नमस्कार , करीब दो से तीन माह पूर्व मैने ये नयी ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैं एक किताब में संग्रह के रुप में लाना चाहता था मगर किसी कारण से यह संभव नहीं हो पा रहा है इसलिए मैने सोचा की मै इसे आपके साथ साझा कर दूं | ग़ज़ल कैसी रही मुझे अपने विचारों से अवगत अवश्य कराए |
मुस्कान पर दिल दिया आह में मर गए
कुछ उसकी राह में कुछ चाह में मर गए
खौफ़नाक हादसे यू भी हो सकते हैं
तारीफ़ पर फना हुए वाह में मर गए
तमाम जुर्म करके बरी हो जाता है जमाना
हम एक मोहब्बत के गुनाह में मर गए
पहले झूठ फिर गैर से रिश्ता अब ये सुलूक
आज से तुम मेरी निगाह में मर गए
इलाज बनकर वो फिर आए भी तो क्या
कुछ नसीब के मारे तो कराह में मर गए
कातिल से तो तुम बच निकले तनहा
हम तो अपनों की पनाह में मर गए
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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