नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि
सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें
चॉकु छूरी खंजर सी नुकीली आंखें
कोई कैसे बचे इनके तिलस्म से
कत्थई काली निली आंखें
कैसे पढू मै इनकी लिखाबट को
कभी गुस्सा कभी अॉशु कभी सर्मिली आंखें
देखते ही ईश्क का शुरुर होगया
मैने पहले नही देखी थी वो चमकिली आंखें
देखोगे तो तुम्हे भी मर्ज-ए-मोहब्बत हो जाएगी
कभी देखना मत वो फूलों सी रंगिली आंखें
गर तनहा मरा मोहब्बत में तो ईल्जाम उस पन
मार डालेंगी मुझको तेरी ये जहरिली आंखें
मेरी ये गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |
इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें
चॉकु छूरी खंजर सी नुकीली आंखें
कोई कैसे बचे इनके तिलस्म से
कत्थई काली निली आंखें
कैसे पढू मै इनकी लिखाबट को
कभी गुस्सा कभी अॉशु कभी सर्मिली आंखें
देखते ही ईश्क का शुरुर होगया
मैने पहले नही देखी थी वो चमकिली आंखें
देखोगे तो तुम्हे भी मर्ज-ए-मोहब्बत हो जाएगी
कभी देखना मत वो फूलों सी रंगिली आंखें
गर तनहा मरा मोहब्बत में तो ईल्जाम उस पन
मार डालेंगी मुझको तेरी ये जहरिली आंखें
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