सोमवार, 6 जनवरी 2020

कविता . नरसंहार . रहने दो

      नमस्कार , मैने दो नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविताए पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

नरसंहार

एक विचारधारा के लोगों ने
एक विधारधारा के लोगों को
एक विचारधाला के उकसावे में
आकर भीषण नरसंहार किया
कानुन व्यवस्था को तार तार किया
सामाजिक मुल्यों का संहार किया
एकता कि भावना का विनाश किया
अब तक इस अन्याय का
न्याय क्यो नही हुआ


रहने दो

क्या कहुं कि गम है
क्या कहुं कि अॉख नम है
क्या कहुं कि वो बेरहम है
क्या कहुं कि उदासी है
क्या कहुं कि उवासी है
क्या कहुं कि अॉखे प्यासी है
क्या कहुं , रहने दो

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      इन कविताए को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

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