नमस्कार , इस कविता को मैने 21 अक्टूबर 2017 को लिखा था | इसे पढ़ कर शायद आपको दुनिया और हमारे समाज मे फैली वेश्यावृत्ति जैसी निंदनीय अपराध के प्रति संवेदनशिलता जागृत हो जाये | मैने ये कविता मेरे इंस्टाग्राम अकाउंट पर भी साझा किया है |
मैंने लासे चलते देखी है.
हवस की तंग गलियों में
लाचार बेबस तन मन को
चंद सिक्कों की खनक के आगे
जिंदगी की जरूरतों में टूटकर
हवस के भेड़ियों को
खुद को परोसते देखी है
मैंने लासे चलते देखी है
लाचार बेबस तन मन को
चंद सिक्कों की खनक के आगे
जिंदगी की जरूरतों में टूटकर
हवस के भेड़ियों को
खुद को परोसते देखी है
मैंने लासे चलते देखी है
मेरी कविता के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा | एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |
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