सोमवार, 27 जून 2022

ग़ज़ल , मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है

      नमस्कार , आज मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं यदि ग़ज़ल आपको अच्छी लगे तो मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य करवाए 


मुझे इन मेमनों को कसाई कहना है 

और जल्लादों को सिपाही कहना है 


लगाई है ऐसी बंदिश जेहन पर मेरे 

मुझे अपने क़ातिलों को भाई कहना है 


जो है वो कह दूं तो बल्बा हो जाएगा 

मुझे कुडे के ढेर को सफाई कहना है 


पर्वतों से ऊँची है इंसानों की शोहरत 

मुझे चिथड़े कम्बल को रजाई कहना है 


न काफिया है न रदीफ शेर में तनहा 

मगर मुझे तुकबंदी को रुबाई कहना है 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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