गुरुवार, 9 सितंबर 2021

कविता , एक कच्ची मिट्टी का घडा

      नमस्कार , लगभग महीने भर पहले मैने ये कविता लिखी थी जिसे मैं किसी व्यस्तत्ता के कारण आपसे साझा नही कर पाया था आज कर रहा हूं मुझे यकीन है कि आपको यह कविता पसंद आएगी 

एक कच्ची मिट्टी का घडा 


एक कच्ची मिट्टी का घडा 

मुझसे ये कहते हुए रो पड़ा 


कि मैं टूट जाउंगा 

मुझे विश्वास मैं टुट जाउंगा 

उस पक्की मिट्टी के घडे से 

बराबर करते हुए 

उससे खुद को बेहतर 

साबित करने का युद्ध लडते हुए 


उसकी आंखों से 

अश्रु धारा बहने लगी 

और वह अधीर होते हुए 

सीसक कर बोला 

मैं कहां ये युद्ध लड़ना चाहता हूं 

वास्तव में यह युद्ध ही नही है 

यह तो मेरा अपना अस्तित्व 

बचाने का प्रयास है 

मुझे विश्वास है कि मैं नही टुटुंगा 


क्योंकि अगर मैं टुट गया 

तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व 

कच्ची मिट्टी के घडों का 

लोग यह कहकर नही खरीदेंगे की 

कच्चे घडे तो कमजोर होते हैं 

ये बहुत जल्दी टुट जाते हैं 

और फिर कुम्हार हमें 

बनाएगा ही नहीं यह कहकर 

ये कच्चे घडे तो बिकते ही नहीं 

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


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