नमस्कार , अक्षरों की सघनता का रूप घनाक्षरी होता है | घनाक्षरीया भी विभिन्न भावों को खुद में सहेज लेती हैं | हिंदी भाषा खुद में इतनी सक्षम है कि हर भाव , हर रस की रचनाएं , हर विधा की रचना है अत्यंत सरलतापूर्वक की जाती हैं | घनाक्षरी भी इसी तरह की एक विधा विधा है |
12 जुलाई 2018 को मैंने एक घनाक्षरी लिखी है | जिसे मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं | आपके स्नेह की उम्मीद है |
कहां का मजनू कहां की लैला
प्यार-व्यार की बातें करते
झूठे-झूठे वादे करते
कहां रह गई है अब सच्ची मोहब्बत
हर महबूबा का आंचल मैला
कहां का मजनू कहां की लैला
झूठे-झूठे वादे करते
कहां रह गई है अब सच्ची मोहब्बत
हर महबूबा का आंचल मैला
कहां का मजनू कहां की लैला
आज जो उसका आशिक है
कल वो उसका आशिक था
कल जो उसकी महबूबा थी
आज वो उसकी महबूबा है
अब दिल्लगी ही बाकी बची है
फालतू में इश्क-इश्क का शोर है फैला
कहां का मजनू कहां की लैला
कल वो उसका आशिक था
कल जो उसकी महबूबा थी
आज वो उसकी महबूबा है
अब दिल्लगी ही बाकी बची है
फालतू में इश्क-इश्क का शोर है फैला
कहां का मजनू कहां की लैला
वो मीठी-मीठी बातें याद आती हैं
वो ठंडी-ठंडी रातें याद आती हैं
क्लास बंक करके सारा-सारा दिन
वो कैंटीन वाली मुलाकातें याद आती हैं
तब शहद सा मीठा लगता था
नीम का रस कड़वा कसैला
कहां का मजनू कहां की लैला
वो ठंडी-ठंडी रातें याद आती हैं
क्लास बंक करके सारा-सारा दिन
वो कैंटीन वाली मुलाकातें याद आती हैं
तब शहद सा मीठा लगता था
नीम का रस कड़वा कसैला
कहां का मजनू कहां की लैला
मेरी घनाक्षरी के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
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