गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

ग़ज़ल , अपना कहने का अधिकार हार गई

      नमस्कार , आज सुबह मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे जरूर बताइएगा | एक जरा सा सलाह है आपके लिए यदि आप वर्तमान खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल को पढ़ने का पुरा आनंद आएगा |


अपना कहने का अधिकार हार गई 

आज से वो मेरा ऐतबार हार गई 


जिनके सीने की नाप है 56 इंच 

हैरत है कि उनकी सरकार हार गई 


सब ने कहा ये जीता है वो जीता है 

मेरी नजर में खेतों की बहार हार गई 


जश्न की रौनक उस चूल्हें पर कहां है 

जिस पर आग भी हुई लाचार हार गई 


अब कौन इतनी हिम्मत दिखाएगा यहां 

मुल्क की आत्मा है बीमार हार गई 


यही तो सियासत है तनहा तुम क्या जानो 

ऐसा तो नहीं है कि पहली बार हार गई 


      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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