सोमवार, 6 जनवरी 2020

कविता . दिल्ली के सिस्टम को आग लग गई

     नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

दिल्ली के सिस्टम को आग लग गई

दिल्ली के सिस्टम की लगी आग में
कई जिन्दगीयां जल के राख हो गयी
रोते बिलकते परिवारजन रह गए
सांत्वना,मुआवजा देने वाली सरकार रह गई
जीत गया कुशासन,सुशासन कि हार रह गई
कुर्सियां नही बदली,कुर्सियों पर बैठने वाले बदले
फिर विजयी हुआ है भस्टाचार
व्यवस्थाए वही कि वही बिमार रह गयी
जीवन कि किमत बस कुछ लाख ही तो है
सरकार के आगे मां कि कोख लाचार रह गई  

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

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