गुरुवार, 9 अगस्त 2018

ग़ज़ल, वक्त के हिसाब से लोग बदल जाते हैं

नमस्कार , वक्त के हिसाब से लोग बदल जाते हैं ये गजल 5 अक्टूबर 2016 की है | इस गजल को लिखने के पीछे मेरे दिल का एक मामला है कभी गर मैका मिला तो आप को जरूर बताऊंगा | मगर फिर हाल इस गजल का मजा लिजीये |

ग़ज़ल, वक्त के हिसाब से लोग बदल जाते हैं


कभी गिरते हैं तो कभी संभल जाते हैं
वक्त के हिसाब से लोग बदल जाते हैं

एक पल की जुदाई भी बर्दाश्त नहीं होती उन्हें
सितारे भी रात के साथ ढल जाते हैं

क्या हुआ घर गमो का साया बना रहता है
ओस की चंद बूंदों से फूल खिल जाते हैं

सच का सही होना अब कहां जरूरी है
आजकल तो नकली नोट भी बाजार में चल जाते हैं

किसी की शख्सियत का अंदाजा लगाना अब जरा मुश्किल है
पलों में लोगों के खयालात बदल जाते हैं

उन लम्हों को बड़ी फुर्सत से जीना
हसीन पल बड़ी जल्दी गुजर जाते हैं

     मेरी गजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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