गुरुवार, 31 मई 2018

दादरा , सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

      नमस्कार , दादरा भी ठुमरी की तरह ही भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायी जाने वाली एक शैली है | दादरा भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायकों द्वारा गाई जाती है | आमतौर पर ठुमरी की तरह ही दादरा भी छोटे बंदों में निहित होती है | दादरा विभिन्न प्रकार के रागो में गाई जाती है | अगर अन्य शब्दों में कहा जाए तो मेरे अनुसार ठुमरी की तरह ही दादरा भी एक लोकगीत है |

     एक से दो सप्ताह पहले भर मैंने एक दादरा लिखने का प्रयास किया था | उस प्रयास को मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं , आपके प्यार की उम्मीद कररहा हूं -

दादरा , सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए
परदेस में जाकर परदेसी कहाई गए

चार बरस हुए लौट के न आए
केतनी बार हम खबर भिजवाए
कउने कलमूही के फेरा में आई गए
सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सात फेरों के सात वचन
जन्म जन्म का यह बंधन
सारा रिश्ता नाता तोड़ाई गया
सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए

सईयां मेरे मोरी याद भुलाई गए
परदेस में जाकर परदेसी कहाई गए

      मेरा ये दादरा आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

ठुमरी , अंखियों के तीर चलाओ ना सईया

      नमस्कार , ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायी जाने वाली एक शैली है | ठुमरी भारतीय शास्त्रीय संगीत के गायकों द्वारा गाई जाती है | आमतौर पर ठुमरी छोटे बंदों में निहित होती है | ठुमरी अमूमन राग भैरवी , तीली आदि रागों में गाई जाती है | अगर अन्य शब्दों में कहा जाए तो मेरे अनुसार ठुमरी एक लोकगीत है |

आज से तकरीबन एक सप्ताह पहले भर मैंने भी एक ठुमरी लिखने का प्रयास किया था | उस प्रयास को मैं आपके सामने हाजिर कर रहा हूं , आपके शुभकामनाओं की उम्मीद करता हूं -

ठुमरी , अंखियों के तीर चलाओ ना सईया

अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां
हम बेरी - बेरी परत हैं तोहरी पईयां

मिलने आई चोरी - चोरी से
सईयां तोहरीे जोरा जोरी से
कलाई मुरूक गई , मर गई मईयां
अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां

फान के आई हूं मैं अटरिया
कोरी - कोरी मेरी चुनरिया
मेरी फट गई चुनरी , हाय रे दईयां
अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां

अंखियों के तीर चलाओ ना सईयां
हम बेरी बेरी परत हैं तोहरी पईयां

      मेरी ये ठुमरी आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

रविवार, 27 मई 2018

एक तितली

     नमस्कार ,  कभी किसी तितली को गौर से उड़ते हुए देखा है ? , बीती सुबह मैंने देखा था |  और उस तितली को जैसे-जैसे में उड़ते देखता रहा वैसे वैसे मेरे मन में एक छोटी सी कविता बन गई |  वह तितली तकरीबन तीन चार रंगों की थी और एक फूल के पौधे के आसपास मंडरा रही थी |

    कविता आपके समक्ष प्रस्तुत है | आपका आशीर्वाद चाहूंगा | कविता का शीर्षक है -

एक तितली'

एक तितली'

कल उड़ रही थी
फूलों पर इधर उधर
एक तितली

तीन चार रंगों के पंख थे उसके
कल जब मैं बैठा था बाग में
कभी डाली से पत्तों पर
एक बार तो मेरे बगल से निकली
एक तितली

कभी फूल के पौधे से आसमान की ओर
कभी आसमान की ओर से फूल के पौधे पर मंडराया
कभी बैठे कभी उठ जाए
एक बार तो ये लगा के लो
अब यह फिसली
एक तितली

आज रोज की तरह
मैं उसी बाग में हूं
लेकिन अभी तक नहीं दिखी
कोई अनहोनी तो नहीं हुई उसके साथ
बेचारी उड़ती थी ऐसे
जैसे दौड़ती हो बिजली
एक तितली

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

ग़ज़ल , तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

    नमस्कार ,  गजल हमेशा प्रेमिका के जुल्फों की या प्रेमिका के नखरे की बात नहीं करती | गजल कभी कभी आक्रोश का तेवर भी अपना लेती है | कई आक्रोश से भरी हुई गज़लों ने कई आंदोलनों को उनके परवान तक पहुंचाया है

     उसी तेवर की आक्रोश से भरी हुई आज मेरी एक ग़ज़ल देखें | यह ग़ज़ल मैंने 20 मई 2018 को लिखी थी | ग़ज़ल का मतला और शेर कुछ देखें के -

ग़ज़ल , तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

जुल्म की हद से गुजरना चाहता है
दीया गहरे तूफान में जलना चाहता है

कल एक परिंदे ने कहा था मुझसे
सुकून से जीना है उसे इसलिए मरना चाहता है

मुसलसल इस शहर में खौफ का मौसम है
एक सुकून का लम्हा यहां से गुजारना चाहता है

ये हालात है के खामोशी भी अब चिल्लाती है यहां
एक शख्स लोगों की जुबान पर ताले लगाना चाहता है

'तनहा' है के मिट जाने को तैयार ही नहीं
वो एक तूफान है के सब कुछ मिटाना चाहता है

      मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

गजल , वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

नमस्कार ,  गजलें हमेशा से ही मन की खुर्चनो को , गमों को , बेदारीयों को जाहिर करने का जरिया रही हैं | मेरी एक और नई ग़ज़ल का लुफ्त उठाने की कोशिश करें |

    इस ग़ज़ल की भूमिका में सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि यह ग़ज़ल एकदम से कुछ नया मिल जाने की कशमकश है | ग़ज़ल का मतलब और कुछ शेर देखें के -

गजल , वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

एक खंडहर सा वीरान था मैं
एक पूरे मोहल्ले से अनजान था मैं

एक कतरे ने पहचान लिया था कभी
एक ऐसा निशान था मैं

ये तो राजनीति ने बांट दिया मुझे
वरना एक पूरा हिंदुस्तान था मैं

इश्क ने पेचीदा बना दिया है मुझे
नहीं तो पहले आसान था मैं

सियासत की तल्खी ने कतरा कतरा काटा है मुझे
पहले तो एक सुंदर गुलिस्तान था मै

'तनहा' होकर खुशगवार हूं मैं
महफिल में था तो बेजान था मैं

      मेरी ये गजल आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

बच्चे खेलना भूल गए

    नमस्कार ,  मेरी यह कविता ' बच्चे खेलना भूल गए ' मैंने आज से तकरीबन चार-पांच दिन पहले  तब लिखा , जब मैंने एक तकरीबन दो-तीन साल के बच्चे को स्मार्टफोन चलाते हुए देखा | अगर आमतौर पर देखा जाए तो यह कोई हैरत की बात नहीं है  क्योंकि अब बड़े शहरों में यह सब  आम हो गया है कि बच्चे घर के बाहर खेल कम खेलते हैं और घर के अंदर मोबाइल पर खेल ज्यादा खेलते हैं | लेकिन आज से तकरीबन अगर बिस तिस साल पहले की बात सोचे तो उस समय के बच्चे को इन सब चीजों का नाम तक नहीं पता रहा होगा | और उस समय के बच्चे घर के बाहर खेला करते थे जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास होता था लेकिन आज के बच्चे केवल डिजिटली ही इंटेलिजेंट हो रहे हैं फिजिकली और मेंटली ग्रोथ उनकी रुक सी गई है और यह चीज उनकी पूरी जिंदगी भर के लिए नुकसान दे है |

      इन्हें कुछ ख्यालों के साथ में यह कविता आपके समक्ष रखता हूं आपके प्यार की  आशा है -

बच्चे खेलना भूल गए

बच्चे खेलना भूल गए

आम के पेड़ के नीचे
गोटिया , कितकित , टीवी , गिप्पी गेंद
खेलते खेलते गिरना पडना
और लड़ना झगड़ना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

किताबों का गोदाम है
जो बसते में भरा है
जो कुछ बस्ते में नहीं है
वह कंप्यूटर में धारा है
पढ़ाई के दबाव में
सावन का झूला झूलना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

कंचे और छुपन छुपाई
खो-खो और चोर सिपाही
मकर संक्रांति के त्योहारों में
कटी पतंगे लूटना भूल गए
बच्चे खेलना भूल गए

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मासूमियत खतरे में है

     नमस्कार ,  एक बड़ी पुरानी कहावत है कि ' बच्चे भगवान का रुप होते हैं ' और देखा जाए तो यह कहावत सही भी है | बचपन के दिन एक इंसान की जिंदगी के सबसे सुनहरे दिन होते हैं जो उसे दुनियादारी की सारी तकलीफों को जाने बिना सुकून से कुछ वर्ष गुजारने का मौका देता है | लेकिन आज हमारे समय में जमाने की दौड़ ने , कामयाबी पाने की कोशिश में मासूम बच्चों से वही सुनहरे दिन छीन लिए हैं | और उनके कंधों पर किताबों का बोझ डाल दिया है जोकी धीरे-धीरे उनके बचपन को निगलता जा रहा है और यही कमी उन्हें शारीरिक और मानसिक रुप से कमजोर बना रही है |

  ' मासूमियत खतरे में है ' मेरी इस कविता में मैंने उन्हीं पहलुओं को दर्शाया है जो आज की सच्चाई को उजागर करती है | मेरी यह कविता तकरीबन तीन चार दिन पुरानी है जिसे मैं इस ब्लॉग पर आपके साथ साझा कर रहा हूं | मुझे यकीन है आप भी मेरे विचारों से इत्तेफाक रखते होंगे -

मासूमियत खतरे में है

मासूमियत खतरे में है

किताबों के बोझ तले
बचपन अब कंप्यूटर में जल्दी
होमवर्क का दबाव में
जैसे साइकिल हो ढलाव में
जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना
मतलब पेड़ का समय से पहले फलना
एक नया नया चेहरा के अंधेरे में है
मासूमियत खतरे में है

      मेरी ये कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

बुधवार, 16 मई 2018

क़व्वाली , लोग मुझको दीवाना कहने लगे

    नमस्कार ,  कव्वाली उर्दू साहित्य कि वह विधा है जो गायन में गजल के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय है | कव्वाली अमीर खुसरो की विरासत है जो लगातार लोकप्रिय एवं विस्तृत होती चली जा रही है | उर्दू महफिलों की शान कव्वाली हजारों कव्वाली गायकों एवं शायरों के द्वारा लगातार सहेजी जा रही है | कव्वाली के पुरुष गायकों को कव्वाल एवं महिला गायकों को कव्वाली ही कहा जाता है |\

क़व्वाली , लोग मुझको दीवाना कहने लगे

     बीती सहर मैंने भी एक कव्वाली की रचना की है | जिसे मैं आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूं | मुझे यकीन है मेरी ये कव्वाली  पढ़कर आपको उतना ही लुत्फ आएगा जितना कव्वाली सुनकर आता है | कव्वाली पेश है -

लोग मुझको दीवाना कहने लगे

उसने गजब की चली चाल ये
लोग तरस खा रहे हैं मेरे हाल पे
शिकवा मुझे उससे कुछ भी नहीं पर
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

यह मोहब्बत है बस जहर की तरह
जब से हुई हम मरने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

इश्क की वादियां
क्या नजर आयेंगी
मेरे महबूब की
क्या खबर आएगी
मुश्किल है मेरा अब इंतजार करना
उन्हें देखने को हम तरसने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

एक दौर वो था
जब मोहब्बत थी हमको
एक दौर ये है
जब नफरत है हमको
मगर हाल ऐसा है मेरे दिल का यारो
उन पर गजल हम कहने लग
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

याद उनकी अब भी क्या गजब कर रही है
सारे अल्फाज मेरे महकने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

उस जन्म में मिलेंगे किसी मोड़ पर
उसने कहा था जब बिछड़ने लगे
लोग मुझको दीवाना कहने लगे

     मेरी ये क़व्वाली आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

नवगीत , तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

    नमस्कार ,  अच्छा उदाहरण एवम प्रतीकों का उपयोग हम कहां करते हैं ?  तो आप सोचेंगे कि यह कैसा बेतुका सवाल हुआ ,  तो मैं आपको बता दूं कि यह सवाल वाजिब है | क्योंकि आज मैं हिंदी साहित्य की जिस विधा के बारे में आपको बताने जा रहा हूं एवं अपनी रचना आपके साथ साझा कर रहा हूं उस विधा में विभिन्न प्रकार के प्रतीकों का उपयोग किया जाता है | नवगीत हिंदी साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें अलग-अलग प्रतीकों का उपयोग गीतकार अपनी गीत में करता है | यह प्रतीक कुछ इस तरह के होते हैं जैसे , अपनी प्रेमिका को चांद जितना सुंदर बताना ,  प्रेमिका के काले घने बालों को काले घने मेंघो के जैसा बताना आदि |

नवगीत , तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

    बीते दोपहर के करीब मैंने भी एक नवगीत की रचना की है | जिसे मैं आपके समक्ष आपके प्यार के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं -

तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं

नदी के लहर सी चंचलता है तुझमें
पानी के जितनी सरलता है तुझमें
कभी मौन है तू आकाश जैसी
क्रोधित कभी तो बरसात जैसी
किसी अप्सरा से तू कम नहीं है
तू राधिका मेरी मैं तेरा श्याम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  }....(2)

आसमान का जो जमी से है
फूल का जो डाली से है
तेरा मेरा रिश्ता वही है
दरिया साहिल से अलग तो नहीं है
फूल की खुशबू कहीं छुपती नहीं है
तू पहचान मेरी मैं तेरा नाम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  } ....(2)

सोने का जो होता है तेरे तन का वही रंग है
सुनाई देता है नभ की गर्जना में
हमारे मिलन का वो मृदंग है
तेरे मन पर मेरा जो अधिकार है
मेरे मन पर तेरा जो अधिकार है
हां हां वही है वही प्यार है
तू पूर्ण है तो मैं अल्प विराम हूं
तू सीता मेरी मैं तेरा राम हूं  }....(4)

    मेरी ये नवगीत आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |  

मंगलवार, 15 मई 2018

मजाहिया शेरो शायरी

     नमस्कार ,  उर्दू शेरो शायरी का एक और रूप है | जिसे मजाहिया शायरी कहा जाता है | मजाहिया शायरी में शायर अपने शेरों में गज़लों में हास्य रस की अनुभूति कराता है | मजाहिया शेरो शायरी उर्दू साहित्य में अपनी एक अलग पहचान रखती है | मजाहिया शेरो शायरी मजाकिया अंदाज में वर्तमान हालात पर व्यंगात्मक तंज करने की एक कला है |

मजाहिया शेरो शायरी

    मुझे जैसे-जैसे उर्दू शेरो शायरी की समझ हो रही है उसी के साथ - साथ  धीरे-धीरे मजाकिया शेरो शायरी की समझ भी हो रही है | हालिया दो-तीन महीनों के अंतराल में ही मैंने उर्दू शेरो शायरी के साथ साथ उर्दू मजाहिया शेरो शायरी की भी कुछ रचनाएं की हैं ,  जिन्हें मैं आप की खिदमत में पेश कर रहा हूं -

एक मतला और दो तीन शेर ये देखे के

कभी खिलाड़ी तो कभी नेता समझता है
एक गोरिल्ला खुद को अभिनेता समझता है

चुनाव लड़ने के लिए अब ये काबिलियत भी जरूरी है
दावेदार पेशे से जेबकतरा होना चाहिए

एक गमजदा मैं ही नहीं हूं मोहब्बत में
खबर ये है कि मेरे अलावा उसके और भी कई आशिक थे

नेता मंत्रियों को इंसान समझने की गलती मत कर देना
कुछ भी ना मिले खाने को तो ये चारा और कोयला भी खा सकते हैं

इसी सिलसिले के दो-तीन शेर और देखें के

जो यह खबर सुनता है वही सुन्न पड़ जाता है
पता चला है जौहरी की दुकान में सब्जियां बिक रही हैं

आपके नहीं मेरे नसीब की चीज है
मेरी फटी जेब से 10 का सिक्का गिरा है मिले तो लौटा देना

हां यह मान लिया हमने उससे इश्क बेहिसाब हो गया है
मगर तोफो का हिसाब तो रखना ही पड़ता है

    मेरी ये मजाहिया शायरी आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

तेवरी , भारत को

      नमस्कार ,  हर एक कविता एक स्थाई भाव रखती है , चाहे वह भाव श्रृंगार रस का हो , रौद्र रस का हो , हास्य रस का हो या करुण रस का हो | रौद्र यानि क्रोध क्रोध को आम बोलचाल की सरल भाषा में तेवर कहा जाता है | इसी तेवर की पद्य साहित्य की एक विधा है  , जिसे तेवरी कहा जाता है | तिवरी का तेवर अक्सर विरोधात्मक या व्यंगात्मक होता है |

     आज कल में मैंने एक त्रिपुरी की रचना की है | मेरे द्वारा रचित तेवरी का स्थाई भाव व्यंगात्मक है | तेवरी का शीर्षक है 'भारत को' | रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत है -

भारत को

जाओ वोट नहीं देंगे
हम तुमको
जिन पर भरोसा नहीं
है हमको

तेवरी , भारत को

तुम क्या-क्या करके दिखाओगे हम जानते हैं
हम तुम्हारी नियत पहचानते हैं
मीठे मीठे भाषणों से अपने
जो तुम्हें ना जानते हो
बेवकूफ बनाना तुम उनको

हां हां अपने पास ही रखो
नंगे विकास को अपने साथ ही रखो
धोखेबाजों , मासूम जनता के गुनहगारों
चिकनी-चुपड़ी तुम्हारी बातों से
हम नहीं पिघलने वाले
क्योंकि तुम्हारी औकात मालूम है हमको

जाओ वोट नहीं देंगे
हम तुमको

      मेरी ये तेवरी आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

घनाक्षरी , कुछ ऐसे ही

नमस्कार ,  कोई भी वाक्य बहुत सारे शब्दों का एक समूह होता है और एक शब्द बहुत सारे अक्षरों का समूह होता है | हिंदी पद्य साहित्य में एक विधा है जो अक्षरो के सघन समूह को परिभाषित करती है | उस विधा को घनाक्षरी के नाम से जाना जाता है | घनाक्षरी विधा में एक ही प्रकार के समानार्थी शब्दों की सघनता होती है | इस विधा की रचनाएं बहुत ही उच्च कोटि की होती हैं जिन्हें पढ़कर आनंद की अनुभूति होती |

   तकरीबन दो-तीन दिन पहले ही मेरा घनाक्षरी विधा से परिचय हुआ है | उसी दौरान इसी विधा में मैंने एक रचना की थी जिसे मैं यहां लिख रहा हूं | आपके आशीर्वाद की आशा है -

कुछ ऐसे ही

काले - काले कोट वाले
सफेद - सफेद धोती कुर्ता वाले
खादी की जैकेट , टोपी वाले
कुछ ऐसे ही दिखते हैं राजनीति वाले

कुछ ऐसे ही दिखते हैं राजनीति वाले

झूठे - झूठे करते वादे
जैसे होते हैं खाली - खाली लिफाफे
जीतने के बाद नजर ना आंवे
कुछ ऐसे ही करते हैं वोटनीति वाले

कर - कर के घोटालों पर घोटाले
भारत की जनता को लूट - लूट कर कंगाल -कंगाल कर डाले
इन्हें तिहाड़ जेल के करो हवाले
कुछ ऐसे ही सजा पाते हैं नोट की राजनीति वाले

   मेरी ये घनाक्षरी आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

एक हाइकु रचना , ये प्रेम क्या

        नमस्कार ,  हाइकु जापानी कविता की एक विधा है | इस विधा में कविता के रूप में एक स्थाई भाव को प्रदर्शित किया जाता है | हाइकु भी एक बहुत ही प्रचलित एवं लोकप्रिय हिंदी साहित्य की विधा है |

      एक-दो दिन पहले मैंने भी एक हाइकु लिखा है | इसके साथ में यह भी बताता चलूं कि यह विधा मेरे लिए थोड़ी नयी है इसलिए मेरी यह रचना थोड़ी कच्ची हो सकती है | हाइकु रचना आपके समक्ष प्रस्तुत है -

एक हाइकु रचना , ये प्रेम क्या


ये प्रेम क्या

प्रेम है
पथरीला रास्ता
कब तक
 
देता रहेगा
दस्तक

दिल की
बात कौन
सुनेगा

किससे कहेगा
मन ये मेरा
अपनी पीड़ा

यह प्रेम क्या
जीवन का
जहर होगया

       मेरा ये हाइकु आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

सोमवार, 14 मई 2018

गीतिका , हे भगवान प्रेम को हवा बना दो

      नमस्कार ,  गीतिका हिंदी साहित्य की एक और छोटी विधा का नाम होता है | गीतिका गजल के कुलगोत्र की विधा है | आमतौर पर गीतिका विधा भी गजल विधा की तरह ही शीर्षक बिहीन होती है |

       मेरा परिचय भी गीतिका विधा से हाल ही में ही हुआ है | आजकल में मैंने इस विधा में एक रचना की है | मैं अपनी लिखी इस गीतिका को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं | आप से मेरे उत्साहवर्धन की कामना करता हूं -

गीतिका , हे भगवान प्रेम को हवा बना दो

आगे के दिन भी बिताएंगे
वैसे ही जैसे बीते अभी तक

मेरे प्रेम की आवाज गूंजती है
जमीन से लेकर आसमान तक

जब तक तुम्हारे मेरे मिलने की आशा है
यह दिल भी काबू में है तभी तक

हे भगवान प्रेम को हवा बना दो
जो एक साथ पहुंचे सभी तक

एक एक करके सभी दोषी पकड़े गए
हमने सोचा था प्रेम का यह दोष सीमित है   हम्ही तक

प्रेम का दामन क्रोध के साए से सुंदर है
'हरि' में जिंदगी बाकी है प्रेम है जभी तक

       मेरी यह गीतिका आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

गाना , इश्क़ का नशा फिर दोबारा हुआ

    नमस्कार ,  गाना हिंदी साहित्य की कुछ सबसे प्रचलित एवं प्रसिद्ध विधाओं में से एक है | भारतीय हिंदी सिनेमा के गानों की फेहरिस्त बहुत ही लंबी है | अमूमन हम सब रोजाना एक, दो गाने तो सुन ही लेते होंगे | गाने के बोल में मुख्यतः दो भाग होते हैं अंतरा एवं बंद , गाने के बंद अक्सर छंदमुक्त होते हैं |

गाना , इश्क़ का नशा फिर दोबारा हुआ

    मैंने भी कुछ दिनों पहले एक गाना लिखा है | अक्सर ये कहा जाता है कि प्यार दोबारा नहीं होता ,  तो मेरे इस गाने में दूसरी बार प्रेम के हो जाने का जिक्र है | जिन्हें भी किसी से प्यार है वह इस गाने को गुनगुना सकते हैं | गाना आपके सामने प्रस्तुत है -

बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ
बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

मैंने तो सोचा था
ताश के पत्तों के जैसे
बिखर जाऊंगी मैं
मगर पता नहीं था मुझे
तुमसे मिलकर सबर जाऊंगी मैं
एक आंसू ख़ुशी का फिर से
हमारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

तुम जबसे मुझसे मिले हो
मैं भी थोड़ा-थोड़ा जीने लगा हूं
मैं भी जख्मों को अपने सीने लगा हूं
कभी मत छुड़ाना मुझसे दामन
तेरे सहारे की जरूरत है मुझको
जिसे देखना चाहूं ताऊ उम्र में
तू मेरा वह नजारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

ना तुम्हारा हुआ ना हमारा हुआ
चांद जैसा कोई ना सितारा हुआ
बीच समंदर में एक किनारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ
इश्क का नशा फिर दोबारा हुआ

   मेरा ये गाना आपको कैसा लगा मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

प्रेम की कृण्डलियां

नमस्कार ,   कृण्डलियां छंद छंदबद्ध हिन्दी कविता का एक प्रकार है | यह छंद तीन छंदों का एक मिश्रण छंद है | जिसमें रोला एवं दोहा छंद सम्मिलित है | कृण्डलियां छंद की आखिरी दो पंक्तियां दोहा छंद की होती हैं |

आजकल मैं ही मैंने भी कुछ कृण्डलियां छंद की रचना की है | इन छंदों को मैं आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं | अगर मेरी लेखनी से कुछ अच्छा हो गया हो तो मैं आपके आशीर्वाद की कामना करता हूं -

प्रेम की कृण्डलियां

प्रेम की कृण्डलियां

                           (1)

एक मोहिनी रूप , देखा मैंने आज
हो गया मुझे उससे प्रेम , यह है मेरा राज
यह है मेरा राज , जिसे कोई ना जाने
ना मैं उसे ना वो हमें , दोनों हैं एक दूजे से अनजाने
एक तरफ है मीत , एक मीत गीत
बिना शर्त निभाते रहें , यही प्रेम की रीत

                            (2)

किस नदी में धार है , किस नाव में पतवार
किस नजर में तकरार है , किस दिल में प्यार
किस दिल में प्यार है , किस दिल में नहीं
प्यार के इस जंग में , कौन है सही
कहत हरि कविराय , एक डोर है प्यार में
टूटती है विश्वास की डोर , सक या तकरार में

                            (3)

भले रोज ना हो मिलना मिलाना , मगर   मुलाकात तो हो
हर वक्त ना हो भले मगर , कभी कभी प्यार की बात तो हो
कभी कभी प्यार की बात तो हो , ये जरूरी है
अगर प्यार है किसी से , कहना बहुत जरूरी है
कहत हरि कविराय , दिल ही दिल में मत छुपाओ
अगर प्यार है तुम्हें भी तो , मोहन प्यारे उसे जताओ
.
  मेरीे यह कृण्डलियां छंद आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा | अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

तीन क्षणिकाएं

     तनमस्कार , क्षणिकाएं हिंदी साहित्य पद्य विधा की ऐसी छोटी रचनाएं हैं जिनका शीर्षक नहीं होता | तथा यह मूलतः छंदमुक्त भी होती हैं | क्षणिकाएं छोटी एवं कम शब्दों में बड़ी बात कहने की एक विधा का नाम है | छड़ी गांव का विषय मुख्यतः वर्तमान परिस्थिति पर आधारित होता है |

     वर्तमान परिस्थितियों को मध्य नजर रखते हुए मैंने भी आजकल में कुछ क्षणिकाएं लिखी है | जिन्हें मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

हाय , हाय रे गर्मी

हाय , हाय रे गर्मी

1) सूरज चाचा
के पास भी
कहां होगी
इतनी गर्मी
जितनी है
आजकल चुनाव
कि गर्मी

2)  क्या कहूं
क्या बताऊं
लोग अस्त व्यस्त हैं
और हैरान है
दिन के तापमान से
लगता है के
आग बरस रही है
आसमान से

3)  थोड़ा तो दिखाओ
तेवर में नरमी
हाय रे गर्मी
हाय , हाय रे गर्मी

      मेरी ये क्षणिकाएं आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |   

तुझे भुलाने की साजिश कर रहा हूं

नमस्कार , उर्दू शायरी कि ये  खासियत है के  उर्दू शायरी सीधे सीधे दिल में उतरती है और इंसानी जज्बातों की तर्जुमानी करती है | कुछ आसार मैंने भी कहने की कोशिश की है |

एक मतला और एक शेर ये देखे के

एक मतला और एक शेर ये देखे के

क्यों तू मेरी यादों से बेदखल नहीं होता
ये एक ही मसला है जो मुझसे हल नहीं होता

कोई ना कोई फैसला तो उसी सब-ए-मुलाकात में हो जाता
अगर जो तेरी आंख में काजल नहीं होता

मैं ये गुनाह वाजिब कर रहा हूं
तुझे भुलाने की साजिश कर रहा हूं

मुमकिन से मुमकिन तक नामुमकिन से नामुमकिन तक सब आजमा कर देख लिया
मैं बस तुम्हारे होठों पर हंसी लाने की कोशिश कर रहा हूं

यह दो तीन शेर और देखे के

मेरे पास दौलत-ए-मोहब्बत है
वो चाहकर भी मेरे जितना अमीर नहीं हो सकता

उसने ऐसे मांग लिये अपने दिए खत मुझसे
जैसे कर्जदार वसुनिया करते हैं

शक्लो सूरत से जरा सा मैं भी सितारों जैसा हूं
जब चमकूंगा तो देख कर बताना मुझे

मेरी शेरो शायरी कि ये बातें आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा | अगर अपने विचार को बयां करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार नयी रचनाओं के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |            

रविवार, 13 मई 2018

मां मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं

     नमस्कार , आप को मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएँ | आज का दिन दुनिया भर की सभी मांओ के लिए सभी बच्चो की तरफ से एक तौफा हैं मगर ये तौफा बेकार चला जायेगा अगर आप की मां आपसे नाराज हैं या आप उनकी खुशी के लिए कुछ भी ना करें | और सिर्फ़ आज के दिन ही नहीं हम बच्चो को ताउम्र ये कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने मां पापा के आदर्श बच्चे बनकर रहें |

mothers day special kavita  मां मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं

      मै ये अपनी कविता मेरी और दुनियां की सभी को समर्पित करता हूं | जैसा की हम सब जानते हैं हर बच्चा ये सोचता है कि उसकी मां उसको उसके दूसरे भाई बहनो से ज्यादा प्यार करती हैं मै भी | इसी जज़्बात को मैने एक कविता लिखी है | कविता का शीर्षक हैं -

मां मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं

मां मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं
भईया से भी ज्यादा
दीदी से भी ज्यादा
प्यार करती हैं
मां मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करत हैं

मेरे लिए ही सुबह सुबह उठकर नाश्ता बनाती हैं
मुझे अपने हाथों से खिलाति हैं
मुझे पापा कि डाट से बचाती हैं
मेरे लिए देवी देवताओ से हजारों दुआए मांगती हैं
मां मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं

मुझे रोता देखकर वो खुद भी रोने लग जाती हैं
मेरे बीन कहे मेरे मन की बात समझ जाती हैं
मै अगर देर से घर आउ
तो वो मेरा नजाने क्यों इंतजार करती रह जाती हैं
मां मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती हैं
.
   मेरी यह प्रतिगीत आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

मंगलवार, 8 मई 2018

प्रेम के दोहे

      नमस्कार ,  दोहे हिंदी कविता की एक ऐसी विधा है जो भक्ति काल से बहुत ही प्रसिद्ध | रहीम दास , तुलसीदास , कबीरदास आदि जैसे महानतम कवियों ने अपनी रचनाएं दोनों में की हैं | अक्सर आपने रहीम के , कबीर के , तुलसी के दोहे पढ़े या सुने होंगे | दोहे अक्सर कई उद्देश्य पूर्ति के लिए लिखे जाते हैं  यह भाव प्रधान या व्यंगात्मक हो सकते हैं |

   प्रेम के दोहे

   आज मैंने भी कुछ दोहे लिखने की कोशिश की है जिन्हें मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

                      प्रेम के दोहे
            
                           (1)

एकतरफा प्यार में , मत देना आशिकों जान
राष्ट्रहित में जान देना , युग-युग मिले सम्मान

                           (2)

पहले पहले प्यार में , प्रेम सिर चढ़ कर बोले
पहले प्रेमिका कोयल जैसी , फिर कौवे जैसी बोले
                           (3)

प्यार के इस खेल में , कहते हैं सब कुछ माफ
प्रेमी चाहे प्रेम को या फिर करें प्रेमिका को साफ

                           (4)

दुकानदारी खूब हुई , प्रेम के नाम पर
प्रेमियों में झगड़ा दोपहर तक हुआ , एक तोहफे के दाम पर

                          (5)

प्यार के इस खेल में , क्या हुआ परिणाम
श्याम को ना राधा मिली , ना राधा को श्याम

                         (6)

आओ मुझ में विलीन हो जाओ , जैसे पानी में रंग
कुचल कर भी ना मिटे , फूल की सुगंध

     मेरे यह दोहे आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

बोट बरसा देना तू चुनाव आया है

      नमस्कार ,  आज मैं आपका परिचय हिंदी पद्य साहित्य की जिस विधा से कराने जा रहा हूं उसे प्रतिगीत कहते हैं |  प्रतिगीत विधा में  किसी लोकप्रिय गीत का व्यंगात्मक एवं हास्यात्मक रूपांतरण प्रस्तुत किया जाता है | अक्सर प्रतिगीत विधा में फिल्मी गीतों का हास्यात्मक एवं व्यंगात्मक रूपांतरण प्रस्तुत किया जाता है |

    कुछ दिनों पहले मैंने भी एक प्रतिगीत लिखने की कोशिश की है |  आप सबने एक मशहूर फिल्मी गीत 'मोहब्बत बरसा देना तू सावन आया है' सुना होगा | मैंने इस गीत का प्रतिगीत  लिखा है | जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं -

बोट बरसा देना तू चुनाव आया है


बोट बरसा देना तू चुनाव आया है
तेरे चरण छूने का मौका आया है - (2)

मेरे जितने के बाद महंगाई चली जाएगी
मेरे जीतने के बाद गांव में बिजली हो जाएगी
सच्चे हैं यह मेरे वादे
पूरे करने के हैं इरादे
मौका देकर देखें हमें भी एक बार
कैसे बताऊं सच्ची बात ये मेरी
रातभर सोचकर झूठे वादे लिख कर लाया हूं
मेरे चुनाव चिन्ह पर बटन दबाना तू
चुनाव आया है
तेरे चरण छूने का मौका आया है

सब कुछ करके बस जनता को मनाना है
वोटों के खातिर हद से गुजर जाना है
विधानसभा का टिकट पहली बार पाया है
बोट बरसा देना तू चुनाव आया है
तेरे चरण छूने का मौका आया है

बोट बरसा देना तू चुनाव आया है
तेरे चरण छूने का मौका आया है

    मेरी यह प्रतिगीत आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

रविवार, 6 मई 2018

मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

    नमस्कार , अभी हाल ही में तकरीबन 1 महीने पहले मैंने एक ग़ज़ल लिखी है उसे मैं आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं -

मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

बस खेलने की चीज़ समझ लेने वालों
मुझे दिल का मरीज समझ लेने वालों

बस एक दफा आफत से टकराकर टूट जाते हो
शिकस्त को नसीब समझ लेने वालों

अक्सर शख्सियत से काबिलियत का अंदाजा नहीं होता
हर एक चीज को नाचीज समझ लेने वालों

कभी ये बेफिजूली भी आजमा कर देखो
मोहब्बत को बुरी चीज़ समझ लेने वालों

एक बार जो समझ जाओगे तो फिर भुला ना पाओगे
सिर्फ चेहरे से अजीब समझ लेने वालों

किसी हसीना को समझ जाओगे तो समझदार मान लेगा 'हरि'
सुना है हर चीज समझ लेने वालों

    मेरी यह गजल आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं | नमस्कार |

शादियों का दौर है

  शादियों का दौर है मेरी यह हास्य व्यंग कविता शादी के बाद पति पत्नी के खट्टे-मीठे रिश्ते पर  आधारित है | शादी इंसानी जिंदगी का वह रिश्ता है जो जिंदगी को मुकम्मल बनाता है | इस रिश्ते में पति पत्नी के दरमियां हजारों अनबन हजारों , तीखी मीठी नोकझोंक होती रहती हैं | 

शादियों का दौर है

          शादी से पहले और शादी के बाद के विरोधाभास को मैंने अपने कविता में व्यंगात्मक रुप से प्रदर्शित किया है  और उसे हास्य का रूप देने की कोशिश की है | मुझे उम्मीद है मेरी यह कविता आपका मनोरंजन करेगी -
शादियों का दौर है
शादियों का दौर है
आबादियों का दौर है
या बर्बादियों का दौर है
उलझने सिर्फ इतनी नहीं
सवाल अभी और हैं
शादियों का दौर है

शादी के दिन दोस्त  नचाते हैं
फिर जिंदगी भर पत्नी नचाती है
शादी की रात भर सब ढोल बजाते हैं
फिर पत्नी सारी उमर बैंड बजआती है
शादी के दिन और रात राजा जैसे खातिरदारी मिलती है
और सारी जिंदगी गुलाम जैसी हालत रहती है
शादी तो खुशियों का जाना है
और दुखों का घर आना है
गलत समझ रहे हैं आप
मेरे कहने का मतलब कुछ और है
शादियों का दौर है

शादी से पहले पढ़ाई में
गणित को समझना मुश्किल होता है
शादी के बाद जिंदगी में
पत्नी को समझना नामुमकिन होता है
पत्नी अगर बोलती रहे
तो खतरा होती है
पत्नी अगर ना बोले
तो खतरनाक होती है
दूर के ढोल सुहावने लगते हैं
यह कहावत सबसे ज्यादा शादी पर लागू होती है
बस इतनी नहीं शादी की तारीफ अभी और है
शादियों का दौर है

     मेरी यह हास्य व्यंग कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्स के जरिए जरूर बताइएगा, कृपया ब्लागस्पाट के कमेंट बॉक्स में सार्वजनिक कमेंट ऐड करिएगा | अगर अपने  विचार को बयां  करते वक्त मुझसे शब्दों में कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मैं तहे दिल से माफी चाहूंगा | मैं जल्द ही वापस आऊंगा एक नए विचार के साथ | तब तक अपना ख्याल रखें, अपनों का ख्याल रखें ,नमस्कार |

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