नमस्कार , खंडकाव्य , श्रव्य काव्य के प्रबंधन काव्य का एक रुप है | प्रबंधन काव्य के तीन भेद मे से खंडकाव्य एक है | खंडकाव्य एक छोटे संयोजन का काव्य है | खंड काव्य की विषय वस्तु या कहानी महाकाव्य से या फिर स्वतंत्र रूप से हो सकती है | सुदामा चरित्र , पंचवटी आदि कुछ प्रमुख खंडकाव्य हैं |
18 मई 2018 को मैंने भी एक खंडकाव्य की रचना करने की कोशिश की थी | मैं उस दिन के संपूर्ण प्रयास को आज आपके सम्मुख प्रस्तुत करने की चेष्टा कर रहा हूं | मुझे ज्ञात है कि मेरी लेखनी अभी छोटी है परंतु यहां मैं केवल अपने प्रयास का प्रदर्शन कर रहा हूं | आपके समर्थन की अपेक्षा करता हूं | खंडकाव्य का शीर्षक है -
वनवास गमन के पूर्व
माता सीता , भगवान राम संवाद
माता सीता , भगवान राम संवाद
भगवान श्री राम माता सीता से -
कंकड़ पत्थर डगर में होंगे
14 वर्ष हम ना नगर में होंगे
कहीं कुटिया बना पाया कहीं वो भी नहीं
मैं अब होने जा रहा हूं वनवासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
14 वर्ष हम ना नगर में होंगे
कहीं कुटिया बना पाया कहीं वो भी नहीं
मैं अब होने जा रहा हूं वनवासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
ना ऐश्वर्य होगा ना दास-दासियों
ना ये मखमल होगा ना सोने की थाली कटोरिया
कंद मूल फल खाने पड़ेंगे
ना मिले तो भूखे ही दिन बिताने पड़ेंगे
कभी-कभी तो रह जाओगी तुम प्यासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
ना ये मखमल होगा ना सोने की थाली कटोरिया
कंद मूल फल खाने पड़ेंगे
ना मिले तो भूखे ही दिन बिताने पड़ेंगे
कभी-कभी तो रह जाओगी तुम प्यासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
यह वह जीवन नहीं होगा
जिसका तुमने सपना संजोया होगा
अपनी हर पूजा-अर्चना में
कामनाओं का फूल पिरोया होगा
मैंने तुम्हारे शुखों का वचन दिया था
राजा जनक का मैं सामना कैसे कर पाऊंगा
माता सुनैना के सवालों का जवाब कैसे दे पाउंगा
अब वास होगा घनघोर वन में
तुम हो जनक दुलारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
जिसका तुमने सपना संजोया होगा
अपनी हर पूजा-अर्चना में
कामनाओं का फूल पिरोया होगा
मैंने तुम्हारे शुखों का वचन दिया था
राजा जनक का मैं सामना कैसे कर पाऊंगा
माता सुनैना के सवालों का जवाब कैसे दे पाउंगा
अब वास होगा घनघोर वन में
तुम हो जनक दुलारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
पिताश्री और माताओं की सेवा करना
मेरे छोटे अनुजो का मार्गदर्शक बनना
अपनी छोटी बहनों की आदर्श बनना
मैं रहूंगा तुम्हारा आभारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
मेरे छोटे अनुजो का मार्गदर्शक बनना
अपनी छोटी बहनों की आदर्श बनना
मैं रहूंगा तुम्हारा आभारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता
माता सीता भगवान श्री राम से -
दीपक के बिन ज्योति कैसी
बिन जल के नदी ही कैसी
बिन नभ के धरती हि कैसी
मेरा जीवन आप से जुड़ा है
आप का सिंदूर है मेरे भाल में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
बिन जल के नदी ही कैसी
बिन नभ के धरती हि कैसी
मेरा जीवन आप से जुड़ा है
आप का सिंदूर है मेरे भाल में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
मैं आपके चरणों की दासी हूं
मुझे ऐश्वर्य की चाहत नहीं
मैं आपके प्रेम की प्यासी हूं
मुझे जेवरों , मखमली से कोई लगाव नहीं
कंकड़ पत्थर में सह लूंगी
भूखी प्यासी मैं रह लूंगी
बस सदा मैं चाहती हूं
आपका हाथ मेरे हाथ में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
मुझे ऐश्वर्य की चाहत नहीं
मैं आपके प्रेम की प्यासी हूं
मुझे जेवरों , मखमली से कोई लगाव नहीं
कंकड़ पत्थर में सह लूंगी
भूखी प्यासी मैं रह लूंगी
बस सदा मैं चाहती हूं
आपका हाथ मेरे हाथ में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
आपका साथ ही मेरा शुख है
आपका बिरह ही मेरा दुख है
बिन जल के मछली का जीवन क्या
बिन स्वामी भार्या का जीवन वैसा
मेरे माता पिता मुझ पर गर्व करेंगे
जो मैं गई आपके संग वनवास में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
आपका बिरह ही मेरा दुख है
बिन जल के मछली का जीवन क्या
बिन स्वामी भार्या का जीवन वैसा
मेरे माता पिता मुझ पर गर्व करेंगे
जो मैं गई आपके संग वनवास में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी
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मेरा ये खंडकाव्य आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |
Behtrin kavy
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