शुक्रवार, 29 जून 2018

हाइकु , मेरे छत पर एक अनजान ओढ़नी

   नमस्कार , हाइकु 3 लाइन की जापानी कविताओं का वह रूप जिसमें किसी भी भाव को कहने के लिए शब्दों की बहुत कम जरूरत होती है |  हायकू कविता छोटी एवं बहुत अधिक असरकारक हो होती है |

   यहां मैं आपसे मेरा लिखा एक और हाइकु साझा करने वाला हूं ,  जिसे मैंने करीबन एक से डेढ़ सप्ताह पहले लिखा है |

हाइकु , मेरे छत पर एक अनजान ओढ़नी

मेरे छत पर एक अनजान ओढ़नी

कलर हरा है
दीदी के पास इस कलर की
ओढ़नी नही है

तो

मतलब
यह कहां से आई
किसकी है ?

क्या ?
बगल के मकान से
पर उसमें तो ...|

मतलब
कोई और है
तो क्या वो हमउम्र होगी

या फिर
कहीं
कोई बासी दाल तो नहीं है

      मेरा हाइकु के रूप में एक और छोटा सा यह प्रयास आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार

तेवरी , देखिए

    नमस्कार ,   ऐसी कविताएं जिनका एक अलग सा तेवर होता है उन्हें ही तेवरी कहा जाता है |  तेवरी कविताएं में देखा गया है कि  यह कविताएं किसी एक विशेष भाव का बगावत करती हुई नजर आती हैं या यूं कहें कि प्रति उत्तर देती हुई नजर आती हैं |

     आज जो तेवरी मैं आपके समक्ष रखने वाला हूं वह एक आम से तेवर की कविताएं | इस तेवरी को मैंने तकरीबन हफ्ते भर पहले लिखा है -

देखिए

तेवरी , देखिए

देखिए
दरअसल कोई आदेश सूचक शब्द नहीं है
ना तो यह किसी बात का प्रतिउत्तर है
और ना ही कोई संबोधन है

देखिए एक तरीका है
जो हर किसी का अपना अपना होता है
कोई देखिए को बड़े जोर से कहता है
और कोई बड़े आस्ते से

मतलब अगर मैं यह कहूं कि
देखिए ....
सबका अपना-अपना होता है

      मेरी तेवरी के रूप में एक और छोटा सी यह कोशिस आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार

बुधवार, 27 जून 2018

गाना , सादे पानी सा तेरा रंग है

   नमस्कार , कहा जाता है के दुनिया में प्यार से खुबसुरत और कोई चीज नही है | और प्यार ही एक ऐसा चीज है जिसे जितना लुटाया जाये उतना ही बढता है | ऐसे में जब कहीं प्यार का ज़िक्र हो तो धडकनें क्यों न मचलनें लगे | और प्यार भरे हर दिल को आवाज दी है हिंदी सिनेमा के फिल्मी गानों ने |

    ये एक मेरा लिखा गाना जो मुझे बेहद पसंद है आज मैं इसे आप के साथ साझा कर रहा हूं  | ये गाना मैं ने करीबन दो साल पहले लिखा है |

गाना , सादे पानी सा तेरा रंग है

सादे पानी सा तेरा रंग है
जिसमें झलकता तेरा अंग है
भूलना चाहूं इस्सर बातों में
बनके कोई रंग मैं

तेरी अदाएं हैं परिंदो जैसी
मासूम है ये दिल मेरा
जी करता है मेरा भी
चहकूं तेरे संग मैं
सादे पानी सा .......

झील जैसी है नीली आंखें
करती रहे तू मीठी बातें
पलके झुका के जब शर्माए
गुजर जाती हैं तनहा रातें
तेरी घनारी जुल्फों के
उड़ना चाहू संग मैं
सादे पानी सा तेरा .......

    मेरा गाना के रूप में एक और छोटा सा यह प्रयास आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार

गाना , नदी के किनारे से ये दो दिल हमारे

      नमस्कार ,  प्रेम में होने वाले हर एहसास को फिल्मी गानों में बखूबी फिल्माया गया है | हिन्दी फिल्मी जगत के सौ साल के इतिहास में प्यार पर बने हजारों गाने आपको मिल जाएंगे | इन गानों में नायक-नायिकाओं के किरदारों के भावनाओं को  फिल्मी गाने बखूबी प्रदर्शित करते हैं |

    आज मैं भी आपको मेरा लिखा है किसी तरह का गाना सुनाने जा रहा हूं | यह गाना मैंने तकरीबन 2 साल पहले लिखा है मुझे आशा है कि आपको मेरा लिखा ये गाना पसंद आएगा -

गाना , नदी के किनारे से ये दो दिल हमारे

नदी के किनारे से
ये दो दिल हमारे
जाने कहां पर जाकर मिलेंगे
ये बिछड़े बेचारे
दो टूटे सितारे

जब से शुरू है ये अफसाना
तभी से वही है पैमाना
दिल की दिल से बातें होती हैं
फिर भी तन्हा रातें होती हैं
अब भी हैं हम अनजाने
फिर भी जीते हैं तेरे सहारे

तेरी महक है हवाओं में
चाहत घुली है फिजाओं में
तेरी ही यादों का रहता है आलम
बदला बदला सा है मौसम
बिछड़ गई जब मेरी मोहब्बत
तब क्या ढूंढे हम पतवारें

नदी के किनारे से
ये दो दिल हमारे
जाने कहां पर जाकर मिलेंगे
ये बिछड़े बेचारे
दो टूटे सितारे

      मेरा गाना के रूप में एक और छोटा सा यह प्रयास आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार

मंगलवार, 26 जून 2018

गीत , मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं बताए कोई

     नमस्कार ,  एक गीत के कई मायने हो सकते हैं , गीत की कहन शक्ति इतनी सशक्त है कि  गीत सभी प्रकार के भावों को खुद में समेट सकती है | असल में गीत शब्दों की वह माला है जिसमें भाव रूपी फूल चुन-चुनकर पिरोया जाता है |

     अब जो गीत मैं आप की हाजिरी में पेश करने जा रहा हूं उसे मैंने 23 मई 2018 को लिखा है | गीत श्रृंगार रस का गीत है | आप कि दुलार की चाहत लिये मैं गीत पेश कर रहा हूं -

गीत , मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं बताए कोई

नम आंखों की सुनले दुआएं कोई
मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं
बताए कोई

ख्वाब टूटे कांच की तरह चुभते हैं
ऐसे मासूम बड़ी किस्मत से मिलते हैं
मेरा यार मुझसे रूठा है
उसे मनाए कोई
मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं
बताए कोई

वह हालात की तल्खी थी
जो रिश्ता तोड़ा था मैंने
असल में मैंने खुद का नाता
गमों से जोड़ा था मैंने
मैं अब भी मोहब्बत के लायक हूं
आके मुझे आजमाएं कोई
मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं
बताइए कोई

एक दरख्त की बिसात हूं मैं
चमेली हूं या गुलाब हूं
आखिर फुल की ही जात हूं मैं
मोहब्बत साफ पानी है
शरबत या शराब में मिलाए कोई
मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं
बताइए कोई

नम आंखों की सुनले दुआएं कोई
मैं मोहब्बत का गुनहगार हूं के नहीं
बताए कोई

      मेरी गीत के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

गीत , ये हमारी गली है कभी आइएगा

        नमस्कार , एक गीत एक अहसास का चेहरा होती है | गीतकार के मन के जो विचार होते हैं वही गीत में शब्दों के रुप में छलक आते हैंं | इसीलिए तो जब गीत को कोई गीतों का चाहनेवाला सुनता है तो खो सा जाता है 

       मेरी ये जो गीत है एक प्रेमी के मन के भावों को प्रकट करती है | ये गीत मैं ने तकरीबन डेढ साल पहले लिखा था | मैं चाहूंगा के आप मेरी इस गीत को भी अपना प्यार दें -

गीत , ये हमारी गली है कभी आइएगा

ये हमारी गली है कभी आइएगा

पल दो पल सही आकर गुजर जाइएगा
ये हमारी गली है कभी आइएगा

यहां चाहत की मीठी कहानी है
फूलों सी कोमल जवानी है
परियां होती सितारों  है पर
नानी की ऐसी कहानी है
नीम कि सीतल छांव के नीचे
वह छोटा सा ताजमहल है मेरा
कहना अभी बाकी बहुत कुछ
कुछ देर और ठहर जाइएगा
ये हमारी गली है कभी आइएगा

एक दफा इधर भी तो देखो सनम
हवाओं के गीत तुम सुन तो सनम
अपने प्यार की दास्तान तुम्हें सुनाएंगे कैसे
कभी धड़कनों की आवाज तुम सुनों तो सनम
क्या रखा है उस शहर में
क्या बिगड़ जायेगा चार पहर में
अरज हमारी मान जाइए ना
आकर यही बस जाइएगा
ये हमारी गली है कभी आइएगा

पल दो पल सही आकर गुजर जाइएगा
ये हमारी गली है कभी आइएगा

         मेरी गीत के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

सोमवार, 25 जून 2018

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

     नमस्कार ,  नज्मों का मिजाज हमेशा से ही यू रहा है के कोई भी गमजदा , दिलफेक , इश्कजदा इंसान नज़्मों को पड़ता है और उन्हें अपने दिल के बेहद करीब पाता है |   नज़्मों के जरिए हमेशा से ही ऐसे विषय उठाए गए हैं जो समाज की भीड़ में कहीं खो से जाते हैं |  चाहे वह नारी शोषण हो , कन्या भ्रूण हत्या हो , बाल विवाह , बाल मजदूरी हो या फिर मोहब्बत हो तो |

      आज मैं जो नज़्म पेश करने जा रहा हूं इसे मैंने बस चंद दिनों पहले ही लिखा है | मेरी यह नज्म एक किताब की कहानी कहती है | नज्म का उनवान है -

नज्म , कोई दिलकश नजारा होती

कोई दिलकश नजारा होती
किताब होने से बेहतर था
कोई दिलकश नजारा होती
तो लोग निगाह लगाकर देखते तो सही
कुछ इल्म जुटाने की जद्दोजहद करते
मगर
किताब हूं
वह भी गुजरे हुए लम्हों की
संजीदा सी
उधड़े हुए जिल्ड वाली
गुमसुम मिजाज वाली
अपने कोई मोहब्बत की दास्तान तो हूं नहीं
तभी
शायद

         मेरी नज्म के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

रविवार, 24 जून 2018

गीतिका , मै तुम्हारे साथ का हकदार बन जाऊं

    नमस्कार ,  यहां मैं आपको मेरी लिखी एक नयी गीतिका सुनाने वाला हूं |  जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं गीतिका गजल की तरह ही एक रचना विधा है | वास्तव में गीतिका एक छंद का स्वरुप है |

    आज जो मैं गीतिका आपके समक्ष रखने जा रहा हूं , उसमें प्रेम के सौंदर्य का वर्णन है | मेरी उम्मीद और चाहत यही है कि यह गीतिका भी आपको पसंद आए -

गीतिका , मै तुम्हारे साथ का हकदार बन जाऊं

फूल की हर कली में मैं ही मैं नज़र आऊं
मैं तुम्हारे साथ का हकदार बन जाऊं

पूर्ण रुप से जो मैं तुम्हें समझ पाऊं
तो मैं प्रेम का पर्याय बन जाऊं

तेरी आंखों के सुरमें का असर हो
मैं तुम्हारी निगाहों में कुछ इस तरह बस जाऊं

तेरे आंचल की छांव मुझे ही नसीब हो
मैं जो कहीं तपती धूप में यात्री कहलाऊं

     मेरी गीतिका के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिश आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

शुक्रवार, 22 जून 2018

हास्य व्यंग कविता, whatsapp का प्यार

      नमस्कार ,  आज के वक्त को डिजिटल  टाइम कहां जा रहा है | कम्प्यूटर तकनीकी की विभिन्न  प्रकार की देनो मे से एक है  सोशल नेटवर्किंग या सोशल मीडिया |  सोशल मीडिया का असर आज के युवाओं में कुछ इस तरह हो गया है कि युवा ज्यादा से ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिताने लगे हैं | जहां विभिन्न प्रकार की सोशल मीडिया डिजिटली विभिन्न संप्रदायों को जोड़ने का काम कर रही है वही वास्तविक सामाजिक खालीपन भी ला रही है |

       सोशल मीडिया में युवाओं के रुझान को देखते हुए एवं इसके दुष्प्रभाव को समझते हुए मैंने 11 मई 2018 को एक हास्य व्यंग कविता लिखी थी |  उस हास्य व्यंग कविता को आज मैं आपके समक्ष प्रेषित कर रहा हूं -

WhatsApp का प्यार

हास्य व्यंग कविता, whatsapp का प्यार

एक दिन एक लड़के ने एक लड़की के
WhatsApp अकाउंट पर भेजा 'हाय'
लड़की ने मैसेज का जवाब दिया
क्या है ?
लड़के ने फिर मैसेज किया - 'हेलो'
लड़की ने फिर मैसेज के जवाब में कहा
और भी तो कुछ बोलो
फिर क्या था

दोनों का WhatsApp पर ही मिलना   मिलाना होने लगा
यहां तक कि रूठना मनाना होने लगा
यूं लगने लगा था कि दोनों की सगाई हो गई
मगर एक दिन दोनों की WhatsApp पर  ही गहरी लड़ाई हो गई
फिर क्या हुआ होगा , 'पूछो ?
दोनों ने अपने जख्मों को ही सजा लिया
पुराना WhatsApp कांटेक्ट डिलीट किया और नया बना लिया

      मेरी ये हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

हास्य व्यंग कविता, कम्प्यूटर साइंस बाहुबली है

   नमस्कार , यह दौर तकनीकी का दौर है उसमें भी अगर यह कहा जाए कि यह कंप्यूटर तकनीकी का दौर है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | आज दुनिया में जिस तरह से कंप्यूटर तकनीकी का बोलबाला है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी जानकारी आपके एक बटन दबाते ही आपके सामने आ जाती है | मानो जैसे पुरी दुनियां एक छोटे से कंप्यूटर में सिमट के रह गई हो |

     इसी विषय को आधार बनाते हुए मैंने तकरीबन 4 महीने पहले एक हास्य व्यंग कविता लिखी है | जिसे मैं आज आपके  मनोरंजन के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं -

कंप्यूटर साइंस बाहुबली है

हास्य व्यंग कविता, कम्प्यूटर साइंस बाहुबली है

टेक्नोलॉजी की चैंपियन
इंजीनियरिंग के खली है
ध्यान लगाकर सब ये सुन लो
कंप्यूटर साइंस बाहुबली है

बड़े-बड़े एयरक्राफ्ट भी
इसके सामने सर झुकाते
रोबोट्स इसके के गुलाम हैं
स्मार्टफोन , लैपटॉप्स के बच्चे कहलाते
विज्ञान से इसका जन्म हुआ है
अमेरिका में पली-बढ़ी है
ध्यान लगाकर सब ये सुनलो
कंप्यूटर साइंस बाहुबली है

सुनने को संगीत दे दिया
देखने को LCD टीबी दे दी
एक क्लिक में सब कुछ हाजिर
एक फोन में दुनिया दे दी
कौन जाने कहां रुकेगी
टेक्नोलॉजी की लहर ये जो अब चली है

टेक्नोलॉजी की चैंपियन
इंजीनियरिंग की खली है
ध्यान लगाकर सब ये सुनलो
कंप्यूटर साइंस बाहुबली है

      मेरी ये हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

ग़ज़ल, आज आसमान में सितारे नहीं हैं

     नमस्कार ,  एक ग़ज़ल का मतलब और कुछ शेर देखे |  ये जो ग़ज़ल मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं  इसे मैंने तकरीबन 4 महीने पहले लिखा है |  गजल पेश-ए-खिदमत है -

ग़ज़ल, आज आसमान में सितारे नहीं हैं

आज आसमान में सितारे नहीं हैं
शुक्र है रात उनके सहारे नहीं है

समय रहते ही मिट गई सभी ग़लतफ़हमियां
अब ये जाहिर है के वो हमारे नहीं हैंं

साहिल भी है , दरिया भी है और जाना भी है   उस पार
एक नाम भी है मगर पतवारें नहीं हैं

सुकून के लम्हे मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाते हैं
हमने ऐसे लम्हे कभी गुजारे नहीं हैं

ये शहर भी वही है ये लोग भी वही हैं
मगर इस शहर में दिलवाले नहीं हैं

      मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

ग़ज़ल, मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है

      नमस्कार ,  गजल हमेशा से ही महबूबा की खूबसूरती को बयां करने एवं अदब के लहजे में उससे गुफ्तगू करने का जरिया रही है |  जब कोई महबूब अपनी महबूबा को देखकर यह कहता है के ' मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी क़यामत ढाता है ' तो वह  अपनी महबूबा के बेइंतहा खूबसूरत होने का दावा करता है |  लेकिन बदलते दौर में गजल केबल महबूबा तक ही सीमित नहीं रह गई है |

      आज जो ग़ज़ल मैं आपके खिदमत में पेश कर रहा हूं , उसे मैंने तकरीबन 6 महीने पहले लिखा है | मेरी यह ग़ज़ल यकीनन आपको पसंद आएगी एवं आपको आपके एहसासों की तर्जुमानी करती नजर आएगी | ग़ज़ल का मतला और कुछ शेर देखे के -

ग़ज़ल, मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है

मेरे करीब से तेरा गुजर जाना भी कयामत ढाता है
मुझे देखकर तेरा मुस्कुराना भी कयामत ढाता है

खूबसूरती इतनी है कि 'उफ'
यूं बात-बात पर तेरा रूठ जाना भी कयामत ढाता है

मचलना ही दस्तूर है हर दिल का
ना - ना कहते हुए तेरा मान जाना भी कयामत ढाता है

करीब आने का जिक्र जब यूं हुआ
हाथ छुड़ाते हुए तेरा पास आना भी कयामत ढाता है

मोहब्बत में बेदिली भी सुकून देती है
मुझे सताकर तेरा नखरे दिखाना भी कयामत ढाता है

महफिल में रुसवाई का डर नहीं है 'तनहा'
पर जरा सी देर के लिए तेरा मुझसे दूर जाना भी कयामत ढाता है

       मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

शनिवार, 16 जून 2018

ग़ज़ल, वो है के मेरा मयार बदलने नहीं देता

   नमस्कार , गजलें हमेसा से कुछ ऐसी भी बातें आपको दुनिया के लोगों के बारे में बताती हैं जो हमें आमतौर पर मालुम नही होती है और वो भी इशारों में | हर गजल का आपना एक मिजाज होता है और यही इस विधा की खासियत है |

    3 जून 2018 को मैने एक गजल लिखी थी जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं | गजल का मतला और कुछ शेर देखें के -

मेरा हालात मेरे अशार बदलने नहीं देता
वो है के मेरा मयार बदलने नहीं देता

बारहा साधता है निशाने मुझ पर ही
मेरा महबूब है कि अपना शिकार बदलने नहीं देता

बहुत पहले ही मुक्तसर हो जाती मेरे हयात की कहानी लेकिन
वो है कि मेरा किरदार बदलने नहीं देता

कभी-कभी सोचता हूं मैं कि ये मुल्क की तरक्की का दौर है
मेरा निजाम है कि मेरे विचार बदलने नहीं देता

इतने सितम सहकर तो पत्थर भी उफ कह देता
मेरा दिल है कि दिलदार बदलने नहीं देता

डॉक्टर महबूब का जलवा ए हुस्न तो देखिए
बीमारी ठीक है लेकिन बीमार बदलने नहीं देता

'तन्हा' के नहीं अब किसी और के हो गए हैं वो
मगर इश्क है कि आशिकी का इख्तियार बदलने नहीं देता

    मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

शुक्रवार, 15 जून 2018

जल्दी बताओ

     नमस्कार ,  यूं तो हम हर रोज बहुत सारी कविताएं पढ़ते हैं , मगर अगर आपने ध्यान दिया हो तो उन कविताओं में से कुछ ऐसी भी कविताएं होती हैं जो हमें कुछ ना कुछ सिखा देतीे हैं | इस तरह की कविताओं को अमूमन शिक्षण कविताएं कहा जाता है | यह कविताएं भी बाल कविताओं की तरह ही होते हैं |

      यहां मैं मेरी कुछ दिनों पहले लिखें इसी तरह की एक कविता आपके समक्ष प्रदर्शित करने जा रहा हूं | आप के दुलार की उम्मीद करता हूं -

जल्दी बताओ


जल्दी बताओ

दो में दो बार दो जोड़ो
फिर एक बार दो घटाओ
अब बच गया क्या ?
जल्दी बताओ ?

सत्य का विलोम असत्य
सही का विलोम गलत
तो असत्य और गलत का विलोम क्या ?
जल्दी बताओ ?

यस्टरडे मैंने बीता हुआ कल
टुमारो मैंने आने वाला कल
तो आज को कहेंगे क्या ?
जल्दी बताओ ?

    मेरी ये शिक्षण कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

आलु चाट

     नमस्कार , आप को खाने में क्या पसंद है ? रसगुल्ले , जलेबी , समोसा , आलु चाट या फिर गोलगप्पे | बहरहाल आपको खाने में जो भी पसंद हो लेकिन अब बिन खाने की चीजों पर लिखी गई कविताएं भी खूब पसंद की जाती | इस तरह की कविताओ को कुकिंग कविताएं कहते हैं |

   इसलिए मैंने भी इसी से प्रेरित होकर एक खाने की चीज पर कविता लिखी है | कविता का शीर्षक है 'आलू चाट' | मुझे आशा है मेरी तरह आपको भी यह कविता बहुत पसंद आएगी -

आलू चाट

आलु चाट

कागज के प्लेट में
खट्टे पानी के साथ
सड़क के किनारे
केले के पास
आषाढ़ की एक रात
मैं और हाथ में
आलू चाट

पानी के गिरती बूंदों की टिप - टिप
चाट वाले के तवे के पीटने से
हो रही थी टिन - टिन
बगल के ठेले पर उबल रही थी चाय
मेरे आस पड़ोस वाले
खा रहे थे चाट , चाट - चाट
आलू चाट

    मेरी ये कुकिंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार | 

बाल कविता , तोता

      नमस्कार , बाल कविताए बच्चो के शैक्षणिक एवं मानसिक विकास में मदद करती हैं |  बाल कविताओं की मदद से बड़े से बड़े एवं जटिल विषय को बच्चों को आसानी से समझा जा सकता है | एक बहुत प्रसिद्ध बाल कविता जिसे हम सब ने सुना होगा ' मछली जल की रानी है ' है |

       आज मैं यहां एक बाल कविता लिख रहा हूं आपके दुलार की उम्मीद है | कविता ये हुई के -

बाल कविता , तोता

तोता

तोता हरा होता है
फर फर फर फर उड़ता है
लाल मिर्ची खाता है
मिट्ठू मिट्ठू कहता है
पेड़ की डाली पर रहता है
पिंजरा देखकर डरता है
तोता हरा होता है

    मेरी ये  बाल कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गुरुवार, 14 जून 2018

देवी गीत लोकगीत , चलल जायी कुआर में

      नमस्कार ,  देवी लोकगीत या भक्ति लोकगीत एक ऐसी लोकगीत है जो कि कुल देवी देवताओं की पूजा के समय गायी जाती है | देवी गीत लोकगीत भी मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश समेत भारत के कई राज्यों में गायी जाती है | देवी गीत लोकगीत में ईश्वर के प्रति प्रेम की प्रचुरता होती है एवं यही इस लोकगीत की विषय वस्तु भी होती है |

      24 मई 2018 को मैंने एक देवी गीत लोक गीत की रचना की है जिसे मैं मां शारदा के चरणों में समर्पित करते हुए आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं -

देवी गीत लोकगीत , चलल जायी कुआर में

देवी माई के दरबार में
चलल जायी कुआर में

ढोल नगाड़ा बाजे लागी
गली मोहल्ला साजे लागी
देवी माई के जयकारा लगाके
जब सबे भक्ता नाचे लागी
मनोकामना पूर्ण हो जायी
मईया रानी के त्यौहार में
देवी माई के.....

तब कवनो अडचन रोक न पाई
जब देवी मां के बुलावा आई
मईया के महिमा बहुत निराली
जेसे केहू पार न पाई
  उ शक्ति बा देवी माई में
जउन ताकत नाबा कउनो देश की सरकार में
देवी माई के......

देवी माई के दरबार में
चलल जायी कुआर में

    मेरी ये देवीगीत लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

कजरी या सावन महीने का लोकगीत , पकड़के रेलगाड़ी

नमस्कार ,  कजरी या सावन महीने का लोकगीत एक तरह की लोकगीत है जोकि सावन के महीने में गायी जाती है | कजरी लोकगीत मुख्यतः मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , बिहार आदि राज्यों में गायी जाती है | सावन का महीना हरियाली से भरा होता है और यही इस लोकगीत की आत्मा होता है |

    तकरीबन 2 हफ्ते पहले मैंने भी एक कजरी लोक गीत की रचना की है जिसे मैं आपके सम्मुख हाजिर कर रहा हूं आपके दुलार की उम्मीद है -

पटना के बिंदिया
बनारस के साड़ी
लेकर आब  सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

कजरी या सावन महीने का लोकगीत , पकड़के रेलगाड़ी

सावन के महीना
कठिन होता जीना
चम चम चमके बिजली
पानी बरसे रोजीना
कईसे समझाई तोहरे की
पिया समझा लाचारी
हाली आब सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

बरसात की टिप - टिप
दीया जले धिप - धिप
जिया हमार धडके
धक - धक , धिक - धिक
आजाना जल्दी
तड़पे तोहार प्यारी
आबन सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

पटना के बिंदिया
बनारस के साड़ी
लेकर आब  सईयां
पकड़के रेलगाड़ी

    मेरी ये कजरी या सावन महीने का लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मंडप छपाई का एक लोकगीत

   नमस्कार ,  विवाह एक ऐसा रिश्ता है जो दो इंसानों ( लड़का एवं लड़की ) को जीवन भर के लिए एक अटूट बंधन में बांध देता है | विवाह के इस पावन मौके पर हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे - मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड एवं राजस्थान आदि में  कुछ लोक गीत गाए जाते हैं जिन्हें विवाह लोकगीत कहा जाता है |

     आज मैं आपको विवाह के वक्त गाए जाने वाले लोकगीतों में से मंडप छपाई के वक्त गाए जाने वाले एक लोकगीत को प्रस्तुत कर रहा हूं | इस लोकगीत को मैंने 22 जून 2018 को लिखा था | मुझे आशा है मेरा यह लोकगीत आपको जरूर पसंद आएगा -

मंडप छपाई का एक लोकगीत

कहां से लिअईल फूफा बांस के भथुनिया हो
कहां से लिअईल कल्याणी
अयोध्या से लिअईली बेटा बांस के भथुनिया हो
अयोध्या से लिअईली कल्याणी

का चाही फूफा तोहरे की मडवा छबउनी हो
कहां चाही गड़बऊनी कल्याणी
चांदी चाहि बेटा हमके मडवा छबउनी हो
सोना चाहि गड़बऊनी कल्याणी

चांदी बा महंगा फूफा सोना बा महंगा हो
कइसे हम तोहर नेगबा चुकाई
कुछ नहीं चाहि बेटा हमके मडवा छबउनी हो
कुछ नहीं चाहि गड़बऊनी़ कल्याणी

    मेरी ये मडवा छवाई की विवाह लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

शुक्रवार, 8 जून 2018

फगुआ लोकगीत , भऊजी हो

    नमस्कार ,  होली हमारे देश भारत के कुछ प्रमुख त्योहारों में से एक है |  होली रंगों का सबसे बड़ा पर्व है जिसमें लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं एवं शुभकामनाएं देते हैं |  होली के त्यौहार में कहा जाता है कि दुश्मन भी एक दूसरे के गले लगते हैं एवं गुलाल लगाते हैं |  होली का पर्व उमंग उत्साह एवं  आपसी भाईचारे का पर्व है | होली के पर्व में जीजा साली एवं देवर भाभी के तीखे मीठे रिश्ते की नोकझोंक भी देखने को मिलती है |
होली के त्यौहार में एक लोक गीत भी गायी जाती है जिसे फगुनिया या फगुआ कहते हैं |

फगुआ लोकगीत में देवर भाभी , जीजा साली एवं पति पत्नी के रिश्ते की  झलक देखने को मिलती है |  फगुआ लोकगीत भारत के मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार आदि हिंदी भाषी राज्यों में गायी जाती है| | देवर भाभी के नोक झोंक के रिश्ते पर आधारित 23 मई 2018 को मैंने भी एक फगुआ लोक गीत की रचना की है | जिसे मैं आपके मनोरंजन के लिए आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

फगुआ लोकगीत , भऊजी हो

अब के फागुन में
भईया नहीं अइहीं हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

केकरेे से होली में रंग डलबईबु
केकरे से गाले अबीर मलबईबु
पुआ कचोरी अब कइसे छनाई
केकरे से रंगे में चोली भीगबईबु हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

छोटका देवरवा से रंग डलवा ल
हमरे से गाले अबीर हमबा ल
छेना के खाल तू लमहर मलाई
अब होली में का तू जईबु हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

अब के फागुन में
भईया नहीं अइहीं हो , भऊजी हो
कैइसे होली के माजा
उठईबु हो , भऊजी हो

      मेरी ये फगुआ लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

    नमस्कार ,  प्रभाती भी एक लोकगीत है | इसे मां अपने बच्चे को सुबह के समय जगाने के लिए गाती हैं | प्रभाती लोक गीत भी भारत के कई हिस्सों में गायी जाती है जैसे मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार , राजस्थान आदि | प्रभाती में भी लोरी के तरह ही  वात्सल्य रस का समावेश होता है | प्रभाती लोक गीतों में  माता यशोदा द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को सुबह के समय जगाने के दृश्य का गीतों में अनुसरण मिलता है |

    22 मई 2018 को ही मैंने एक प्रभाती भी लिखी थी जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं , मेरे प्रयासो को आपके आशीर्वाद की उम्मीद है -

प्रभाती लोकगीत , अब तुम भी जागो नंदलाला

कलियां जागी , फूल जागे
तितलियां जागी , पत्ते जागे
जागे सारे ग्वाला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

कहीं गेंद खेलो
कहीं माखन खाओ
कहीं मटकी फोडो
दिखाओ कोई खेल निराला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

मैं अब ना तुम्हें जगाउंगी
अपना प्रभाती जाऊंगी
अभी मंदिर भी सजाना है
बनानी है फूलों की माला
सारी दुनिया जाग गई
अब तुम भी जागो नंदलाला

      मेरी ये प्रभाती लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गुरुवार, 7 जून 2018

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

    नमस्कार , अब मैं जिस लोकगीत के बारे में बात करने जा रहा हूं  वह एक ऐसा लोकगीत है जो भाषा , क्षेत्र , राज्य आदि सीमाओं के परे है | क्योंकि लोरी एक ऐसा लोक गीत या गीत है जिसे हर मां अपने बच्चे को सुलाने के लिए बड़े प्यार से गाती है |  हां लोरी की रचना अलग अलग भाषाओं में अलग अलग हो सकती है  लेकिन हर लोरी वात्सल्य रस से भरी हुई होती है  जिसे सुनकर बच्चे को चैन की नींद आती है | हम सब ने भी अपने-अपने बचपन में अपनी अपनी मांओ से लोरी जरूर सुनी होगी |  वर्तमान हालात में हमारे बडे शहरों में भले लोरियां गायक सी होती जा रही हो लेकिन गांवो में यह आज भी फल-फूल रही हैं |

     एक मां के उसके बच्चे से प्यार की कोई तुलना नहीं की जा सकती | मां की ममता को प्रदर्शित करती  हुई मेरी एक लोरी जिसकी रचना मैंने 22 मई 2018 को की थी आपके स्नेह के लिए साझा कर रहा हूं -

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

लोरी , बेटा मेरे सो जा अब हो गई है रात

निंदिया रानी आएगी
सपने खूब दिखाएगी
यह रात बीत जाएगी
सुबह मां खिलाएगी
मुन्ने को दूध भात
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

कल का सूरज आएगा
खिलौने ढेरों लाएगा
मेरा मुन्ना खूब खेलेगा
मैया भी खेलेगी मुन्ने के साथ
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

टीम टीम करने लगे हैं तारे
चमकने लगा है चांद
बेटा मेरे सो जा
अब हो गई है रात

      मेरी ये लोरी लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

     नमस्कार ,  सोहर एक लोकगीत है जो मध्य प्रदेश के बघेलखंड , राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गाया जाता है |  सोहर लोकगीत नवजात बच्चे के जन्म होने की खुशी में गाया जाता है | जब मां बच्चे को जन्म देती है तो घर की बाकी औरतें बच्चे के जन्म होने की खुशी में सोहर गाती हैं | सोहर एक बहुत ही प्रचलित लोकगीत है जो कि लगभग हर हिंदी भाषी राज्य में गाया जाता है |

       21 मई 2018 को मैंने भी एक सोहर लोकगीत की रचना की है इस लोकगीत को मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं इस मिटती हुई लोकगीत की विधा को  आपके प्यार की जरूरत है | आशा है इस सोहर लोकगीत को आपका प्यार जरूर मिलेगा -

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

सोहर लोकगीत , राम जोगे जनमें ललनवा

बधाई हो बाबा के
बधाई हो माई के
बधाई हो दादा के
बधाई हो दादी के
आज बड़ा शुभ दिन है

आनंद भयो रे भवनमां
जुग जुग बाढ रे ललनवा
ठुमक चले रे अगनवां
आज बड़ा शुभ दिन है

राम जोगे जनमें ललनवा
सजाओ रे पलनावा
आज बड़ा शुभ दिन है

      मेरी ये सोहर लोकगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मंगलवार, 5 जून 2018

दो मुक्तक काव्य

    नमस्कार ,  मुक्तक काव्य  , श्रव्य काव्य का दूसरा भेद है |  श्रव्य काव्य का पहला भेद प्रबंधन काव्य है | जिसके उपभेद महाकाव्य , खंडकाव्य और आख्यानक गतियां हैं | मुक्तक काव्य की विषय वस्तु स्वतंत्र होती है | यानी मुक्तक काव्य में कहानी या विषय वस्तू का प्रबंधन नहीं होता |  मुक्तक काव्य की रचना छोटे-छोटे पदों या दोनों में की जाती है |  मीराबाई के भक्ति के पद एवं बिहारी के दोहे मुक्तक काव्य की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं

     3 जून 2018 को मैंने दो  मुक्तक पदों की रचनाएं की है | जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं |

                            (1)

गिरिधर , कृष्ण , गोपाल

राधा के प्रभु

राधा के प्रभु गिरिधर , कृष्ण , गोपाल
मधुर मधुर बंसी बजाओ
फिर आगन में गईया चराओ
मटकी फोड़ी , माखन चुराओ
गवालों कि तुम फिर टोली बनाओ
हम हैं तुम्हारे दरश को प्यार से
गईयों के रखवाल
राधा के प्रभु गिरिधर , कृष्ण , गोपाल

                           (2)

राम आओ एक बार फिर

राम आओ एक बार फिर

राम आओ एक बार फिर
तुम अवधपुर में
कैसी बची है तुम्हारी अयोध्या
कितनी रही है तुम्हारी अयोध्या
कहां है तुम्हारा भवन वो अवधपुर में
एक बार फिर से वसाओ
तुम्हारा राज फिर अवधपुर में
राम आओ एक बार फिर
तुम अवधपुर में

      मेरे ये दो मुक्तक काव्य आपको कैसे लगे मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

खंडकाव्य , वनवास गमन के पूर्व माता सीता , भगवान राम संवाद

     नमस्कार ,  खंडकाव्य , श्रव्य काव्य के प्रबंधन काव्य का एक रुप है | प्रबंधन काव्य के तीन भेद मे से खंडकाव्य एक है | खंडकाव्य एक छोटे संयोजन का काव्य है | खंड काव्य की विषय वस्तु या कहानी महाकाव्य से या फिर स्वतंत्र रूप से हो सकती है | सुदामा चरित्र , पंचवटी आदि कुछ प्रमुख खंडकाव्य हैं |

    18 मई 2018 को मैंने भी एक खंडकाव्य की रचना करने की कोशिश की थी | मैं उस दिन के संपूर्ण प्रयास को आज आपके सम्मुख प्रस्तुत करने की चेष्टा कर रहा हूं | मुझे ज्ञात है कि मेरी लेखनी अभी छोटी है परंतु यहां मैं केवल अपने प्रयास का प्रदर्शन कर रहा हूं | आपके समर्थन की अपेक्षा करता हूं | खंडकाव्य का शीर्षक है  -

वनवास गमन के पूर्व
माता सीता , भगवान राम संवाद

भगवान श्री राम माता सीता से -

भगवान श्री राम

कंकड़ पत्थर डगर में होंगे
14 वर्ष हम ना नगर में होंगे
कहीं कुटिया बना पाया कहीं वो भी नहीं
मैं अब होने जा रहा हूं वनवासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता

ना ऐश्वर्य होगा ना दास-दासियों
ना ये मखमल होगा ना सोने की थाली कटोरिया
कंद मूल फल खाने पड़ेंगे
ना मिले तो भूखे ही दिन बिताने पड़ेंगे
कभी-कभी तो रह जाओगी तुम प्यासी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता

यह वह जीवन नहीं होगा
जिसका तुमने सपना संजोया होगा
अपनी हर पूजा-अर्चना में
कामनाओं का फूल पिरोया होगा
मैंने तुम्हारे शुखों का वचन दिया था
राजा जनक का मैं सामना कैसे कर पाऊंगा
माता सुनैना के सवालों का जवाब कैसे दे पाउंगा
अब वास होगा घनघोर वन में
तुम हो जनक दुलारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता

पिताश्री और माताओं की सेवा करना
मेरे छोटे अनुजो का मार्गदर्शक बनना
अपनी छोटी बहनों की आदर्श बनना
मैं रहूंगा तुम्हारा आभारी रि सीता
मत चलो मेरे साथ रि सीता

माता सीता भगवान श्री राम से -

माता सीता

दीपक के बिन ज्योति कैसी
बिन जल के नदी ही कैसी
बिन नभ के धरती हि कैसी
मेरा जीवन आप से जुड़ा है
आप का सिंदूर है मेरे भाल में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी

मैं आपके चरणों की दासी हूं
मुझे ऐश्वर्य की चाहत नहीं
मैं आपके प्रेम की प्यासी हूं
मुझे जेवरों , मखमली से कोई लगाव नहीं
कंकड़ पत्थर में सह लूंगी
भूखी प्यासी मैं रह लूंगी
बस सदा मैं चाहती हूं
आपका हाथ मेरे हाथ में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी

आपका साथ ही मेरा शुख है
आपका बिरह ही मेरा दुख है
बिन जल के मछली का जीवन क्या
बिन स्वामी भार्या का जीवन वैसा
मेरे माता पिता मुझ पर गर्व करेंगे
जो मैं गई आपके संग वनवास में स्वामी
वन मैं भी चलूंगी आपके साथ में स्वामी

❇❇❇❇

      मेरा ये खंडकाव्य आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

पतझड़ का मौसम

नमस्कार , 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का मकसद जनमानस में पर्यावरण के प्रति चेतना जागरूक करना है | बढ़ती जनसंख्या से निरंतर पेड़ों की कटाई एवं जंगल का सफाया हो रहा है जिससे दिन-प्रतिदिन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है | इसका दुषपरिणाम मौसम में अनिश्चितकालीन परिवर्तन हो रहे हैं , तूफान बाढ़ , भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आना बढ़ गया है | इन सभी आपदाओं से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित किया जाए | यदि पर्याप्त मात्रा में पेड़ लगा दिए जाएं तो पृथ्वी का तापमान नियंत्रित किया जा सकता है | वृक्षारोपण मानव कल्याण की ओर बढ़ता हुआ एक सुनहरा कदम है और इसे हमें निरंतर जारी रखना चाहिए |

     प्रकृति के इसी सौंदर्य का बोध कराती हुई  तकरीबन एक साल पुरानी मेरी एक कविता है , जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

 पतझड़ का मौसम

                 पतझड़ का मौसम

ठंडी हवा
सुहानी धूप
फागुन का महीना
पुराने पत्ते टूट कर
पेड़ों में नए पत्ते उगने का मौसम
दिल के तिल - तिल बढ़ने का मौसम
पतझड़ का मौसम

               पेड़ों की छाया
               प्रियतम की याद आती माया
               फागुन की खूमारियां
               दोस्त - यार , सखियां - सहेलियां
               प्रीत से दूरियों का गम
               कहीं प्यार का मदहोशी भरा आलम
               पतझड़ का मौसम

         मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

Trending Posts