंड है, अखंड ही रहेगा |

नमस्कार, मेरी एक नयी कविता आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं |


भारत अखंड है, अखंड ही रहेगा 


विविध रंगों से भरा है यह देश हमारा 

हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला है उजियारा 

पूरब पश्चिम,उत्तर दक्षिण,सब है एक ही धारा

सम्पूर्ण भारत है प्राण हमारा 


भाषा,धर्म,रीति-रिवाज, भिन्न भिन्न हो सकते हैं

पर दिलों में प्रेम देश का सदा एक ही रखते हैं 

एक सूत्र में बंधे हैं हम भारत माता की संतानें 

भारत माता की शक्ति से खड़े हैं हम हर मुश्किल में सीना ताने 


नफ़रत और बंटवारे की कोशिशें होंगी नाकाम सदा 

एक भारत की भावना रहेगी सदैव ही अटल यहां 

आओ मिलकर हम सब इस महान देश का गुणगान करें 

भारतवर्ष की होगी जय-जयकार सदा सारे जग में ये ऐलान करें


कविता कैसी लगी मुझे कमेंट करके अवश्य बताएं, नमस्कार | 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

ग़ज़ल, अपनी नजरों से आज़ाद कर मुझे

आज फिर एक बार हाजिर हूं अपनी एक नई ग़ज़ल के साथ|


अपनी नजरों से आज़ाद कर मुझे 

अब ना और बर्बाद कर मुझे 


तू मशहूर है दुनिया बनाने के लिए 

तो फिर अब आबाद कर मुझे 


मैं ताराज हूं तेरे ख्यालों में 

आ फिर से नाराज़ कर मुझे 


आजकल दिल मेरा बहुत खुशमिजाज है 

तुझसे इल्तज़ा है नासाज कर मुझे 


मैं ने एकतरफा निभाई है रश्म मोहब्बत कि 

अब तनहा इस रिश्ते से आज़ाद कर मुझे


अगर ग़ज़ल आपको अच्छी लगे तो मुझे कमेंट करके अवश्य बताएं मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा|नमस्कार|

सोमवार, 15 अप्रैल 2024

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग ४

 भाग ४

२२ जनवरी सन २०२४ का वह पावन दिन

सुखद मंगलकारी और मन भावन दिन

जब देखा पुरे विश्व ने राम को नव मंदिर में

हर्षित हो गई मनगंगा ऐसा अतिपावन दिन


अंत हो गयी अंतहिन प्रतीक्षा 

युगों युगों तक होगी समीक्षा

राम अवध के अवध राम की

पुर्ण हो गई मन की सब इच्छा

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग ३

 भाग ३

जब कलयुग ने विस्तार किया

असत्य का सत्कार किया

नष्ट होने लगी जब मर्यादा

राम का तिरस्कार किया


विश्वास को अविश्वास दिया

समृद्धि को उपहास दिया

कामी कपटी लोभी मोही सत्ताओं ने

फिर राम को वनवास दिया


अब का वनवास पांच सौ वर्षो था 

अंधकार का ये कालखंड संघर्षो का था 

बस एक नाम था भारत के पास राम 

पुनः गृह आगमन का प्रतीक्षा काल वर्षों का था

कविता, राम का आधुनिक वनवास भाग २

 भाग २


तब कर्म ने अधिकार लिया

पृथ्वी पर उपकार किया

मर्यादा की स्थापना के लिए

प्रभु ने राम रुप अवतार लिया


जब पुरुषोत्तम ने पुरुषार्थ दिखाया

आतंक को यथार्थ दिखाया

पाप और अत्याचार का दमन कर

विश्व को सत्यार्थ दिखाया 


मर्यादा पुरुषोत्तम को जान लिया

जग ने सत्य को मान लिया

फिर राम राज्य नही होगा

पृथ्वी ने भी पहचान लिया

कविता , राम का आधुनिक वनवास भाग १

 भाग १

एक वनवास तब मिला था

जब लंका में पाप बढ़ा था

धर्म की हानी हो रही थी

चारों दिशाओं में त्राहिमाम मचा था


नारी का सम्मान नही था

मर्यादा का मान नही था

मानवता का ज्ञान नही था

कोई संविधान नही था


नीति नही थी न्याय की

वह प्रतिष्ठा नही थी गाय की

सत्य का आभाव था

रीति चल रही थी अन्याय की

रविवार, 21 जनवरी 2024

गीत , राम आए हैं भाई रे

एक नयी गीत आपके साथ साझा कर रहा हूं आपके प्यार की उम्मीद है 

राम आए हैं भाई रे 


जन्मभूमि में भवन बना है

भारत पर से कष्ट हटा है

सूर्यवंश का सूर्य उगा है

मैं कहता हूं सच्चाई रे

राम आए हैं भाई रे 

राम आए हैं माई रे


बरस पांच सौ वनवास रहे हैं

सारे भक्त उदास रहे हैं

करोड़ो मन निराशा रहे हैं

आज मंगल घड़ियां आई हैं

मैं गाता गीत बधाई रे

राम आए हैं भाई रे

राम आए हैं माई रे


ढोल नगाड़े बाजेंगे

अवध में राम बिराजेंगे

सब हर्षित होकर नाचेंगे

राम राज्य फिर आएगा 

भगवान करेंगे भलाई रे

राम आए हैं भाई रे

राम आए हैं माई रे

मेरी ये रचना आपको कैसी लगी मुझे जरूर बताएं नमस्कार 

शनिवार, 20 जनवरी 2024

कविता , राम तुम्हारे नहीं हैं

एक नयी कविता आपके साथ साझा करना चाहता हूं आशा है आपको अच्छी लगेगी 

 राम तुम्हारे नहीं हैं


तुम तो कहते थे काल्पनिक हैं

अयोध्या जन्मस्थली ही नहीं

रावण कोई था ही नहीं

लंका कभी जाली ही नहीं


तुम्हें विश्वास नहीं है इस नाम पर 

तुम्हें आस्था नहीं है राम पर 

राम गर तुम्हारे मन मंदिर में पधारे नहीं हैं 

तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं


तुमने प्रश्न उठाए थे राम के सेतू पर

तुम्हें अनास्था है राम के हेतु पर

अब कह रहे हो राम सब के हैं

अब तक तो वक्त बेवक्त कहते थे

राम भक्तों को अंधभक्त कहते थे


राम गुणों के सागर हैं , अति उत्तम हैं 

सर्वोत्तम हैं , पुरुषोत्तम हैं 

गर तुमने आदर्श राम के जीवन में उतारे नहीं हैं 

तो फिर राम तुम्हारे नहीं हैं 


कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार व्यक्त जरुर बताइएगा , नमस्कार 

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

कविता, तुम कहते हो राम काल्पनिक

 एक नयी कविता आपके साथ साझा कर रहा हूं 

तुम कहते हो राम काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है

धाम अयोध्या का विस्तार काल्पनिक है

रामसेतु का प्रमाण काल्पनिक है

मां शबरी का सत्कार काल्पनिक है

देवी अहिल्या का उद्धार काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है


पिता के वचनों का रखना मान काल्पनिक है

गुरु के उपदेशों का निरंतर ध्यान काल्पनिक है

संकट में भी पत्नी का निज पति पर अभिमान काल्पनिक है

भाईयों के मध्य वो प्रेम वो सम्मान काल्पनिक है


तुम कहते हो राम काल्पनिक है


हां काल्पनिक है तुम्हारा ये बयान

हां काल्पनिक है तुम्हारा ये विकृत ज्ञान 

हां काल्पनिक है तुम्हारा ये पश्चिमी विधान


और तुम कहते हो राम काल्पनिक है


कविता कैसी लगी मुझे अपने विचार जरुर बताइएगा 



गुरुवार, 4 जनवरी 2024

ग़ज़ल, चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे

    नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


चुनाव नजदीक आ रहे हैं तैसे तैसे 

कमाल पर कमाल हो रहे हैं वैसे वैसे 


गद्दार भी वफादार भी एक ही सफ में हैं 

तमाम सवाल उठते रहे हैं कैसे कैसे 


सामान पुराना है मगर दुकान का नाम नया है 

चल ही रही है दुकानदारी जैसे तैसे 


कुछ नये बादशाह आये हैं सनातन मिटाने के लिए 

और भी बहुत आये थे इनके जैसे जैसे 


अपनी मांओं का सौदा कर दें सत्ता के लिए 

तनहा तमाम लोग भारत में हैं ऐसे ऐसे 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


सोमवार, 13 मार्च 2023

ग़ज़ल , जो मेरी जान लेने का इरादा ओढ़ के आएगा

      नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


जो मेरी जान लेने का इरादा ओढ़ के आएगा 

वो पहले मुहब्बत करने का वादा ओढ़ के आएगा 


दहलीज़ पर रखा चिराग बुझाना मत सहर देखकर

अंधेरा उजाले का लबादा ओढ़ के आएगा 


उसकी स्याह नियत पहचान न पाओगे तुम 

बहरूपिया मखमल ज्यादा ओढ़ के आएगा 


उसके किरदार पर हजारों इल्जाम लगते हैं 

खुदा आया तो लिहाफ सादा ओढ़ के आएगा 


तनहा जो शख्स जिस्म से नही रुह से बेपर्दा है 

वही शख्स महफिल में रेशम ज्यादा ओढ़ के आएगा 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

कविता , ओम ही प्राण है

      नमस्कार , आपको महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं | महा शिवरात्रि के इस पावन पर्व पर मैने एक कविता लिखने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं इस यकीन पर की आपको अच्छी लगेगी |


ओम ही प्राण है 


ओम कोई आकार नही है 

ओम का प्रकार नही है 

ओम जैसे साकार नही है 

ओम वैसे निराकार नही है 

ओम में विकार नही है 

ओम ये निराधार नही है 

ओम स्वयंभूःविचार ही है 

ओम स्वयं आधार ही है 


ओम ही अवधारणा है 

ओम ही कल्पना है 

ओम ही साधक है 

ओम ही साधन है 

ओम ही साध्य है 

ओम ही साधना है 


ओम ही प्रलय है 

ओम ही विलय है 

ओम ही संलयन है 

ओम ही विखंडन है 

ओम ही स्पंदन है 

ओम ही वंदन है 

ओम ही अभिनंदन है 


ओम ही सजीव है 

ओम ही निर्जीव है 

ओम ही प्राण है 

ओम ही प्राणी है 

ओम ही मौन है 

ओम ही वाणी है  


     मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 4 जनवरी 2023

मुक्तक , करोड़ों की दुआएं

      नमस्कार , एक नया मुक्तक हुआ है समात फर्माएं मैं इसे बीना किसी भूमिका के पेश कर रहा हूं मुझे यकीन है आपके दिल तक पहुंचेगा |


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तेरे पास नफरत है बददुआएं हैं मुझे देने के लिए 

मेरे पास अनमोल वफाएं हैं तुझे देने के लिए 

ये दुनिया मुझे बहुत गरीब समझती है लेकिन 

मेरे मां के पास करोड़ों की दुआएं हैं मुझे देने के लिए 

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     मेरा ये मुक्तक आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


बुधवार, 30 नवंबर 2022

गीत , रुक्मिणी तुम्हारी

      नमस्कार , बीते हुए कल मेरे मन में एक ख्याल रह रह कर दिन भर आता रहा उसी से इस गीत की जमीन बनी और ये गीत हुई अब मै इसे आपके हवाले कर रहा हूं 


उषा के प्रथम किरण सी रोशनी तुम्हारी 

      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


जीवन पथ में तुम्हें बहुत सी रश्मियॉ मिलेंगी 

कोमल लताएं मिलेंगी कलियां मिलेंगी 

जब परछाई बनेगी तो सिर्फ़ संगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


उसकी आंखों का तुमको दर्पण मिलेगा 

एक नदी का सा तुमको समर्पण मिलेगा 

प्रेम योग की बनेगी वही योगिनी तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


विरह का बीज कभी बोना नही 

प्रेम मोती को पाकर खोना नही 

रत्न हैं और बहुत पर एक है प्रेममणि तुम्हारी 


      तुम्हें याद है ना रुक्मिणी तुम्हारी 


      मेरी ये गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


रविवार, 20 नवंबर 2022

ग़ज़ल , मेरी बंद जज़्बातों की कोठरी में कुछ रोशनदान हैं

      नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


मेरी बंद जज़्बातों की कोठरी में कुछ रोशनदान हैं 

कोई मुसाफिर नही है साहिलों की ये कश्तीयॉ वीरान हैं 


इन ख़्वाबों ने कब्जा जमा लिया है मेरे दिल ओ दिमाग पर 

पहले मैने सोचा था कि ये तो मेहमान हैं 


ये सारे परिंदे जिन्होंने पेड़ों को बसेरा बना रखा है 

मेरा यकीन मानिए इन सब के नाम पर सरकारी मकान हैं 


आज ताली बजा रहे हो जो सड़क का तमाशा देखकर 

तो याद रखना कि तुम्हारे घर की दीवारों के भी कान हैं 


आसमान में एक सुराग है मै कह रहा हूं 

बाकी सब लोग इस हकिकत से अनजान हैं 


तनकिद करनी हो तो तनहा कोई झोपड़ी तलाश करो 

इनके बारे में ज़बान संभालकर बोलना शाही खानदान हैं 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

ग़ज़ल , आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है

      नमस्कार , अभी एक खबर मीडिया में छायी रही जिसमें एक आशिक ने अपनी महबूबा को 35 टुकड़ो में काटकर मार डाला इसी से उपजी मेरे मन में एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


आवारगी के आलम में लड़कपन जानलेवा है 

गुमराही के मंजर में बचपन जानलेवा है 


किसी से दिल लगाना पर होशो हवास न खोना 

मुहब्बत में इस कदर अंधापन जानलेवा है 


चींटी और हाथी दोनों इसी जमी पर हैं 

कामयाबी का इतना पागलपन जानलेवा है 


तितलीयों होशियार रहना फूलों की नीयत पर 

खुशबू का ऐसा दीवानापन जानलेवा है 


काश ऐसी कोई सुरत बने के वो मेरा महबूब होजाए 

वरना मैं तनहा और ये अकेलापन जानलेवा है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शनिवार, 5 नवंबर 2022

कवित्त , अर्धांगिनी श्री कृष्ण की

      नमस्कार , मेरे मन में यह प्रश्न हमेशा से ही उठता रहा है कि आखिर क्यों भगवान श्री कृष्ण पर आस्था रखने वालों के मध्य माता रुक्मिणी को वो स्थान कहीं न कहीं अब तक नही मिल पाया है जो राधाजी को मिला है जबकि भगवान श्री कृष्ण की पत्नी तो माता रुक्मिणी ही हैं | 


     अपने इसी विचार को केन्द्र में रखकर आज मैने तीन कवित्त में एक छोटी सी रचना करने का प्रयास किया है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं | इस रचना के लिए कवित्त विधा के चयन का मेरा कारण यह है कि यह हिंदी साहित्य की कुछ सबसे पुरानी विधाओं मे से एक है और इस विधा में अपने विचार को कहने का प्रयास करके मैं इस महान साहित्यिक परंपरा का एक कण मात्र होने का झूठा संतोष पाने की लालसा करता हूं |


अर्धांगिनी श्री कृष्ण की 


प्रेम तो मैने भी  किया 

      प्रेम से  बढ़कर  किया  है 

चेतना और संवेदना में 

      हर ह्रदयस्पंदन में जीया है 

प्रेम है अमृत  सत्य  है 

      मैने भी यह अमृत पीया है 

श्री कृष्ण के संग राधा क्यों 

      जब श्री राम के संग सिया है 


निश्चय नही हो सकता यह 

      आशा और निराशा क्या है 

या की यह उमंग वेग कैसा 

      प्रेम में यह अभिलाषा क्या है 

कौन देगा मुझे इसका उत्तर 

      तनहा प्रेम की परिभाषा क्या है 

अगर उचित नही प्रश्न मेरा 

      बतलाओ प्रेम की भाषा क्या है 


श्री कृष्ण का नाम मेरा कीर्तन 

      मैं जीवन संगिनी श्री कृष्ण की 

श्री कृष्ण दर्शन ही मेरा दर्पण 

      मैं धर्म वामांगी श्री कृष्ण की 

श्री कृष्ण का धाम मेरा अर्जन 

      मैं प्रिया रुक्मिणी श्री कृष्ण की 

मेरा सर्वस्व श्री कृष्ण को अर्पण 

      मैं सदा अर्धांगिनी श्री कृष्ण की 


     मेरा ये कवित्त आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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