नमस्कार , 26 मई 2021 को मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे आपसे साझा कर रहा हूँ आशा है कि आपको मेरी ये ग़ज़ल अच्छी लगेगी
मै तो कोशिश में हूं तुम्हें सच बताने की
तुम तो सुनते हो बस इस जमाने की
तुम्हारे महल की ठंडक तुम्हें मुबारक हो
मेरी तमन्ना है बस मेरा घर बनाने की
मैं वो नही के इमान को गिरवी रखदूं
अना तो चीज ही होती है नजर आने की
इसबार की बहार आए तो यही शर्त रखुंगा
मुझसे वादा करो लौटकर न जाने की
यही हुआ है के एक अरसे से मै तनहा हूं
ये सजा मिली है मुहब्बत न समझ पाने की
मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |
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