सोमवार, 26 अप्रैल 2021

ग़ज़ल , सत्य के बीना कहीं गुजारा नही है

     नमस्कार , कल मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये नही ग़ज़ल पसंद आएगी |

सच के बीना कहीं गुजारा नही है 

तुमने ये सच जहन में उतारा नही है 


साजिशन अफ़वाह उड़ाई जा रही है 

तुम्हारा प्रधान इतना नाकारा नही है 


जिसे दोस्त समझ बैठे हो प्रधान मेरे 

वो अमेरिका दोस्त तुम्हारा नही है 


वसुधैव कुटुम्बकंम अब बहुत होगया 

ये पुरी वसुधा परिवार हमारा नही है 


नेकी का हासिल है ये दर्द का समंदर 

जिसमें लहरें तो हैं किनारा नही है 


मदद का हाथ अब मुफ्त मे मत दो 

यहां सब स्वार्थी हैं कोई विचारा नही है 


तमाम रात भर चमकता तो है सच है 

मगर ये जुगनू है यार मेरे सितारा नही है 


सियासत न करो लाशों पर हुक्मरानों 

तनहा तुम्हीं हो कोई और सहारा नही है 

   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    उत्तर
    1. मेरी रचना को पटल पर स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया अनीता सैनी जी 🙏

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  2. बहुत सुंदर, हर शेर उम्दा।
    कुछ कहता सा।

    जवाब देंहटाएं

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