नमस्कार , यहां मैं आपको मेरी लिखी एक नयी गीतिका सुनाने वाला हूं | जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं गीतिका गजल की तरह ही एक रचना विधा है | वास्तव में गीतिका एक छंद का स्वरुप है |
आज जो मैं गीतिका आपके समक्ष रखने जा रहा हूं , उसमें प्रेम के सौंदर्य का वर्णन है | मेरी उम्मीद और चाहत यही है कि यह गीतिका भी आपको पसंद आए -
फूल की हर कली में मैं ही मैं नज़र आऊं
मैं तुम्हारे साथ का हकदार बन जाऊं
मैं तुम्हारे साथ का हकदार बन जाऊं
पूर्ण रुप से जो मैं तुम्हें समझ पाऊं
तो मैं प्रेम का पर्याय बन जाऊं
तो मैं प्रेम का पर्याय बन जाऊं
तेरी आंखों के सुरमें का असर हो
मैं तुम्हारी निगाहों में कुछ इस तरह बस जाऊं
मैं तुम्हारी निगाहों में कुछ इस तरह बस जाऊं
तेरे आंचल की छांव मुझे ही नसीब हो
मैं जो कहीं तपती धूप में यात्री कहलाऊं
मैं जो कहीं तपती धूप में यात्री कहलाऊं
मेरी गीतिका के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |