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गुरुवार, 14 जून 2018

देवी गीत लोकगीत , चलल जायी कुआर में

      नमस्कार ,  देवी लोकगीत या भक्ति लोकगीत एक ऐसी लोकगीत है जो कि कुल देवी देवताओं की पूजा के समय गायी जाती है | देवी गीत लोकगीत भी मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश समेत भारत के कई राज्यों में गायी जाती है | देवी गीत लोकगीत में ईश्वर के प्रति प्रेम की प्रचुरता होती है एवं यही इस लोकगीत की विषय वस्तु भी होती है |

      24 मई 2018 को मैंने एक देवी गीत लोक गीत की रचना की है जिसे मैं मां शारदा के चरणों में समर्पित करते हुए आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं -

देवी गीत लोकगीत , चलल जायी कुआर में

देवी माई के दरबार में
चलल जायी कुआर में

ढोल नगाड़ा बाजे लागी
गली मोहल्ला साजे लागी
देवी माई के जयकारा लगाके
जब सबे भक्ता नाचे लागी
मनोकामना पूर्ण हो जायी
मईया रानी के त्यौहार में
देवी माई के.....

तब कवनो अडचन रोक न पाई
जब देवी मां के बुलावा आई
मईया के महिमा बहुत निराली
जेसे केहू पार न पाई
  उ शक्ति बा देवी माई में
जउन ताकत नाबा कउनो देश की सरकार में
देवी माई के......

देवी माई के दरबार में
चलल जायी कुआर में

    मेरी ये देवीगीत लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

कजरी या सावन महीने का लोकगीत , पकड़के रेलगाड़ी

नमस्कार ,  कजरी या सावन महीने का लोकगीत एक तरह की लोकगीत है जोकि सावन के महीने में गायी जाती है | कजरी लोकगीत मुख्यतः मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , बिहार आदि राज्यों में गायी जाती है | सावन का महीना हरियाली से भरा होता है और यही इस लोकगीत की आत्मा होता है |

    तकरीबन 2 हफ्ते पहले मैंने भी एक कजरी लोक गीत की रचना की है जिसे मैं आपके सम्मुख हाजिर कर रहा हूं आपके दुलार की उम्मीद है -

पटना के बिंदिया
बनारस के साड़ी
लेकर आब  सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

कजरी या सावन महीने का लोकगीत , पकड़के रेलगाड़ी

सावन के महीना
कठिन होता जीना
चम चम चमके बिजली
पानी बरसे रोजीना
कईसे समझाई तोहरे की
पिया समझा लाचारी
हाली आब सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

बरसात की टिप - टिप
दीया जले धिप - धिप
जिया हमार धडके
धक - धक , धिक - धिक
आजाना जल्दी
तड़पे तोहार प्यारी
आबन सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

पटना के बिंदिया
बनारस के साड़ी
लेकर आब  सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

    मेरी ये कजरी या सावन महीने का लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मंडप छपाई का एक लोकगीत

   नमस्कार ,  विवाह एक ऐसा रिश्ता है जो दो इंसानों ( लड़का एवं लड़की ) को जीवन भर के लिए एक अटूट बंधन में बांध देता है | विवाह के इस पावन मौके पर हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे - मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड एवं राजस्थान आदि में  कुछ लोक गीत गाए जाते हैं जिन्हें विवाह लोकगीत कहा जाता है |

     आज मैं आपको विवाह के वक्त गाए जाने वाले लोकगीतों में से मंडप छपाई के वक्त गाए जाने वाले एक लोकगीत को प्रस्तुत कर रहा हूं | इस लोकगीत को मैंने 22 जून 2018 को लिखा था | मुझे आशा है मेरा यह लोकगीत आपको जरूर पसंद आएगा -

मंडप छपाई का एक लोकगीत

कहां से लिअईल फूफा बांस के भथुनिया हो
कहां से लिअईल कल्याणी
अयोध्या से लिअईली बेटा बांस के भथुनिया हो
अयोध्या से लिअईली कल्याणी

का चाही फूफा तोहरे की मडवा छबउनी हो
कहां चाही गड़बऊनी कल्याणी
चांदी चाहि बेटा हमके मडवा छबउनी हो
सोना चाहि गड़बऊनी कल्याणी

चांदी बा महंगा फूफा सोना बा महंगा हो
कइसे हम तोहर नेगबा चुकाई
कुछ नहीं चाहि बेटा हमके मडवा छबउनी हो
कुछ नहीं चाहि गड़बऊनी़ कल्याणी

    मेरी ये मडवा छवाई की विवाह लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

शुक्रवार, 8 जून 2018

फगुआ लोकगीत , भऊजी हो

    नमस्कार ,  होली हमारे देश भारत के कुछ प्रमुख त्योहारों में से एक है |  होली रंगों का सबसे बड़ा पर्व है जिसमें लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं एवं शुभकामनाएं देते हैं |  होली के त्यौहार में कहा जाता है कि दुश्मन भी एक दूसरे के गले लगते हैं एवं गुलाल लगाते हैं |  होली का पर्व उमंग उत्साह एवं  आपसी भाईचारे का पर्व है | होली के पर्व में जीजा साली एवं देवर भाभी के तीखे मीठे रिश्ते की नोकझोंक भी देखने को मिलती है |
होली के त्यौहार में एक लोक गीत भी गायी जाती है जिसे फगुनिया या फगुआ कहते हैं |

फगुआ लोकगीत में देवर भाभी , जीजा साली एवं पति पत्नी के रिश्ते की  झलक देखने को मिलती है |  फगुआ लोकगीत भारत के मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार आदि हिंदी भाषी राज्यों में गायी जाती है| | देवर भाभी के नोक झोंक के रिश्ते पर आधारित 23 मई 2018 को मैंने भी एक फगुआ लोक गीत की रचना की है | जिसे मैं आपके मनोरंजन के लिए आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

फगुआ लोकगीत , भऊजी हो

अब के फागुन में
भईया नहीं अइहीं हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

केकरेे से होली में रंग डलबईबु
केकरे से गाले अबीर मलबईबु
पुआ कचोरी अब कइसे छनाई
केकरे से रंगे में चोली भीगबईबु हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

छोटका देवरवा से रंग डलवा ल
हमरे से गाले अबीर हमबा ल
छेना के खाल तू लमहर मलाई
अब होली में का तू जईबु हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

अब के फागुन में
भईया नहीं अइहीं हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

      मेरी ये फगुआ लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

    नमस्कार ,  प्रभाती भी एक लोकगीत है | इसे मां अपने बच्चे को सुबह के समय जगाने के लिए गाती हैं | प्रभाती लोक गीत भी भारत के कई हिस्सों में गायी जाती है जैसे मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , राजस्थान आदि | प्रभाती में भी लोरी के तरह ही  वात्सल्य रस का समावेश होता है | प्रभाती लोक गीतों में  माता यशोदा द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को सुबह के समय जगाने के दृश्य का गीतों में अनुसरण मिलता है |

    22 मई 2018 को ही मैंने एक प्रभाती भी लिखी थी जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं , मेरे प्रयासो को आपके आशीर्वाद की उम्मीद है -

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

कलियां जागी , फूल जागे
तितलियां जागी , पत्ते जागे
जागे सारे ग्वाला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

कहीं गेंद खेलो
कहीं माखन खाओ
कहीं मटकी फोडो
दिखाओ कोई खेल निराला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

मैं अब ना तुम्हें जगाउंगी
अपना प्रभाती जाऊंगी
अभी मंदिर भी सजाना है
बनानी है फूलों की माला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

      मेरी ये प्रभाती लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गुरुवार, 7 जून 2018

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

    नमस्कार , अब मैं जिस लोकगीत के बारे में बात करने जा रहा हूं  वह एक ऐसा लोकगीत है जो भाषा , क्षेत्र , राज्य आदि सीमाओं के परे है | क्योंकि लोरी एक ऐसा लोक गीत या गीत है जिसे हर मां अपने बच्चे को सुलाने के लिए बड़े प्यार से गाती है |  हां लोरी की रचना अलग अलग भाषाओं में अलग अलग हो सकती है  लेकिन हर लोरी वात्सल्य रस से भरी हुई होती है  जिसे सुनकर बच्चे को चैन की नींद आती है | हम सब ने भी अपने-अपने बचपन में अपनी अपनी मांओ से लोरी जरूर सुनी होगी |  वर्तमान हालात में हमारे बडे शहरों में भले लोरियां गायक सी होती जा रही हो लेकिन गांवो में यह आज भी फल-फूल रही हैं |

     एक मां के उसके बच्चे से प्यार की कोई तुलना नहीं की जा सकती | मां की ममता को प्रदर्शित करती  हुई मेरी एक लोरी जिसकी रचना मैंने 22 मई 2018 को की थी आपके स्नेह के लिए साझा कर रहा हूं -

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

निंदिया रानी आएगी
सपने खूब दिखाएगी
यह रात बीत जाएगी
सुबह मां खिलाएगी
मुन्ने को दूध भात
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

कल का सूरज आएगा
खिलौने ढेरों लाएगा
मेरा मुन्ना खूब खेलेगा
मैया भी खेलेगी मुन्ने के साथ
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

      मेरी ये लोरी लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

     नमस्कार ,  सोहर एक लोकगीत है जो मध्य प्रदेश के बघेलखंड , राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गाया जाता है |  सोहर लोकगीत नवजात बच्चे के जन्म होने की खुशी में गाया जाता है | जब मां बच्चे को जन्म देती है तो घर की बाकी औरतें बच्चे के जन्म होने की खुशी में सोहर गाती हैं | सोहर एक बहुत ही प्रचलित लोकगीत है जो कि लगभग हर हिंदी भाषी राज्य में गाया जाता है |

       21 मई 2018 को मैंने भी एक सोहर लोकगीत की रचना की है इस लोकगीत को मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं इस मिटती हुई लोकगीत की विधा को  आपके प्यार की जरूरत है | आशा है इस सोहर लोकगीत को आपका प्यार जरूर मिलेगा -

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

बधाई हो बाबा के
बधाई हो माई के
बधाई हो दादा के
बधाई हो दादी के
आज बड़ा शुभ दिन है

आनंद भयो रे भवनमां
जुग जुग बाढ रे ललनवा
ठुमक चले रे अगनवां
आज बड़ा शुभ दिन है

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

      मेरी ये सोहर लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गुरुवार, 31 मई 2018

दादरा , सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

      नमस्कार , दादरा भी ठुमरी की तरह ही भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायी जाने वाली एक शैली है | दादरा भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायकों द्वारा गाई जाती है | आमतौर पर ठुमरी की तरह ही दादरा भी छोटे बंदों में निहित होती है | दादरा विभिन्न प्रकार के रागो में गाई जाती है | अगर अन्य शब्दों में कहा जाए तो मेरे अनुसार ठुमरी की तरह ही दादरा भी एक लोकगीत है |

     एक से दो सप्ताह पहले भर मैंने एक दादरा लिखने का प्रयास किया था | उस प्रयास को मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं , आपके प्यार की उम्मीद कररहा हूं -

दादरा , सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए
परदेस में जाकर परदेसी कहाई गए

चार बरस हुए लौट के न आए
केतनी बार हम खबर भिजवाए
कउने कलमूही के फेरा में आई गए
सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सात फेरों के सात वचन
जन्म जन्म का यह बंधन
सारा रिश्ता नाता तोड़ाई गया
सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए
परदेस में जाकर परदेसी कहाई गए

      मेरा ये दादरा आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

ठुमरी , अंखियों के तीर चलाओ ना सईया

      नमस्कार , ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायी जाने वाली एक शैली है | ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायकों द्वारा गाई जाती है | आमतौर पर ठुमरी छोटे बंदों में निहित होती है | ठुमरी अमूमन राग भैरवी , तीली आदि रागों में गाई जाती है | अगर अन्य शब्दों में कहा जाए तो मेरे अनुसार ठुमरी एक लोकगीत है |

आज से तकरीबन एक सप्ताह पहले भर मैंने भी एक ठुमरी लिखने का प्रयास किया था | उस प्रयास को मैं आपके सामने हाजिर कर रहा हूं , आपके शुभकामनाओं की उम्मीद करता हूं -

ठुमरी , अंखियों के तीर चलाओ ना सईया

अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां
हम बेरी - बेरी परत हैं तोहरी पईयां

मिलने आई चोरी - चोरी से
सईयां तोहरीे जोरा जोरी से
कलाई मुरूक गई , मर गई मईयां
अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां

फान के आई हूं मैं अटरिया
कोरी - कोरी मेरी चुनरिया
मेरी फट गई चुनरी , हाय रे दईयां
अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां

अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां
हम बेरी बेरी परत हैं तोहरी पईयां

      मेरी ये ठुमरी आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

देवरा होलीया में चोलीया फार दिहले बा

       सबसे पहले होली की हार्दिक शुभकामनाएँ , हैप्पी होली.... , होली है..... | रंगों का नाता इंसानो से प्रकृति ने जोडा है हम जो कपड़े पहनते हैं वह भी रंग-बिरंगे होते हैं , मेहंदी लाल रंग की होती है जब दुल्हन की हथेलियों पर रचती है , बर्फ से ढका हिमालय सफेद रंग का है , अनंत विशाल सागर का जल नीले रंग का प्रतीत होता है , नदी के किनारों पर जमी काई भी अरे सुनहरे रंग की होती है , एक स्त्री सुहागन तभी होती है जब वह लाल रंग का सिंदूर अपने माथे पर धरण करती है |रंगों का अस्तित्व ही इस दुनिया को खुशहाल बनाने के लिए है मगर बदलते दौर के इस परिवेश में मेरा सबाल ये है के आखिर होली के इस  त्यौहार में रंगों से तौबा क्यों ?

होली का त्यौहार मानते बच्चे
होली का त्यौहार मानते बच्चे 
   मुझे याद है कुछ वर्षेा पहले तक तब मै शायद कुछ दस वर्ष का रहा हूंगा | होली आने के कई दिनो पूर्व ही एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते थे तथा आने बाली होली मुबारक कहते थे | पर इस दौर में तो लोग होली के दिन भी एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते से कतराते है , होली के रंग शिर्फ कपडे ही नहीं रंगते बल्कि मन को भी शांति पहुंचाते है , मन में भरी कड़वाहट को होली में मस्ती के रंगो में रंग देते हैं |

   इसी तरह होली के रंगो से सराबोर पेश है होली का एक लोक गीत जिसे मै ने कुछ दिनों पहले लिखा है , ये लोक गीत देवर भाभी के खट्टे मीठे रिश्ते पर आधारित है | इसी कोटी के लोक गीत फागुन के महीने में मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश के इलाकों में गायि जाती है  -

हमार नाया नाया फैशन बिगाड़ दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

रोजे पोछे होठलाली
औउर तोड़ेला गहना
करे बरियारी माने नाही कहना
ताजा मालपुआ जुठार दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

जाने कहां-कहां रंगवा लगउलस 
अपना पिचकारी से ढोढी में चूअउलस  
केतनो गरियायी तनीको ना लजाता
हमके कई के भीतरी उहो रातीयअ से केबाड दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

हमार नाया नाया फैशन बिगाड़ दिहले बा
देवरा होलिया में चोलिया फार दिहले बा

  मेरी यह लोक गीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |               

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