बुधवार, 30 दिसंबर 2020

कविता , आओ 2021 आओ

      नमस्कार , सबसे पहले आपको नए वर्ष 2021 की हार्दीक शुभकामनाएं | 2021 से कई उम्मीदे जताते हुए मैने एक कविता लिखी है जिसे मैं आपसे सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं कैसी रही मुझे जरुर बताइएगा |


आओ 2021 आओ


आओ 2021 आओ

उम्मीदों की नई रोशनी लाओ

खुशखबरी की वैक्सीन लगाकर

महामारी को मार भगाओ

आओ 2021 आओ


मन के सारे गम मिटाओ

खुशहाली हर घर लाओ

नए सपनों के पंख लगाकर

सब का जीवन स्वर्ग बनाओ

आओ 2021 आओ


फिर इतिहास मत दोहराना

2020 की तरह मत आना

आओ तुम ऐसे के सब कहे

कुछ और बरस रुक जाओ

आओ 2021 आओ

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता , कलमुहे 2020

       नमस्कार , जैसा की आज 2020 का आखरी दिन है तो इस वर्ष की तमाम कड़वी यादों को दुनियां और अपने स्वयं के नजरिये से देखते हुए मैने एक छोटी सी कविता पिरोयी है जिसे मैं आपकी हाजिरी में रख रहा हूं अब आप पढ़कर बताए की आप की राय में यह साल 2020 कलमुहा है या नही |


कलमुहे 2020


जा कलमुहे 2020 जा

फिर कभी लौट कर ना आना

भुल कर भी मुह ना दिखाना


मेरा बस चले तो तेरा विनाश कर दूँ

विनाश ही क्या सर्वनाश कर दूँ

मैं तुझे मिटा दूँ अपने ख्वाबों से ख्यालों से

तू ने दूर कर दिया अपनों को 

अपने चाहनेवालों से


लाखों लोगों कों मौत के 

घाट उतार दिया तू ने

मेरे करियर का सारा प्लान

बिगाड़ दिया तू ने

अब नयी सहर के 

आने का इंतजार है मुझे

और तेरे बीत जाने का

इंतजार है मुझे

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गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

ग़ज़ल , दुल्हा और दुल्हन कि जात मिलनी चाहिए

      नमस्कार , आज ही मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है तो सोचा के क्यों न आपके साथ साझा की जाए कैसी रही मुझे अपने विचार जरुर बताइएगा |

ये शर्त नही है कि जज्बात मिलनी चाहिए

हां ये जरुरी है कि जायदाद मिलनी चाहिए


शर्त ये बनाई है इस जमाने ने शादी की

दूल्हा और दुल्हन कि जात मिलनी चाहिए


रहन-सहन ख्वाबों-ख्याल मिलें या ना मिलें

मगर रिश्तेदारों कि औकात मिलनी चाहिए


कमी तो यहां है तनहा कि दिल खुश नही हैं

मेहमानों को स्वागत में हर बात मिलनी चाहिए

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मंगलवार, 17 नवंबर 2020

ग़ज़ल , तुम्हारा मक्सद उसको बदलना क्यों है

      नमस्कार , आज ही मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है तो सोचा के क्यों न आपके साथ साझा की जाए | यह पुरी ग़ज़ल जिस विषय पर लिखी है मैने वह आजकल बड़ा ही चर्चा में बना हुआ है तो आप ग़ज़ल पढ़ीए और विषय तलाशने की को शिश करिए | आपका काम थोड़ा आसान करने के लिए मै यह बताए देता हुं कि विषय पहचानने में आपकी ग़ज़ल का मदद दुसरा और आखरी शेर कर सकता है |

समंदर को दरिया में ढलना क्यों है

तिरगी की राह पर चलना क्यों है


मोहब्बत है तो उसे वैसी ही कबूल करो

तुम्हारा मक्सद उसको बदलना क्यों है


सब को चाहिए बस रोशनी उसकी

दीए का नसिब जलना क्यों है


किसी दिन उसकी छुट्टी नही होती

सुरज को रोज निकलना क्यों है


काश के उम्र यहीं ठहर सी जाती

जवानी को बुढ़ापे में ढलना क्यों है


तनहा ने पुछा है ये सवाल तुझसे

तेरी मोहब्बत में मुझको बदलना क्यों है

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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

शेरो शायरी , तब तुम क्या करोगे जब तुम्हारी सरकार चली जाएगी

    नमस्कार , आज मैं बात करना चाहूंगा एक बहुचर्चित मसले पर जैसा की आप को पता तो चल ही गया होगा की देश के एक बहुत ही जाने माने पत्रकार और रिपब्लिक टीवी के एडीटर इन चीफ श्रीमान अर्नव गोस्वामी को महाराष्ट्र की मुंम्बई पुलिस के द्वारा 2018 के एक कथित आत्महत्या के लिए उकसाने के केस में गिरफ्तार कर लिया गया है | और इस केस के बारे में मुल तथ्य यह है की यह केस 2019 में बंद कर दिया गया था | खैर आप यह सोच रहे होंगे के मै आपको ये सब क्यों बता रहा हूं एवं मैं इसके बारे में क्यों लिख रहा हूं | अगर आप इसे यू देखेंगे तो यह एक सामान्य गिरफ्तारी लगेगी मगर यह इतनी सामान्य नही है |


   दरहसल पिछले छ: महीने से अर्नव सर ने जिस तरह से पालघर साथुओं की लिचिंग की खबर दिखाई और महाराष्ट्र सरकार से सबाल किए फिर जिस तरह से सुशांत कि कथित हत्या के मामले में अर्नव सर ने एक एक सच्चाई दिखाई तथा पुलिस के रवैये पर सबाल उठाया एवं बालीबुड के ड्रग्स कनेक्शन को दुनियां के सामने रख दिया जिसमें बडे़ बडे़ सितारों के नाम आने लगे थे यही नही अभी हाल के ही हाथरस केस की भी सच्चाई दिखा दी तो पाकिस्तान में बैठी और देश के अंदर बैठी उन राष्ट्र विरोधी ताकतों के पेट में दर्द होना लाजमी था | यही वजह है की पहले उनपर हमला किया गया फिर 150 से ज्यादा एफआईआर की गई तब भी अर्नव सर नही रुके फिर फर्जी टीआरपी घोटाला बनाया गया मगर अर्नव सर तब भी नही रुके तो अब अन देश विरोधी और स्नातन विरोधी ताकतों ने अर्नव सर को रोकने का यह तरिका निकाला है और यह गिरफ्तारी इसी बदले की कार्यवाही का परिणाम है | 

मगर उन देश विरोधी ताकतों को यह समझजाना चाहिए की अब अर्नव गोस्वामी मात्र एक शख्स नही है अब वह एक विचारधारा है बदलाव कि एक आग है और बुझाने की कोशिश में आग अक्सर भड़क जाया करती है | मैने अपने इन शेरे में अपने मन के कुछ जज्वात कहने की कोशिश की है आपकी तबज्जो चाहूंगा

मेरे गले को इतना जोर से न दबाओ सुनलो

मेरी आवाज में सारा भारत बोलता है


ऐ हुक्मरानों यू तलवार न चलाओ मुझपर

मेरी कलम की धार तुम्हारी तलवार से बेहतर है


सितमगरों एक दिन तो ये जुल्म की धार चली जाएगी

तब तुम क्या करोगे जब तुम्हारी सरकार चली जाएगी 

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बुधवार, 4 नवंबर 2020

ग़ज़ल , हद पार प्यार कराता है

      नमस्कार , आपको करवाचौथ की हार्दीक शुभकामनाएं | इस पर्व के शुभ अवसर पर मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके समक्ष हाजिर कर रहा हूँ कैसी रही मुझे जरुर बताइएगा

सब्र भी यार कराता है

हद पार प्यार कराता है


ये चांद मी तेरे जैसा है

बहोत इंतजार कराता है


भुख मुझे भी लगती है

व्रत पुरा प्यार कराता है


ये मेरी चलनी का चांद

प्यार का इजहार कराता है


सारी उमर मैं सिर्फ तेरा हूँ

तनहा ये इकरार कराता है

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल , जिंदगी कठिन है,यूं बातें करने से कुछ नहीं होगा

 जिंदगी कठिन है,यूं बातें करने से कुछ नहीं होगा

जी ले जीने के लिए,यूं मरने से कुछ नहीं होगा


जिंदगी दरिया है और हमें खुद ही तैरना होगा

बना ले खुद किनारा,यूं तड़पने से कुछ नहीं होगा


एक बात याद रख,तू आसमान का बादल है

खुशी की बरसात कर,यूं गरजने से कुछ नहीं होगा


संघर्ष है जिंदगी और हमारी कठिन कहानी है

लड़ जा जिंदगी से,सिर्फ समझने से कुछ नहीं होगा


उड़ता पंछी है तू और ये आसमान सब तेरा है

तेज़ हवाए देख कर,यूं गिरने से कुछ नहीं होगा


अभी तो तेरी शुरुआत है लम्बी तेरी जवानी है

जीना सिख अब,यू मौत पकड़ने से कुछ नहीं होगा

~नवोदयन 'कान्हा'

27 अक्तूबर 2020 को 6:19 pm

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल , फला कहता है विकास की बहार आई है

      नमस्कार , मैने आज एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं अपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ पढ़ कर जरुर बताए की कैसी रही 

फला कहता है विकास की बहार आई है

मेरी दुआ तो उसकी नजर उतार आई है


सुनते हैं उसने कोई नया कानुन बनाया है

किसानों में गुस्से की खबरें हजार आई है


योगीजी के राज में बलात्कार होगया भाई

सियासत करने वालों की भरमार आई है


लगता है देश में गृहयुद्ध करा देंगें न्युज चैनल

ब्रेकिंग न्युज एक के बाद एक लगातार आई है


फलाने का लड़का अब पड़ता है रात भर

उस गांव में ना बिजली पहली बार आई है


सुखीया दद्दा बता रहे थे दुक्खीलाल को

इलाज मुफ्त जब से फला की सरकार आई है


तनहा एक तो चुनाव दो हार उस पर महामारी

विरोधी नेताओं की नयी पीढी़ ही बेकार आई है

      मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मुक्तक , चार र चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 19

      नमस्कार , पिछले एक महिने के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मैं अपके समक्ष प्रस्तुत करने कि इजाजत चाहूँगा , मुक्तक देखें के

हर सबूत को हर सत्य को तोड़ मरोड़ करने पर आमादा हैं 

वो पत्रकारिता के नाम पर कातिलों से गठजोड़ करने पर आमादा हैं

आतंकियों और कातिलों को मासूम बनाकर tv चैनलों पर दिखाने वाले

ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा हैं


बिना आग लगे कहीं से यू ही धूआं निकलता नही है

झुठ के तेल के बिना सच का चिराग जलता नही है

तुम सच कह रहे हो भारत तुम पर भारत यकीन करता है

किसी के काला कहने से सुरज का सच बदलता नही है


मोहब्बत का ठोंग रचा जाता है वफा का नाम लेकर

वो तुमसे झुठ बोलता है तुम्हारे खुदा का नाम लेकर

तुम भी तीसरी बार मोहब्बत करो दिल साफ करके

और इसकी शुरुआत करों पहली दो बेवफा का नाम लेकर


पाप को तेरी ललकार सुनी है आज पुरी दुनियां ने

सत्य की सच्ची पुकार सुनी है आज पुरी दुनियां ने

अत्याचारी दंभ भरेगा कब तक अपनी झुठी सत्ता का

हिन्द के शेरनी कि दहाड़ सुनी है आज पुरी दुनियां ने


'चौकिदार चोर है' के खुब नारे लगे थे

चुनाव जीतने इसी के सहारे लगे थे

कोई इन्हें न झुठा कहो न कहो फरेबी

पास होने के चक्कर में पप्पु हमारे लगे थे


हर पीडित बेटी के साथ इंसाफ होना चाहिए

योगी तेरे राज से ये आगाज होना चाहिए

बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

इस महामारी का जड़ से इलाज होना चाहिए


स्वार्थ के लिए इस धरा को नर्क मत करो

सियासत के लिए दिखावे का वर्क मत करो

एक जगह खुब होहल्ला दुसरी जगह सन्नाटा

नेताजी सुनोंं बेटी बेटी में तो फर्क मत करो

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

मुक्तक , बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

      नमस्कार , उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले से दिल दहला देने वाली #कथित सामुहिक बलात्कार की घटना देश में छायी हुई है , कुछ लोग इसे निर्थया 2 कह रहे है और कहा भी जाना चाहिए क्योंकि खबरों के मुताबिक उस बहन के साथ बर्बरता ही इतनी कि गई थी तभी तो वह पंन्द्रह दिन वह दर्द सहती रही और आखिर में दर्द नही सह पाई और इस दुनियां से चल बसी | खबर है कि चारों आरोपियों को पकड़ लिया गया है और कडी़ कार्यवाही करने का आश्वासन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के द्वारा दिया जा रहा है | आथी रात को परिवार की मर्जी के बीना बेटी की लाश जलाने को लेकर पुलिस कि भुमिका संदेह के घेरे में है | मेरी यही मांग और प्रार्थना माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी से है जिसे मैने इन चार लाइनों में लिखा है


हर पीडित बेटी के साथ इंसाफ होना चाहिए

योगी तेरे राज से ये आगाज होना चाहिए

बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

इस महामारी का जड़ से इलाज होना चाहिए


     मगर इस बीच इसे लेकर जैसा हिंन्दुस्तान में आम तौर पर चुनाव के वक्त पर होता है सियासत भी खुब हो रही है | कुछ लोग इस सामाजिक अपराथ को दलित बनाम स्वर्ण बनाने पर लगे है , कुछ नेता मौकाफरस्ती कर रहे हैं , बलात्कार की खबरे अन्य राज्यों से भी आरही है पर सलेक्टिव होकर केवल उत्तर प्रदेश के हाथरस ही जा रहे है पीडित परिवार से मिलने मगर अन्य जगहों पर नही | ऐसे नेताओं के लिए भी मैने चार लाइनों में यू अपनी बात कहने कि कोशिश की है 


स्वार्थ के लिए इस धरा को नर्क मत करो

सियासत के लिए दिखावे का वर्क मत करो

एक जगह खुब होहल्ला दुसरी जगह सन्नाटा

नेताजी सुनोंं बेटी बेटी में तो फर्क मत करो


     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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मंगलवार, 22 सितंबर 2020

ग़ज़ल , महामारी फैली है

        नमस्कार , जैसा कि हम सब जानते हैं कि हम एक लंबे लाँकडाउन के बाद अनलाँक 3 में हैं और इसी के साथ देश में ट्रेने और बसे चलने लगी है बाजार और स्कुल खोले जा चुके है मगर इसका मतलब ये नही है कि कोविड 19 महामारी खत्म हो गयी है बल्की यह तो भारत में दिन पर दिन फैल रही है | आज भारत में कोविड 19 महामारी के 55 लाख से ज्यादा केस मिल चुके हैं और लगभग 88 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी है |

       गौर करने लायक बात यह है की इस तरह कि गंभीर परिस्थितियों में भी भारत सरकार NEET और JEEmains के इग्जाम करा रही है और अब UPSC prelims 2020 के इग्जाम भी 4 अक्टूबर को आयोजित होने जा रहे हैं और इन्हें टालने की सरकार कि कोई मंशा नही दिख रही है  | यहां सवाल यह है कि जिन परिक्षाओं में देश भर के करिब चालिस से पचास लाख लोग हिस्सा लेते हैं ऐसे इग्जामों को कराकर सरकार इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में क्यों डाल रही है क्या देश की इकोनाँमी को रफ्तार देने के लिए इतने लोगों के स्वास्थ को खतरे में डालना सही है | मैं निजी तौर पर सरकार के इस फैसले की कडे़ शब्दो में घोर निंदा करता हुँ | अपने इन्ही विचारों को मैने अपने ग़ज़ल में जगह दी है मुझे उम्मीद है की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी |

ये सब को पता है कि बीमारी फैली है

फिर भी बाजार में मारामारी फैली है


ये कैसा निजाम है परिक्षाएं करा रहा है

और पुरे मुल्क में महामारी फैली है


कहते हैं घर घर चलकर रोजगार आएगा

गांव में यही खबर सरकारी फैली है


कल मुशाफिरों कि टोली ठहरी होगी यहां

देखों पेड़ के निचे रोटी तरकारी फैली है


जितने भी किए जांए इंतजाम कम हैं

देश के युनाओं में इतनी बेकारी फैली है


कौन देगा इन मासुम से हाथों में किताब

मेरे समाज के बच्चों में बेगारी फैली है


तनहा खुलकर रखता है राय अपनी

हर गली मोहल्ले में ग़ज़ल हमारी फैली है

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ग़ज़ल , खबर में है

        नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुँ | कहना ये चाहुंगा के अगर आप हालिया खबरों से अवगत होंगे तो आपको इस ग़ज़ल का ज्यादा आनंद आएगा |

धुएँ में बीताई गई रात खबर में है

चर्चा शहर में और बात खबर में है


सत्तापक्ष का नेता गाली गलौच करता है

नेताजी की औकात खबर में है


ये आरक्षण आरक्षण का खेल है

इंसानों कि हर एक जात खबर में है


साजिश का मारा जो सितारा मर गया

अब उसके सारे हालात खबर में है


संदेह के घेरे में हैं बडे़ पर्दें के सितारे

नशे से हुई उनकी मुलाकात खबर में है


प्रेमी संग फरार हुई बेटी के मां-बाप हैं

तनहा उनके जज्बात खबर में है

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रविवार, 20 सितंबर 2020

ग़ज़ल , तू का रिश्ता है

       नमस्कार , आज मैने एक नयी ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके साथ हिम्मत जुटाकर साझा कर रहा हुँ मुझे यकिन है कि मेरी ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगेगी |

सहर और साम का जुस्तजू का रिश्ता है

हवाओं का फूलों से खुशबू का रिश्ता है


उसकी शादी के बाद से ये आदबो आदाब

वर्ना उससे मेरा आप का नही तू का रिश्ता है


न जाने जमाने भर को नागवार गुजरता है

परिन्दे का परिन्दी से गुफ्तगू का रिश्ता है


उसने ऐसे इंसानियत का रिश्ता निभाया है 

कहते है बीमार से उसका लहू का रिश्ता है


रोज घर में रामायण महाभारत साथ होती है

प्यार और तकरार का सास-बहू का रिश्ता है


कौन किसे जीजा कहे कौन किसे साला

दोनों का एक दुसरे से हूबहू का रिश्ता है


गर मोहब्बत का जलवा हो तो तनहा हो

आदत का अदाओं से आरजू का रिश्ता है

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ग़ज़ल , बेरोजगार हुं साहब

       नमस्कार , आज ही मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख रख रहा हुँ आशा करता हुँ की आपको मेरी यह ग़ज़ल प्रसंद आएगी | मैं इमानदार होकर कहुँं तो यह ग़ज़ल मेरे स्वयं के दिल के जज्वात कहती है क्योंकि कम्प्युटर साइंस एण्ड इंजिनियंरिंग से बैचलर ऑफ इंजिनियंरिंग कि डिग्री 2019 में पुरी कर लेने के बाद भी अभी तक मुझे कोई नौकरी या रोजगार नही मिल पाया है तो मैं उन लोगों की मनोदशा बहुत बेहतर करीके से समझ सकता हुँ जो परिवार वाले हैं बहरहाल आप मेरी इस ग़जल का आनंद लिजिए और कैसी रही जरुर बताइएगा |

समाज के नजरों में बेकार हुँ साहब

बाजार में बिकने को तैयार हुँ साहब


नाकारा निकम्मा दुसरे नाम होगए

मैं पढा़ लिखा बेराजगार हुँ साहब


वोट दे देने के बाद कुछ नही मिलेगा

मैं इतना तो समझदार हुँ साहब


शिर्फ मेरे भुखे मरने का सवाल नही

अपने परिवार का आधार हुँ साहब


कौन चाहता है लम्हे गिनकर दिन बिताना

मगर मैं क्या करुं लाचार हुँ साहब


तनहा लहू पसीना बनाकर बहा देंगें

जीतोड़ मेहनत के लिए बेकरार हुँ साहब

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मंगलवार, 1 सितंबर 2020

ग़ज़ल , मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

     नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से छठवी ग़ज़ल यू देखें के

मुझसे मोहब्बत करो और सबर जाओ ना

यू देख क्या रहे हो , सिधे दिल में उतर जाओ ना


गर तुम्हे जिंदगी देखनी है जिंदा लोगों में नजर आएगी

उधर क्या कर रहे हो , इधर आओ ना


अब तुम्हें ईश्क की गलतफहमी है तो इससे उनको क्या

तुम मरना चाहते हो तो मरो , मर जाओ ना


पत्थरों का क्या है वो तो टकराते ही रहेंगे

अब तुम कांच हो तो बिखरो , बिखर जाओ ना


अब आफत आई है तनहा तो गांव आ रहे हैं

और जाओ शहर , शहर जाओ ना

     मेरी ये ग़ज़ल अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस ग़ज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या

     नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पांचवी ग़ज़ल यू देखें के

बहोत दिन ठहर के आरहे हो क्या

अपने गांव घर से आरहे हो क्या


बहोत तिजारती लहजे में गुफ्तगुं कर रहे हो

किसी शहर से आरहे हो क्या


तुम्हारा अंदाज भी उसके जैसा है

तुम भी उधर से आरहे हो क्या


लुटे हूए सुल्तान जैसी हालत लग रही है तुम्हारी

क्या , दफ्तर से आरहे हो क्या


लगता है सफर लंबा भी है जरुरी भी है तनहा भी है

कब से , दोपहर से आरहे हो क्या

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ग़ज़ल , ये बेफिजुल का सुनना सुनाना नही होगा

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से चौथी ग़ज़ल यू देखें के

ये बेफिजुल का सुनना सुनाना नही होगा

तय हुआ है अब रोज का मिलना मिलाना नही होगा


दूर रहने से क्या जान पहचान बदल जाएगी

होगा तो ये होगा के आना जाना नही होगा


दरिया खुद ही समंदर तलाश लेतीं हैं

मोहब्बत में अब किसी से पुछना पुछाना नही होगा


आ एक दिन तसल्ली से बैढकर गुफ्तगुं कर लेते हैं

मुझसे ये रोज का वाट्सअप पर मैसेज पढ़ना पढ़ाना नही होगा


जिस बला कि खुबसुरत लगना हो एक बार में ही लग जा

तेरी खुबसुरती में तनहा यू बार बार ग़ज़लें लिखना लिखाना नही होगा

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ग़ज़ल , अरे ओ रोज एक नया बहाना बनाने वाले

      नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से तिसरी ग़ज़ल यू देखें के

अरे ओ रोज एक नया बहाना बनाने वाले

ऐसे वादे ही मत किया कर निभाने वाले


पहले मुझे तेरे बारे में खुशफहमी थी

ये तो अब खुला है तू भी सारे अंदाज है जमाने वाले


तुझे शिकायत है के मैने याद नही रखा तुझको

तो ऐसे काम ही क्यों करता है भुलाने वाले


मुझे तो तुझ पर पहले से यकिन था

आने का दिलाशा देकर लौटकर न आने वाले


तेरे बिना भी इस सफर को मुकम्मल करुंगा मै

सफर में तनहा आगे निकल जाने वाले

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ग़ज़ल , अपनी साख बचानी पड़ती है

      नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से दुसरी ग़ज़ल यू देखें के

अपनी साख बचानी पड़ती है

बुझती हूई आग जलानी पड़ती है


नाराजगी का दायरा चाहे जो कुछ भी हो

किसी से उम्रभर की दोस्ती हो जाए तो निभानी पड़ती है


बहुत किमती होने का यही खसारा है

हर किसी को अपनी किमत बतानी पड़ती है


बेवजह ताकत का मुजायरा मुनासिब नही तनहा

पर कभी मुखालफिनों को औकात दिखानी पड़ती है

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सोमवार, 31 अगस्त 2020

ग़ज़ल , कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है

       नमस्कार , आज मैं आपसे मेरी करीब डेढ़ साल पहले लिखी छ ग़ज़ले साझा करने जा रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी यह ग़ज़लें पसंद आएंगी इनमे से पहली ग़ज़ल यू देखें के

चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है

कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है


गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए

तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है


मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है

आफताब है के बस ठलता जा रहा है


रुह कि नजदीकियां बढ़ रहीं हैं दोस्ती का दायरा घट रहा है

जो एक रिश्ता है बदलता जा रहा है


हर तरह के गुनाह का जुर्म उन्हीं के नाम है

अजीब शक्स है सब कुछ सहता जा रहा है


तो जंग ऐसे जीता हूं आज मैं

मैं खामोश हुं और वो कहता जा रहा है


तनहा इस जमीन ने बादशाहों कों फना होते देखा है

वो देखो एक बुलबुला डूबने कि कोशिश में उवरता जा रहा है

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शनिवार, 29 अगस्त 2020

मुक्तक , ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा है

           नमस्कार , पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहें है कि कुछ टी वी चैनल आतंकवादीयों अलगाववादीयों और अपराधियों को पत्रकारिता के नाम पर अपना मंच प्रदान करते आए हैं और न शिर्फ मंच प्रदान करते हैं बल्कि बाकायदा उनका महिमामंडन भी करते है राष्ट की जन भावना के साथ खिलवाड़ करते आए हैं तथा अपराधियों के अपराथ को सामान्यीकृत करने का प्रयास करते आए हैं और इसका हालिया उदाहरण सुसांत सिंह राजपुत के केस में देखने को मिला जब एक तथाकथीत बडे़ चैनल ने इस केस कि मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पुछे और मुख्य आरोपी को पुरा समय दिया जिससे वह पिडी़त पर ही संगीन आरोप लगा सके और उसका चरित्र हनन कर सके और न सिर्फ पिडी़त बल्की उसके पुरे परीवार पर आरोप लगा सके और उनका भी चरित्र हनन कर सके | यह बहुत दुर्भाग्यपुर्ण बात है |

      इसलिए अब समय आ गया है कि इन टी बी चैनलों का पुर्णतय बहिस्कार करके इन्हे सत्य से और राष्ट की जन भावना से अवगत कराया जाए | इसी ख्याल पर मैने एक मुक्तक लिखा है 

हर सबूत को हर सत्य को तोड़ मरोड़ करने पर आमादा हैं 

वो पत्रकारिता के नाम पर कातिलों से गठजोड़ करने पर आमादा हैं

आतंकियों और कातिलों को मासूम बनाकर tv चैनलों पर दिखाने वाले

ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा हैं

     जिस तरह से घने अंधेरे को रोशनी की एक किरण हरा देती है उस तरह से टीवी पत्रकारिता में भी कुछ चैनल ऐसे है जो रोशनी की वही किरण हैं और अगले मुक्तक में मैने एक चैनल का नाम भी लिखा है यदि आप समझ जाएं तो कमेंट में लिखिएगा

बिना आग लगे कहीं से यू ही धूआं निकलता नही है

झुठ के तेल के बिना सच का चिराग जलता नही है

तुम सच कह रहे हो 'भारत' तुम पर भारत यकीन करता है

किसी के काला कहने से सुरज का सच बदलता नही है

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


बुधवार, 19 अगस्त 2020

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 18


     नमस्कार , पिछले दो तीन हप्तों के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख रख रहा हुं 

कोई तुझे अपना बच्चा कहता है

कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है

जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग

अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है


सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने

हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने

तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया

जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने


इन आंखों में अश्क यूही नही आता

जिसका इंतजार है वोही नही आता

चांद की जगह सुरज नही ले सकता

यहां किसी कि तरह कोई नही आता


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


शहीदों वाला इनका आगाज होना चाहिए

अंदाज इनका भगत आजाद होना चाहिए

भले गांधी रहें मन से सरदार रहें तन से

पर हर बच्चे के दिल में सुभाष होना चाहिए


अपने जमीन की हिफाजत भी नहीं की गई तुमसे

सच की ईमान की सियासत भी नहीं की गई तुमसे

दोस्त कहकर मौन रहकर बौने को राजा बना दिया

इसे निरंकुशता कहें या कायरता बगावत भी नहीं की गई तुमसे

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

  इन मुक्तकों लिते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


गुरुवार, 13 अगस्त 2020

डॉ राहत इंदौरी साहब , मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है

       नमस्कार , मुंतजिर हुं कि सितारों की जरा सी आंख लगे , चांद को छतपे बुला लुंगा इशारा करके | राहत इंदौरी का sab tv  पर वाह वाह क्या बात है के शो में सुना मेरा पहला यही वो शेर है जिसने मुझे उस दौर में राहत साहब का दिवाना बना दिया था और मेरी दिवानगी का आलम यह था कि जब मैं शो देखता था तो पेन और कॉपी लेकर बैठता था  राहत साहब को तभी से मैं लगातार पढ़ता सुनता और देखता आ रहा हुं और यदि मैं सच कहुं तो आज जिस तरह भी टूटी फुटी गजल या शेर कह पाता हुं तो उसमें राहत साहब का बडा़ योगदान है क्योंकी उन्हीं की शायरी को सुन सुन कर मुझे शायरी से मोहब्बत हो गयी


       राहत साहब के जाने का सबसे बडा़ नुकसान यह हुआ है कि अब आने वाली पीढि़यां हिंदी उर्दु शायरी के इस अजिम जादुगर शायर का लाइव नही सुन पाएंगी मगर मुझे यहा थोडा़ सुकून है कि कम से कम एक बार मैने राहत साहब को लाइव सुना है  मैं चाहता था कि जीवन में कम से कम एक बार उनसे मिलुं और उन्हें अपनी गजलें और शेर सुनाउं और उनसे कुछ दाद लूं मगर अब मेरा ये ख्वाब महज एक ख्वाब बनकर रह गया है इसलिए मैने शेर में भी कहा है कि मेरा तो निजी नुकसान हुआ है |


दुनिया के लिए एक शख्स हलाकान हुआ है

मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है


      अब जब राहत साहब हमारे बिच नही रहे तो उनकी तमाम ग़जलें तमाम शेर हमें उनके हमारे बीच होने का आभास कराते रहेंगें मेरी प्रभु श्री राम से प्रर्थना हैं कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें ओम शांति 🙏


     राहत साहब की शायरी को लेकर लोगों का अक्सर मिला जुला रुप रहा | जब से मैने उन्हें पढ़ना सुनना शुरु किया था तब से मैने यह महसुस किया की उनकी शायरी को लेकर अक्सर ही कुछ लोग नाराज तो कुछ लोग ताराज रहें | उनके कुछ शेरों को लेकर उनसे असहमत था और हमेशा मुझे यह लगता रहा कि राहत साहब ने ये क्यों लिखा और यही तो एक अच्छे पाठक की निशानि है अगर वह रचनाकार की तारिफ कर सकता है तो आलोचना भी कर सकता है | इसी को मन में रखकर मैने एक मुक्तक यू कहा है


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


      इन विचारों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

कविता , स्वागत नव युग

      नमस्कार , सर्व प्रथम आपको राम मंदिर शिलान्याश की हार्दिक शुभकामनाए | करीब 500 सालों के इंतजार तथा हजारों लोगों की बलिदानीयों के बाद राम भक्त हिन्दुओं के हिस्से यह पावन दिन आ पाया है और अभी सत्य की लडा़ई लम्बी है | नव युग का स्वागत करते हुए मेरी यह कविता 6 अगस्त की है जिसे मैं आपके दयार में रख रहा हुं


स्वागत नव युग 


स्वागत नव युग के प्रथम सुर्य

स्वागत नव युग के प्रथम प्रकाश

भव्य पुष्प कमल के उजास

हर जन मन हर्षित गर्वीत

जन जन को सुख आने का विश्वास

सत्य सनातन नभ में गुंजन

स्वागत नव युग के आकाश


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बुधवार, 5 अगस्त 2020

ग़ज़ल , मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे

     नमस्कार , आपको एवं सम्पुर्ण भारतवर्ष तथा दुनियाभर के सम्पुर्ण रामभक्तों को श्रीराम मंदिर भुमि पुजन की हार्दीक शुभकामनाएं | आज मैं इस पावन दिन को साकार बनाने में जितने भी लोगों ने संघर्ष किया है उन सभी लोगों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता हुं | साथ ही हमारे भारतवर्ष में प्रचलित प्रभु श्रीराम के लिए एक संबोधन कहें या शब्द को लेकर मुझे आपत्ति है,वह शब्द है 'इमाम-ए-हिंद' |

     'इमाम-ए-हिंद' शब्द के बारे में कहा जाता है की सबसे पहले इसका उपयोग शायर इकबाल ने किया था तभी से यह जनमानस में गाहे ब गाहे इस्तेमाल होता आ रहा है | इस्लाम मजहब में इमाम कौन होता है तथा इमाम का दर्जा क्या होता है आप जानते हैं यदि ना जानते हो तो आप Google पर सर्च करके जान सकते हैं | हमार प्रभु श्रीराम हमारे लिए या यू कहुं तो हिन्दूओ के लिए भगवान हैं और हमारे भगवान प्रभु श्रीराम को एक इंसान के बराबर कहे जाने पर राम भक्त होने के नाते मुझे घोर आपत्ति है | यही वजह है कि मुझे इस लफ्ज 'इमाम-ए-हिंद' से आपत्ति है क्योंकि मेरे लिए खुदा हैं राम मेरे | 

    इमाम-ए-हिंद' शब्द के प्रति अपनी इसी भावना को दृष्टीगत रखते हुए मैने एक ग़ज़ल लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं | आप इसके बारे में क्या सोचतें हैं और आपको यह ग़ज़ल कैसी रही अपने विचारों से अवगत कराइएगा |

उनके नाम कि कीर्तन में गुजरते हैं सुबहो साम मेरे
उनकी भक्ति करके पुरे हो जाते हैं चारों धाम मेरे

तुमने कह दिया बस इमाम-ए-हिंद उनको
मेरे लिए तो खुदा हैं राम मेरे

हम भी तुम्हारे अकिदे की इज्जत में साहब कहते हैं
और तुमने जानबूझकर बिगाडे़ हैं नाम मेरे

मेरे खुदा को इंसान के बराबर कह दिया तुमने
और कितना करोगे खुदा को बदनाम मेरे

ये हमदर्दी का दिखावा मत करो खबरों में
वर्ना आजतक तो बस बिगाडे़ हैं तुमने काम मेरे

अपने खुदा की ईवादत का ईवादतखाना बनाने के काबिल हैं हम
तनहा भक्त है राम का और हैं श्रीराम मेरे

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सोमवार, 3 अगस्त 2020

कविता , राखी अनमोल होती है

      नमस्कार , आपको रक्षाबंधन कि हार्दिक शुभकामनाएं | आज के इस पावन दिन पर मैने एक कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं 

राखी अनमोल होती है

रंग बिरंगे रेशम के धागे के उपर
चक्र , चिडि़या , फूल , कबुतर
कि डिजाइनों से सजी हुई
दुकानों पर बिकती हुई
कलाईयों पर बांधे जाने के लिए तैयार
इन स्नेह बंधनों का अस्तीत्व
केवल इतना बस नही है
ये तो दिलों को , मन से , जीवन से
जीवनभर के लिए बांध देती हैं
और इनका छुट जाना रिश्तों का
टुट जाना हो जाता है

यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
भाई होने , कहलाने का दर्जा दिलाता है
यही स्नेह बंधन है जो भाईयों को
हजारों मिल दूर से भी बहन भाई को
एक दिन एक साथ ले आता है
कभी तोहफे के बराबर या कम
मत समझ लेना इसको क्योंकि
राखी अनमोल होती है

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ग़ज़ल , ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है


   नमस्कार , हमारा भारत देश तीन ओर से समुंदरों से घिरा हुआ देश है यही वजह है कि हमारे देश के तटवर्ती इलाकों में जमकर बरसात होती साथ ही पहाडो़ पर होने वाली बारिश वहा से निकलने वाली नदियों में बाढ़ ला देती है , असम , बिहार और आस पास के इलाकों में आने वाली बाढ़ इसी का नतीजा है जिससे हर बार लाखों लोंग प्रभावित होते हैं एवं सैकडो़ लोग अपनी जान गवांते हैं

     यहां मेरा सवाल यह है कि जब हमारी प्रांतीय सरकारों को हर साल आने वाली इस मुशीबत का अंजादा है तो फिर हर साल की इस आफत को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नही उठाए जाते | इन्ही सवालों को ध्यान में रखकर 28 जुलाई 2020 को एक ग़ज़ल लिखी है | मेरी यह ग़ज़ल कैसी रही आप मुझे जरुर बताईएगा

किसी के लिए यादों का मौसम बेमिसाल लाती है
किसी के लिए ये बारिश जीवन का काल लाती है

तुम पुख्ता क्यों नही करते सुखी जमीन का इंतजाम
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है

ये मौतों का मंजर देखो और हुकुमतों से पुछो
ये सैलाब अपने साथ तबाही ही नही कई सवाल लाती है

इन आफतों का जिम्मेदार कौन जबाब कौन देगा
इस सवाल कि नजरअंदाजी ही बवाल लाती है

जिनके झोले मे वादे हैं बांटने के लिए
उनके लिए ये सैलाब मौंका मालामाल लाती है

तनहा यही तमाशा देख देख कर बडे़ हुए हैं हम
सियासत हर कमाल के उपर एक कमाल लाती है

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गाना , कि तेरे संग जीना है मुझको


   नमस्कार ,  27 फरवरी 2020 की सुबह मैने एक गाना लिखा था लेकिन तब मैं इसे यह सोचकर पोस्ट नही कर पाया की इस तरह के गाने आजकल के दौर में कौन पढे़गा पर जब मैने अपने ब्लाग पर ही देखा तो मेरी ऐसी कई रचनाएं पढी़ जा रही हैं तब मैं ने इसे प्रकाशित करने का मन बना लिया और आज इसे आपके हवाले कर रहा हुं

कि तेरे संग जीना है मुझको

सात सुर संगीत के
सात जन्मों का जीवन
सात दिनों में हर दिन
सात बचनों का बंधन
पावन प्रेम का मधुरस 
पीना है मुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

तुझे मुस्कुराता देखुं
तो जैसे सुरज चंदा लगे
तुझे पास आता देखुं
तो जैसे वक्त ठहरा लगे
तेरा रुठ जाना ऐसे
जैसे घाव गहरा लगे
तेरी मखमली छुअन से
हर जख्म सिना है मुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

दिलों कि मनमानी हुई
ये पुरी कहानी हुई
मैं समझने लगा हुं खुद को
राजा , जब से तू रानी हुई
कान्हा ही बस नही दिवाना
राधा भी दिवानी हुई
जिता है प्यार तेरा
सब से छीना है तुझको
कि तेरे संग जीना है मुझको
कि तेरे संग मरना है मुझको

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      इस गाने को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मुक्तक , जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग


        सुशांत सिंह राजपुत कि आत्महत्या की खबर जब मैने सुनी थी तो मैं काफी भावुक हो गया था और मैने अपने इंस्टाग्राम पर यह पोस्ट लिखी थी -

आप को मैं निजी तौर पर नही जानता था मगर टीवी पर आपको तब से जानता हुं जब आप पवित्र रिश्ता के मानव बने थे |
मुझे याद है कि #zeetv पर प्रसारीत होने वाला यह धारावाहीक हमारे जीवन का हिस्सा हो गया था हम सब कई घंटे बैठकर इस धारावाहीक का इंतजार करते थे और पवित्र रिश्ता खत्म होने के बाद भी आप हमारे लिए मानव ही रहे धोनी अन टोल्ड स्टोरी के बारे में भी हम बात करते हुए यही कहते थे की मानव धोनी बना है
आप के इस तरह से चले जाने का दुख हमारे लिए बहोत ही असहनीय है प्रभु श्री राम से मेरी करबद्ध प्रार्थना है की आपकी पुण्य आत्मा को अपने चरणों मे स्थान दें #sushantsinghrajput #rip 🙏

      जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे कई तथ्य और कल्पनाएं सामने आ रही हैं कुछ लोगों का मानना है सुशांत सिंह राजपुत ने आत्महत्या कि है जैसा की खबरों में बताया गया मगर कुछ प्रसंसकों का मानना है जिनमें मै भी हुं कि उनकी हत्या हुंई है बहरहाल जो भी सच हो वो सब के सामने आना चाहिए | वैसे सुशांत के केस की जांच मुंबई पुलिस कर रही है मगर सुशांत के बहुत प्रसंसकों की मांग है की इस केस की जांच CBI के द्वारा होनी चाहिए | हमे उम्मीद है कि सुशांत सिंह राजपुत को न्याय मिलेगा |

        बिते एक महीने मे मैने सुशांत को केन्द्र में रखकर दो मुक्तक लिखें है और इन मुक्तकों को मैने अपने विभिन्न सोशल मिडिया चैनलों पर पोस्ट भी किया है जिन्हे आप लोगों ने बहुत पसंद भी किया है पर आज मै इन्हें साहित्यमठ पर प्रकाशित कर रहा हुं , मुझे यकिन है की आप भी इन्हें सराहेंगे

कोई तुझे अपना बच्चा कहता है
कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है
जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग
अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है

इन आंखों में अश्क यूही नही आता
जिसका इंतजार है वोही नही आता
चांद की जगह सुरज नही ले सकता
यहां किसी कि तरह कोई नही आता

        मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

ग़ज़ल , और कुछ नही


    नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

वो तो अहले शहर का मेहमान है , और कुछ नही
हां थोडी़ बहोत जान पहचान है , और कुछ नही

मै तो बस खैरीयत पुछने चला गया था
वो एक बडा़ अच्छा इंसान है , और कुछ नही

जहां ईश्क मिजाज परिंदों का बसेरा नही होता
वो दिल बंजर है विरान है , और कुछ नही

भला ये क्या कह दिया आपने नही बिलकुल नही
दिल अभी मोहब्बत लफ्ज से अंजान है , और कुछ नही

अब कयामत तक तनहा वो न निकलेगा मेरे दिल से
वो मेरी जिश्म है जान है , और कुछ नही

      मेरी ये गज़ल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस गज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

गज़ल , छोड़ देता है


    नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

पहले मोहब्बत दिखाता है , छोड़ देता है
वो मुझे गले से लगाता है , छोड़ देता है

आखिर कब तक बर्दाश्त करें इन दूरीयों को
वो मुझे दीए कि तरह जलाता है , छोड़ देता है

इतनी मोहब्बत भी तो जीना हराम कर देती है
वो जलता हुआ चिराग बुझाता है , छोड़ देता है

गर तारीफ हो तो मुकम्मल हो अच्छी लगती है
वो तो आधी तस्वीर बनाता है , छोड़ देता है

भले बुलंदीयां नसीब हो बेहतर है जमीन पर रहना
वर्ना बवंडर तो हवा में उडा़ता है , छोड़ देता है

ये दुसरी ही मुलाकात है जरा बच के तनहा
सुना है ये शख्स रिश्ते बनाता है , छोड़ देता है

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गज़ल, आज तो तनहा बहुत खुश हुँ मैं


     नमस्कार , आज मै यहा अपनी 2019 की शुरुआती महीनों मे लिखी कुछ गजलें आपके साथ बांट रहा हुं मुझे यकिन ही नही पुरा विश्वास है कि आप को यह गजल अच्छी लगेगी

यही ना के फिर शाम होने वाली है
एक और गमगीन रात तेरे नाम होने वाली है

तुझे तो मोहब्बतों के ख्वाब आते होंगे
मेरी तो नींद तक हराम होने वाली है

आज फुर्सत से लिख रहा हुं तुझको
आज मेरी गजल तमाम होने वाली है

आज तो तनहा बहुत खुश हुं मैं
आज तनहाई बदनाम होने वाली है

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      इस गज़ल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 4 जुलाई 2020

मुक्तक , हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने


  नमस्कार , 15 जुन की रात भारत और चीन की सीमा पर जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) कहा जाता है कि गलवान घाटी में जिस तरह से चीनी सैनिकों ने कायरता पुर्वक हमारे भारतीय सैनिको पर धोखे से हमला किया वह बहोत ही निंदनीय है और हमारी भारतीय सेना के जवानों ने जिस बहादुरी से चीनी सैनिकों का सामना किया और विभिन्न मिडिया रिपोर्ट्स के आधार पर 50 के करीब चीनी सैनिक मार गिराए यह दिखाता है कि भारत की सेना कि बहादुरी का मुकाबला दुनियां की कोई भी सेना नही कर पाएगी | इस दोनों सेनाओं की झड़प में हमारी भारतीय सेना के एक अधिकारी सहीत 20 भारतीय जवान भी शहीद हुए हैं और पुरा देश उनकी वीरगती और सर्वोच्च बलिदान को नमन करता है |

        इस पुरे घटना क्रम पर मैने तीन मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं उम्मीद है आपको प्रसंद आएंगे

शहीदों के दम पर कायम हमारी आजादी है
भारत के दुश्मनों अब तय तुम्हारी बर्बादी है
मलाल ये के दुश्मन भी दो कौंडी़ के मिले हैं हमें
एक कि नस्ल जेहादी है दुसरे की धोखेबाजी है


कहते हैं रोने से शहीदों की शहादत का मान घटता है
मातृभूमि पर बलिदान होकर ही जीवन का मान बढ़ता है
जिसके घर का चिराग बुझा है अंधेरा तो वही जानेगा
बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर मां का कलेजा फटता है


सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने
हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने
तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया
जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 17


  नमस्कार , पिछले कुछ तिन चार हप्ते में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मैं आपके संज्ञान में लाना चाहुंगा यदि मेरे यह मुक्तक आपको पसंद आएं तो मुझे अपने कमेन्ट्स के माध्यम से जरुर अवगत कराए

बाकी है मेरी शान अपने बुजुर्गों पर
मेरी हरेक पहचान अपने बुजुर्गों पर
हजारों वर्ष जुम्ह सहकर भी पंथ नही बदला
ये है मुझे गुमान अपने बुजुर्गों पर


हिंन्द के हिंन्दुस्तानीयों के खातमें की हसरत क्यों
तुमको जय श्री राम के नाम से इतनी दहशत क्यों
अपने आलीशान घरों में कुत्ते पालने बालों
तुम लोगों को गाय से इतनी नफरत क्यों


ये तो है के बहोत कम लिखता हुं
मगर जितना भी लिखता हुं गम लिखता हुं
तनहा होने का ये असर हुआ है मुझ पर
कि अब मैं की जगह हम लिखता हुं


शहीदों के दम पर कायम हमारी आजादी है
भारत के दुश्मनों अब तय तुम्हारी बर्बादी है
मलाल ये के दुश्मन भी दो कौंडी़ के मिले हैं हमें
एक कि नस्ल जेहादी है दुसरे की धोखेबाजी है


कहते हैं रोने से शहीदों की शहादत का मान घटता है
मातृभूमि पर बलिदान होकर ही जीवन का मान बढ़ता है
जिसके घर का चिराग बुझा है अंधेरा तो वही जानेगा
बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर मां का कलेजा फटता है

    मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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शनिवार, 23 मई 2020

मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 16

      नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

धुतकारते क्यो हैं आने जाने वाले
क्या चाहते हैं ये जमाने वाले
वो दिल दुखाएं और हम रोए भी नही
क्या चाहते हैं ये चाहने वाले


बिगडी़ दोस्ती और खराब कर लेते हैं
आ पुराना हिसाब किताब कर लेते हैं
मेरे जयाति ताल्लुकात नही हैं उनसे
हां कहीं मिले तो अदबो आदाब कर लेले हैं


डर की सल्तनत को सरकार नही मानेगा
किसी गैर का अपनी रुह पर अधिकार नही मानेगा
हमारे हौसले के जद में आती है पुरी दुनियां
हिन्दूस्तान कोरोना से हार नही मानेगा


उसकी खुशीयां अंजाने के साथ भग गई
घर कि इज्जत जमाने के साथ भग गई
खबर छपी थी कल के अखबार में
फलाने कि बीबी फलाने के साथ भग गई


वाक्ये गिनने पे आया तो पैंतिश छत्तीश निकले
जिन्हे खुदा समझता था मै वो इबलीश निकले
कितनी गलतफहमीयां होती हैं हसीनाओं को लेकर
उनके एक दो आशिक नही पुरे इक्कीश निकले

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मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 15

       नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

ये आधा गिलास अॉशु है जिसे शराब कहती है ये दुनियां
हम लोग हि तो सच कहते है हम्हीं को खराब कहती है ये दुनियां
सब कहते हैं जहा पड़ता है सब जलाकर राख कर देता है
यानि के मोहब्बत को तेजाब कहती है ये दुनियां


सपनों कि हिफाजत नही करता मै
यानि कि मोहब्बत में सियासत नही करता मै
मै जानता हुं तेरे विचार मु्क्तलिफ हैं मुझसे
मगर तेरी खिलाफत नही करता मै


पार्टी मालिक के दरबार में हमाली मत करो इमरान
झुठ बोलकर दुआओ से हाथ खाली मत करो इमरान
तुम्हारी हकिकत क्या है जान ही गया है पुरा भारत
बस यही मसवरा है इमान कि दलाली मत करो इमरान


जवानी पर लगी कालिख बन के रह जाओगे
मासुका नही मिली तो नाबालिग बन के रह जाओगे
ऐ खुदा तुझे मालिक कहती है ये दुनियां
इसी गुमा में रहे तो मालिक बन के रह जाओगे


दिल कि दूरीयें में तरक्की चाहता हुं मैं
दुश्मनी भी पक्की चाहता हुं मैं
थोडा़ और थोडा़ और नफरत कर मुझसे
बेवफाई मी सच्ची चाहता हुं मैं

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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शनिवार, 2 मई 2020

पहला प्यार

पहला प्यार

निरंतर कोशिशों के पश्चात भी
नहीं दे सके प्यार पहले प्यार की परिभाषा...
श्यामल सांझ के पन्नों में
शांत मन से लिखे कुछ शब्द
पहले पहले प्यार के अहसास से
पर यह क्या?????
शब्दों के साथ पन्ने भी कम पड़ गए...
कभी कभी लगता है
हम कितने अभागे हैं
पहले प्यार के विलक्षण एहसास को
समझ नहीं पाते हैं....
फिर लगता है
कितने भाग्यशाली हैं
समूची कायनात से
जिंदगी के हर पड़ाव पर
प्यार का एहसास होता है....
शिशु के रुदन के के साथ
एक मां के पहले प्यार का एहसास...
मेरे पहले प्यार का नाम
मेरे सर्वस्व की पहचान
जिसने जगत में लाकर
दिया मुझे मान....
पिता की उंगली पकड़ जब चलना सीखा
वह भी प्यार का एहसास था...
भाई की कलाई में मेरी पहली राखी
पहले प्यार के रूप में मेरे पास था.…
हर जगह पर रहते हैं पहले प्यार के पहरे
चेहरे के अंदर दिखते हैं मुझे चेहरे...
पहले प्यार का शायद अंत नहीं होता
निकल आती है कोई ना कोई गुंजाइश
किसी का प्यार कभी आखरी नहीं होता...

दीपमाला पांडेय
12 जून 2019 को 9:56 pm

हरियाणवी कविता . एक छोरी बोले ताउ से

      नमस्कार , मै ने करीब एक वर्ष पहले एक हरियाणवी कविता लिखने का प्रथम प्रयास किया था , उस वक्त संकोच बस मैने इस कविता को आपसे साझा नही किया था पर आज आपके साथ साझा कर रहा हुं | मेरा यह प्रथम प्रयास कैसा रहा मुझे अपने विचारों से जरुर अवगत कराईएगा , आपके विचार मुझे और भी हरियाणवी कविताएं लिखने के लिए प्रेरणा स्वरुप होंगे |

एक छोरी बोले ताउ से

एक दिन
एक छोरी बोले अपने ताउ से
ताउ मने यो बता दे
मने पराया काहे कहबे से ?
मने बोझ काहे कहबे से ?
मै के तने बोझ लागुशु

सबेरे तारे से पहले जागु हूं
बाबडी़ से पानी लाउ हूं
आगन में झाडु लगाउ हूं
रोटी बनाउ हूं
बैलो ने चार खिलाउ हूं
तब फेर स्कुल जाउ हूं

छोरी के सबाल सुन
इधर-उधर देखन लागा
कुछ ना बोल पाया ताउ
मुंह छपाके भागन लागा

     मेरी ये हरियाणवी कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस हरियाणवी कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
 

रविवार, 29 मार्च 2020

कविता , करोना से हमको युद्ध लड़ना है

     नमस्कार , करोना वायरस कविड 19 चीन के वुहान प्रांत से फैला एक जानलेवा वायरस है जिससे अब तक दुनिया में 29 हजार के करीब मौतें हो चुकी हैं और 6 लाख से ज्यादा लोग इस बिमारी के चपेट में आ चुके हैं | चीन से फैला यह खतरनाक वायरस अब तक दुनियां भर के 203 से ज्यादा देशों में फैल चुका है |

     हमारे देश भारत में भी यह वायरस बहोत तेजी से फैल रहा है देश में अब तक कुल 1024 पॉजिटीव मरीज मिले हैं तथा इस वायरस से मरने वालों कि संख्या बढकर 27 हो गई है | इस वायरस के फैलाव को रोकने के लिए पुरे देश में 25 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया गया है जो कि करोना वायरस कोविड 19 के खिलाफ भारत कि लडा़ई का निर्णायक कदम साबित होकता है |

     करोना वायरस कोविड 19 से स्वयं का बचाव ही इसका सबसे बेहतर इलाज है मैं यहा जोर देकर यह बताना चाहुंगा के अब तक इस भयावह बिमारी का कोई इलाज नही ढुढा़ जा सका है | करोना वायरस कोविड 19 से बचाव के लिए आप डाक्टरों के द्वारा बताई जा रही कुछ आधारभुत सावधानियॉ जरुर रखें

1.किसी से मिलें तो हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते करें
2.बीना किसी ठोस वजय के घर से बाहर ना जाएं घर पर रहें यदि आवश्यकता बस बाहर जाना पड़ जाए तो मुंह पर मास्क लगाकर जाएं
3.अपने हाथों को बार बार चेहरें एवं आंखों पर ना लगाएं तथा अपनें हाथों को लगातार 20 सेकेंड तक साबुन से धोते रहें या सेनेटाइजर से सेनेटाइज करतें रहें
4.किसी अपरिचित व्यक्ति से 2 मिटर की दुरी बनाकर बात करें
5.सबसे महत्वपुर्ण सावधानी यह है कि बाहर ना जाएं घर पर ही रहें

    करोना वायरस कोविड 19 से संक्रमण का पता दो से 14 दिन में चलता है डॉक्टरों का कहना है कि इसके कुछ लक्षण निम्नलिखित हैं

1.सर्दी , सुखी खांसी , तेज बुखार आना
2.गले में तेज दर्द होना , सांस लेने में परेशानी होना
3.थकावट महसुस होना आदी

     यदि आपको इस तरह के लक्षण महसुस हो तो बिना देर किए डॉक्टर के पास जाएं और अपना चेकअप करवाएं | आप चाहें तो केन्द्र या राज्य सरकारों के द्वारा उपलब्ध करवाई गई हेल्पलाइन पर भी सम्पर्क कर सकते हैं |

     करोना वायरस कोविड 19 के खिलाफ हमारी लडा़ई के केन्द्र में रखकर मैंने एक कविता लिखी है जिसे मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं |

करोना से हमको युद्ध लड़ना है
तो घर में हि रहना है

बिना काम के बाहर न जाएं
जाएं भी तो मास्क लगाएं
बार बार सेनेटाइजर से साफ करें हाथों को
बार बार चेहरे पर हाथ बिल्कुल ना लगाएं
केवल सतर्कता ही एकमात्र उपचार है
हाथ जोड़कर मेरा सभी से
केवल इतना कहना है

करोना से हमको युद्ध लड़ना है
तो घर में हि रहना है

ये सभी सावधानियां अनिवार्य हैं
यही हमारा आधार हैं
इस खतरनाक बिमारी के खिलाफ
युद्ध लड़ने के लिए
अब भारत देश मेरा तैयार है
जन जागरुक्ता हि तो हथियार है
हमें इस अभियान में केवल इतना करना है
दृढ़ निश्चय करके विजयी हमको बनना है

करोना से हमको युद्ध लड़ना है
तो घर में हि रहना है

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गजल , आओ खुशियों कि मुहं दिखाई करते हैं

      नमस्कार , मैने कुछ दिनों पहले एक गजल लिखी थी जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे यकिन हे कि आपको ये अच्छी लगेगी

आओ खुशियों कि मुहं दिखाई करते हैं
गमों कि घर से बिदाई करते हैं

छुप छुप के इससे उससे क्या करना
आओ ना खुल के बेवफाई करते हैं

ये जुवानी जंग का क्या मतलब
मैदान में आओ हाथापाई करते हैं

गम नही चेहरे पर मुस्कान बेचना शुरु करो
किसी के जख्मों कि तुरपाई करते हैं

और तनहा गम जख्म मरहम खुशियां
अरे अब तो मोहब्बत कि जगहंसाई करते हैं

      मेरी ये गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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कविता , क्योकि इनको शिर्फ तुम जानते हो

     नमस्कार , 8 मार्च विश्व महिला दिवस पर मैने एक कविता अपने सोसल मिडिया एकाउंट्स पर पोस्ट कि थी जिसे आप लोगों ने बहोत सराहा था अब इसे मैं यहां लिखने कि हिम्मत कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको यह पसंद आएगी

क्योकि इनको शिर्फ तुम जानते हो

महिलाएं औरतें नारी स्त्री जनानीयां
जिस भी संबोधन से जानते हो इनको
सम्मान करो इनका
हो सके तो गुणगान करो इनका
बेटी बहू मां बहन
कि गाली मत दो
इनको इज्जत दो
शुक्रिया कहो मां को
तुम्हे बेटा कहने के लिए
शुक्रिया कहो बहन को
तुम्हे भाई कहने के लिए
शुक्रिया कहो बेटी को
तुम्हे पापा कहने के लिए
शुक्रिया कहो दादी नानी को
उनकी कहानीयों के लिए
शुक्रिया कहो चाचीयों मामीयों
और बुआओं मौसीयों को
उनसे कि हुई शैतानियों के लिए
शुक्रिया कहो सालियों भाभीयों को
उनसे कि हुई मनमानियों के लिए
सैकडो़ रिश्ते बनाए हैं इनसे
सैकडो़ रुप समाए हैं इनमें
इन्ही में दुर्गा सरस्वती हैं
और परीयां अप्सराए हैं इनमें
कह सको तो एक शुक्रिया कहो
अपनी धर्मपत्नी को
जिसने जीवनभर के लिए
अपना बनाया है तपमको
पिता कहलाने का शुख देकर
इतना जिम्मेदार बनाया है तुमको
आज एक शुक्रिया कहो इनको
तुम्हारे जीवन में इनके महत्व को
क्योकि इनको शिर्फ तुम जानते हो

     मेरी ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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भजन , राधा रंग लगाने दे , मोहे रंग लगाने दे

     नमस्कार , होली के पावन पर्व पर मैने एक नया भजन लिखा है जिसे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं |

आज होली है होली मनाने दे
राधा रंग लगाने दे , मोहे रंग लगाने दे

क्यो रुठी है मै ना जानु
मै तो तुझको अपना मानु
तेरे बुलाने बंसी बजाउं
देख ना तुझको कितना मानु
आज रोको ना , रंगसे तेरी चुनरी भीगाने दे
राधा रंग लगाने दे , मोहे रंग लगाने दे

नाक कि नथनी झाली खो गई
कल यमुना किनारे बाली खो गई
मईया डांटेगी कान्हा मुझको
गर नयी चुनरी काली हो गई
मरोड़ ना कलाई , छोड़ मोहे जाने दे
राधा रंग लगाने दे , मोहे रंग लगाने दे

आज होली है होली मनाने दे
राधा रंग लगाने दे , मोहे रंग लगाने दे

    मेरा ये भजन अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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शनिवार, 14 मार्च 2020

नज्म , आओ दिल्ली दिखाउं मैं तुमको

      नमस्कार , 24 और 25 फरवरी को जब अमेरिका के राष्टपति डोनाल्ड ट्रंप सह परिवार दो दिवसीय भारत दौरे पर आए थे तब उत्तरपुर्वी दिल्ली में हुए दंगों में अब तक 38 से ज्यादा लोगों के मौत कि खबर हैं और 200 से ज्यादा लोग घायल हैं जिसमें 60 से ज्यादा दिल्ली पुलिस के जवान है साथ हि दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल रतनलाल शहिद हुए हैं| | इस दंगे कि गंभीरता को इस बात से समझीए कि इसमें 70 से ज्यादा लोगों को बंदुक कि गोलीयां लगी हैं और आईबी के यूवा ऑफिसर अंकित शर्मा को दंगाई भीडं ने उनके घर से खिचकर लेजाकर आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के घर मे लेजाकर मार डाला और उनकी लाश को नालें में फेंक दिया | मैने जब अंकित कि मां को चिख चिख कर रो कर सारी घटना मिडिया को बताते हूए बेब न्युज मिडिया पर सुना तो वह रोती बिलकती हुई आंशुओ से भरी हुई आंखे मेरे दिल में घर कर गई तब मैने एक नज्म कहने कि कोशिश की है कि

आओ दिल्ली दिखाउं मैं तुमको

खून के छींटे दिखाउं मैं तुमको
लाशों की गिनती बताऊं मैं तुमको
जिनके बेटे कत्ल किए गए हैं
उन मांओ कि चीखें सुनाउं मै तुमको
आओ हकिकत बताउं मै तुमको
आओ दिल्ली दिखाउं मै तुमको

नफरत कि आग लगाई गई थी
भीडं एक धर्म के खिलाफ भडंकाई गई थी
घरों से खिंचकर बेटों कि जान लेली गई है
चुन चुन कर मंदिर जलाई गई थी
मांए रो रो कर बेसुध हुई हैं
अब कितने आंशु दिखाउं मै तुमको

सारा शहर पत्थरों से भर गया है
डर तो जहन में घर कर गया है
वो मां खुद को संभालेगी कैसे
जिसका बेटा कल मर गया है
ऐसी कितनी दास्तानें हैं
बोलो कितनी सुनाउं मैं तुमको

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नज्म , मेरी जाने तमन्ना

       नमस्कार , मैने एक नयी नज्म लिखने कि कोशिश कि है मुझे यकिन है कि आप इससे जुड़ पाएंगे

मेरी जाने तमन्ना

मेरी जाने तमन्ना
तजमहल जैसी कोई ख्वाईश मत रख मुझसे
क्योंकि , मै इसे पुरा नही कर पाउंगा
ये मै भी जानता हुं , तु भी

हॉ तुम चाहो तो एक घर बना सकता हुं
तुम्हारे लिए जिसमें
मोहब्बत कि बुनियाद होगी
यकिन कि मजबुत ईटें लगाकर
वादों का सिमेंट लगाकर
चार दीवारी बनाएंगे खुशियों कि
और छत बन जाएंगी सारी उम्मीदें
घर को सुनहरे मुश्तकबिल के सपनों से सजा कर

चिरागों को दहलीज पर रोशन करके
नए जीवन का आगाज करें
और अपनी मोहब्बत को मुकम्मल कर दें
जो पाकिजा मोहब्बत
अक्सर नसीब नही होती महलवालों को भी
मेरी जाने तमन्ना

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गजल , सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

सागर सी गहरी रेगिस्तान सी पथरीली आंखें
चॉकु छूरी खंजर सी नुकीली आंखें

कोई कैसे बचे इनके तिलस्म से
कत्थई काली निली आंखें

कैसे पढू मै इनकी लिखाबट को
कभी गुस्सा कभी अॉशु कभी सर्मिली आंखें

देखते ही ईश्क का शुरुर होगया
मैने पहले नही देखी थी वो चमकिली आंखें

देखोगे तो तुम्हे भी मर्ज-ए-मोहब्बत हो जाएगी
कभी देखना मत वो फूलों सी रंगिली आंखें

गर तनहा मरा मोहब्बत में तो ईल्जाम उस पन
मार डालेंगी मुझको तेरी ये जहरिली आंखें

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गीत , दो हंसो का जोडा़ हम

     नमस्कार , मैने आज एक नयी गीत लिखी है जिसे मै आपके आंगन में रखना चाहुंगा मुझे आशा है कि मेरी यह गीत आपके मन को भाएगी

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

ईकाई मै ईकाई तुम
दोनो मिलकर दहाई हम
हम लिलें तो शब्द बने
जैसे कागज स्याही हम
हवा बसंती मस्त बयार
तो झूलों का हिलोडा़ हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

राधा कृष्ण सी निर्मलता हम में
प्रेम कि उज्वलता हम में
सिताराम ह्रदय विराजे
चांद कि सितलता हम में
हम्हीं हैं दिन रात और
साम और सवेरा हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

अपना और पराया हम से
धन दौलत कि माया हम से
गुलाब कि खुशबु हम हैं
पिपल कि छाया हम से
जितना आधा धरती अंबर
उतना हि अधुरा हम

दो हंसो का जोडा़ हम
आधा आधा पुरा हम

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भजन , जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

       नमस्कार , आपको शिव उपासना के सबसे बडे़ पुर्व महाशिवरात्री कि आपको हार्दीक शुभकामनाए | महाशिवरात्री के पावन पर्व पर मैने एक नया भजन लिखा है जिसे मै आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हुं इस विश्वास के साथ कि यह आपको प्रसंद आएगा |

बस नाम लेले हि कष्ट सारे कट जाएं
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

बाबा देवो के देव
बाबा भुतों के स्वामी
बाबा कालों के काल
मां गौरा के स्वामी

भक्ति से पुकारो तो बिगडे. काम बन जाएं
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

हाथ में त्रिशुल माथे पे चंदा
गले में शोभे शेसनागजी का फंदा
निलकंठ भुतनाथ त्रीनेत्रधारी
डमरु बजाएं जटा में मां गंगा

आओ सब मिलकर शिव गुण गाए
जपो नम: शिवाय , बोलो नम: शिवाय

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कुछ मुक्तक

     नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

दुनियॉ लगी है बस पैमाने बनाने में
मै लगा हुं हथेलियों के दस्ताने बनाने में
एक स्कुल बनाने में जिन्दगी गुजर जाती है
एक माह भी नही लगते मयखाने बनाने में


मेरा दिल है भारत मेरा वतन मासाअल्लाह
मेरी जान इस पर कुर्वान मेरे चमन मासाअल्लाह
झुठ बोलकर यार मेरे हमवतनों को गुमराह न कर
तु तो माहिर है इसी में तेरा फन मासाअल्लाह


कभी सोचता हुं कि इतना चाहुं इतना चाहुं उसे
मगर और कितना चाहुं कितना चाहुं उसे
ये कैसी तिशनगी है कि समंदर पिकर भी नही मानती
प्यास बढती जाती है जितना चाहुं जितना चाहुं उसे


दुनियां ने मोहब्बत का दायरा लिख दिया
मैं उसका शायर और उसे शायरा लिख दिया
जितने में उसका आशिक एक शेर नही कह पया
उतनी देर में मैंने उस पर मुशायरा लिख दिया


तमाम पेंडो़ से परिंदे जुदा होगए यार
वो हंसते हुए मंजर कहां होगए यार
एक दौर में यहा महफिले सजा करती थी यारों कि
अब वो सारे दिन हवा होगए यार


वो मंजर कहां देखा था कहां देखा था मैने
मुझे याद नही खंजर कहां देखा था मैने
निकल रहे थे उसके आंख से इतने अॉशु
अब याद आया मुझे समंदर कहां देखा था मैने


शायर है झुठी गुफ्तगु भी खुशुशि कर रहा है
मुल्क को चाहनेवालों सच बोलों जरुरी कर रहा है
मेरे दोस्तों अब बारी आई है दोस्ती निभाले कि
क्योकि दुस्मन अपना काम बखुबी कर रहा है

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कविता , हमें सरदार ने सिखाया था

    नमस्कार , मैने एक कविता लिखी है भारत के प्रथम गृहमंत्री और तेजस्वी नेता लौह पुरुष सरदार पटेल को समर्पित करते हुए

हमें सरदार ने सिखाया था

कण कण जोड़कर एक घर बनाना
घर को सुनहरे सपनों से सजाना
सपनों को अपने दुश्मनों से बचाना
हमें सरदार ने सिखाया था

गली-गली गांव-गांव पग-पग अनेकता
भाषा , बोली , रंग , पंथ , भाव की विभिन्नता
विभिन्नता में एक स्वर में एकता
हमें सरदार ने सिखाया था

नफरतों की साजिशों की हुई पराजय
लोकतंत्र के भावना की हो गई विजय
लाख दुश्मन हो मगर भारत रहेगा अजय
हमें सरदार ने सिखाया था

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गजल , ये तो गलतफहमी है कि मेरा दिल टूटा है

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ये तो गलतफहमी है कि मेरा दिल टूटा है
दिल नहीं टूटा बस एक भरम टूटा है

जिस ने दी है ये खबर बेबुनियाद है
जिसने तुमको बताया है बहोत झुठा है

बस इसीलिए नही खाते भाई भाई एक थाली में
ये जो खाना है उसका जुठा है

कौन लाएगा तवस्सुम मेरे चेहरे पर
जो मेरा खुदा है वही मुझसे रुठा है

ये कैसा रोना है के आंख नम ही नही होती
फेसबुक पर रोने का ये नया तरीका है

तुम जो समझते हो तनहा वो गम नही है मुझको
गम तो ये है के एक अच्छा यार छुटा है 

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गजल , हम तुम्हारे हमराज हैं जाना

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

तुमसे मेरे राज हैं जाना
हम तुम्हारे हमराज हैं जाना

कल हम्हीं होंगे मोहब्बत निभाने के लिए
तुम्हारे सारे आशिक बस आज हैं जाना

हरदम जो सदाएं तुम सुनते हो
वो मेरे दिल के साज हैं जाना

मोहब्बत के सिवा दुनियां में कुछ भी नही
नफरत बस अल्फाज है जाना

तुम्हारा मिलना खुशनसीबी मेरी है
ये खुशियॉ तो बस आगाज हैं जाना

मोहब्बत तुम्हे है ये सब को खबर है
खामोशी भी आवाज है जाना

जब कहता है सिधे मुंह पर सच कहता है
ये तनहा का अंदाज है जाना

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हास्य व्यंग कविता , Whatsapp वाला सब देखता है

  नमस्कार , मैने एक नयी हास्य व्यंग कविता कहने कि कोशिश कि है

Whatsapp वाला सब देखता है

ऊपरवाला देखता हो चाहे ना देखता हो
Whatsapp वाला सब देखता है

कौन किसका मैसेज कॉपी कहता है
कौन किसकी तरफ से डबल टिक मरता है
एक ही मैसेज को कौन बार-बार फॉरवर्ड करता
सुबह सुबह उठकर कौन ज्ञान बघारता है
कौन किसके dp की नकल उठाता है

ऊपरवाला देखता हो चाहे ना देखता हो
Whatsapp वाला सब देखता है

कौन अपने स्टेटस में चालिस पचास फोटोस डालता है
कौन-कौन सारे ग्रुप में जाकर चुटकुले खंगालता है
कौन-कौन वीडियो कॉल मे पाउट करता है
कौन लास्ट सीन देखकर अपनी गर्लफ्रेंड पर डाउट करता है

ऊपरवाला देखता हो चाहे ना देखता हो
Whatsapp वाला सब देखता है

     मेरी ये हास्य व्यंग कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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हास्य व्यंग कविता , आपके केजरीवाल की दिल्ली

     नमस्कार , मैने एक नयी हास्य व्यंग कविता कहने कि कोशिश कि है

फ्री के मायाजाल कि दिल्ली
आपके केजरीवाल की दिल्ली

हवा हवाई काम हुआ है
देश में अच्छा नाम हुआ है
जनता पी रही है गंदा पानी
खुलकर सांस लेना भी हराम हुआ है

बिगड़े हुए सुर ताल की दिल्ली
आपके केजरीवाल की दिल्ली

पर्दे के पीछे खेल हुए हैं
बच्चे पहले से ज्यादा फेल हुए हैं
झोपड़ी अब भी झोपड़ी है
मगर फैसले  रेलम रेल हुए हैं

राजनीति के शतरंजी चाल कि दिल्ली
आपके केजरीवाल की दिल्ली

      मेरी ये हास्य व्यंग कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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गजल , उसका रुठना और मेरा मनाना लाजमी था

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

उसका रुठना और मेरा मनाना लाजमी था
उसका दूर और मेरा पास जाना लाजमी था

पाहली मोहब्बत का पहला मौका-ए-वस्ल
उसका शर्माना और हाथ छुडा़ना लाजमी था

तमाम दुनियां कि फिक्र और जमाने का डर
उसका मुस्कुराना और घबराना लाजमी था

तनहा दिल की दशा ही कुछ ऐसी थी
उसका गाना और गुनगुनाना लाजमी था

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नज्म , हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले हमारे देश में खबरों और सीएए एनआरसी के विरोध प्रदर्षनों में पाकिस्तानी शायर फैज अहमद फैज कि एक नज्म का जिक्र बारहा हो रहा था और मुझे निजी रुप से यह लगजा है कि इस नज्म कि मुल भावनाओ का सार बदलकर यहा भारत में एक मजहबी उन्माद फैलाने कि कोशिश कि जा रही थी तो मैने इसी को देखते हुए एक नज्म कही थी | नज्म यू है कि

हम मोहब्बत करके दिखाएंगे

हम दिखाएंगे
हम मोहब्बत करके दिखाएंगे
एक दिन वो भी आएगा जब हम जीत जाएंगे
नफरत के सारे बादशाह मिट्टी में मिल जाएंगे

चाहे जितनी स्याह रात हो
तिरगी हो चाहे जितनी घनी
हम जुगनू सच के फरिश्ते हैं
उजाला करके उड़ जाएंगे

ना कोई खौफ ना दहशत होगी
ना कोई नारा ना परचम होगी
सिर्फ अमन की सत्ता होगी
जो वादा किया है अपनों से
वो वादा भी निभाएंगे

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गजल , कलियों ने हवाओ से कह दिया

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

कलियों ने हवाओ से कह दिया
कनिजों ने बादशाहों से कह दिया

जाते जाते उसने तो कुछ नही कहा
मैने सब कुछ निगाहों से कह दिया

वो कहते रह गए बस नफरत करो
मैने मोहब्बत खुदाओं से कह दिया

दुनियां में कोई उसके जैसी है ही नही
यही सच मैने अप्सराओं से कह दिया

ये सब ने देखा तनहा ने कुछ कहा ही नही
मगर मैने सब कुछ भावनाओं से कह दिया

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कविता , ईकरार नामा

     नमस्कार , ईकरार नामा ये कविता मैने करीबन तिन साल पहले लिखी थी जब यवा मन ने किसी के प्रति कुछ इसी तरह कि भावनाए जागृत हुई थी हालाकि यह कविता तब मै किसी को न सुना पाया और ना ही कहीं लिख पाया था क्यों कि तब मेरे पास इस तरह का कोई माध्यम नही था पर अब यह कविता आपके सामने है अच्छा है या बुरा यह मै आप पर छोड़ देता हुं

ईकरार नामा

मेरे प्रिय साथी
हमसफर , राही

          जाने कितने दिनों से
          मेरे दिल के कोने में
          दबी हुई भावनाएं
          मुझे तड़पाएं

          मैं चाहूं जब कहना
          ख्वाईसें बस तेरे संग रहना
          तब मन में अजीब सी
          कश्मकश कि लडी़यॉ
          मुझे उलझाएं , भटकाएं

          बेजुबां सा हो जाता हुं
          तुझे साथ पाकर
          लगता है जैसे जी लिया वर्षों
          चंद लम्हे बिताकर

          तेरा वो मूस्कुराना
          मुझे बहोत शुकुन देता है
          हमारा वो बात-बात पर लड़ना
          रुठना और मनाना
          चाहतें और बढा़ देता है

          तुम्हे ना देखुं एक पल भी
          तो बेचैन सा हो जाता हुं
          तु नही जानती मैं कैसे
          बिन तेरे रात बिताता हुं
          तेरी यादों के सपनों को
          अपने संग जगाता हुं

          मेरी जिन्दगी तुम हो
          मेरी आशिकी तुम हो
          तेरे बिन मैं तनहा हुं
          शांत होकर मेरी धड़कन सुनना
          ये तुमसे कुछ कहती हैं
          मैं तुमसे प्यार करता हुं
          खत मे यही लिखता हुं
          बस यहीं तक लिखता हुं

तुम्हारे प्यार का प्यासा
दीवाना , हमदर्द तुम्हारा

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कविता , चलो पतंगें उडा़ते हैं

    नमस्कार , मकर संक्राती के पावन पर्व पर हमारे देश में शहर शहर गांव-गांव बच्चों एवं बडो़ के द्वारा पतंगें उडा़यी जाती हैं इसी मौको पर अपने बचपन कि यादों को समेटकर मैने एक कविता लिखी हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं

चलो पतंगें उडा़ते हैं
कागज कि नाव रेत के टिले बनाते हैं

फिर कहीं क्रिकेट खेलते हैं
फिर कहीं कंचे खेलते हैं
फिर कहीं पेड़ों से परिंदे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

कहीं आम के पत्ते मुर्झाते हैं
कहीं बेरियों के कांटे पॉव में चुभ जाते हैं
अलहड़ बचपन में धूल में खेलते हुए
नई नई तरंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

एक बार और अमरुद के पेड़ों पर चढ़ जाते हैं
एक बार और गुल्ली डंडा खेलते हुए लड़ जाते हैं
इस बार फिर से छुट्टियों में उमंगे उड़ाते हैं
चलो पतंगें उडा़ते हैं

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गजल , ये पप्पु क्या सोचेगा वो लल्ला क्या सोचेगा

    नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ये पप्पु क्या सोचेगा वो लल्ला क्या सोचेगा
पान कि दुकान पर बैठा निठल्ला क्या सोचेगा

जिसका नाम लेकर खुन बहा रहे हो अपनों का
जरा शर्म करो मेरे भाई वो अल्ला क्या सोचेगा

न बवाल करो न हंगामा करो न तमाशा करो
तुम इतना चिल्लाओगे तो हल्ला क्या सोचेगा

हर मसले का हल निकलेगा गर अमन से सोचो तो
तनहा घर में झगडा़ होगा पडो़शी झल्ला क्या सोचेगा

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गजल, गिरगिट की तरह रूप बदलता कौन है तुम जानते हो

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

गिरगिट की तरह रूप बदलता कौन है तुम जानते हो
सच कहने से डरता कौन है तुम जानते हो

विधायक जी का शौक है पांच सितारा होटलों में जाम छलकाना
यहां भूख से मरता कौन है तुम जानते हो

तितलियों को आदत है फूल बदलते रहने की
एक डाल पर ठहरता कौन है तुम जानते हो

सांसद निवास में मखमली राजाओं की कोई कमी थोड़ी है
इधर ठंड में ठिठुरकर मरता कौन है तुम जानते हो

तन्हा मैंने भी बहुत सुनी है परियों की कहानियां
मगर असल में आसमान से उतरता कौन है तुम जानते हो

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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

गजल ; पत्थर भी तैर जाता है पानी पर

     नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

ग्रहण लगा है कहानी पर
किरदार बाकी है निशानी पर

दिल में कोई नेकनीयत रख कर तो देखो
पत्थर भी तैर जाता है पानी पर

बुजदिल ही सारी उम्र का हासिल हो तो क्या है
हो मुल्क पर कुर्बान फक्र है ऐसी जवानी पर

कहीं ना कहीं तो परियां होती होंगी
मुझे यकीन है अपनी नानी पर

दुनिया लोहा सोना पत्थर कि कारोबारी है
मैं रुका हूं तो बस फूलों की बागवानी पर

दिल देकर जो एहसान जताता रहे
लानत है ऐसी मेहरबानी पर

सरकारी दफ्तर में जायज कोशिश कर चुका हूं मैं
अब यकीन बाकी है तो बस चाय पानी पर

हस्त्र इमानदारों का देख देख कर तन्हा
दुनिया तुली हुई है बेईमानी पर

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गजल ; मय पी रहा हूं मुझे मरने की जल्दी है और क्या है

      नमस्कार , मैने एक नयी गजल कहने कि कोशिश कि है गजल का मतला और कुछ शेर यू देखें कि

मय पी रहा हूं मुझे मरने की जल्दी है और क्या है
ये सब तेरे आंखों की गलती है और क्या है

जिसे चांद चंद्रमा चंदा मेहताब कहती है ये दुनिया
हर रात वही छत पर निकलती है और क्या है

ये जो मौसम कभी हरा बसंती गुलाबी होता है
रंगबिरंगी वही ओढनियां बदलती है और क्या है

जब से ओढ़ ली है धरती ने हरे रंग की ओढ़नी
तभी से आसमान की ख्वाहिशें मचलती हैं और क्या है

वो के हवाले से उसकी सारी बात कह देते हैं महफिल में
ये तो शायरों की जुबान फिसलती है और क्या है

वो क्या है जिसका इस्तेमाल खाने में नहाने में लगाने में होता है
तन्हा इसका जवाब हल्दी है और क्या है

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सोमवार, 6 जनवरी 2020

मुक्तक , char char lineno me bate karunga aapse

      नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

दिल मानने को तैयार नही है
इसे दिमाग पर ऐतबार नही है
मैने एकतरफा मोहब्बत कि थी उससे
वो मेरी गुनहगार नही है


जहर को निवाला निवाला कह रहे हैं
बाल झड़ने को पांव का छाला कह रहे हैं
जिनके दामन पर हजारों दाग धब्बे हैं
वो दिल्ली में चिल्लाकर दूध को काला कह रहे हैं


ये तो नासमझी है मक्कारी है फरेबी है
सही और गलत बयानी में अंतर करीबी है
आज देश में कुत्ते पालने का मतलब अमीरी हो गई
और गाय पालने का मतलब गरीबी है


ठंड दे रही है सबको कितनी बेदना
सियासत में नही बची है कोई संवेदना
राहुल कि रजाई खिंचकर मोदी ने ये कहा
GST भरो पहले फिर रजाई ओढना


आओ अपने रहनुमाओ का सत्कार करते हैं
इन्हे फिर से दिखा दो कि कितना प्यार करते हैं
दो चार मौतें रोज होती हैं गहलोत ने कहा
हम इनकी सियासत को नमस्कार करते हैं

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शेरो शायरी . kuch ruh ki suna du

     नमस्कार , एक बार फिर से हाजिर हुं मै अपने लिखे कुछ नए शेर लेकर और मुझे बहोत विश्वास है कि ये सारे शेर आपको पसंद आएंगे | कुछ शेर यू कहे है के

तेरे नाम सारी जिंदगी लिख रहा हूं
फक्र है मुझे मैं हिंदी लिख रहा हूं

मै अपना दुखड़ा सुनाउ किसको
चौतरफा घेर कर मार रही है जिंदगी मुझको

शख्सियत से नाग हैं सीरत से नागफनी
ये कैसे लोगों को फरिश्ता बना रखा है तुमने

मैं नहीं कह रहा तुंहें मेरी जान का दुश्मन
मगर मेरे भाई मेरे दुश्मन जान को अपना दुश्मन तो कहो

जब भी जहां भी तन्हा लिखोगे पढ़ोगे सुनोगे बोलोगे
एक शायर तुम्हें बहुत याद आएगा

अब करने लगी है वो भी मेरे मैसेज का रिप्लाई
आज मै उसकी नफरत में सेंध लगा के आया हुं

बच्चों को बेवजह ही मासुम नही कहते
वरना जवानी में कौन चॉकलेट के लिए रोता है

अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाना मिजाज ए राणाई है
केबल ताकत के जोर पर सब हासिल कर लेना ये सोच काबिलाई है

तुम जब भी जहा भी तनहा सुनोगे पढोगे लिखोगे बोलोगे
एक शायर तुम्हे बहोत याद आएगा

ये नही है के बहोत बडा अजुबा हुआ है मेरे साथ
मगर दिल टूटने से कुछ ज्यादा हुआ है मेरे साथ

साम गहरी होगी तो दिल के सारे गम जगमगाएंगे
भवरों को कह दो चुप रहों अब हम गीत गाएंगे

मै मंदिर कि चौखट पर रखा हुआ दीया
मुझसे घर में रोशनी भी कि जा सकती है घर जलाया भी जा सकता है

गुनाह करके सबुत मिटाने का कोई एक ही तरिका थोडी है
फरियादी को डराया धमकाया भी जा सकता है जिंदा जलाया भी जा सकता है

कलम कि किमत पर बाजार कि जरुरते लिखुं
तनहा मै भी मशहुर हो जाउं क्या

कैसे गुजर रहा है मेरा दिन लिखुंगा कभी बाद में
आधी रात को दिवानों को क्या दिखता है चांद में

      मेरी ये शेरो शायरी अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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