सोमवार, 22 जुलाई 2019

शेरो शायरी, कुछ रुह की सुना दूं 7

       नमस्कार, हाल के बीते कुछ दो तीन महीने में मैने कुछ शेरो शायरी की है कि क्या है यू कहूं तो करने की कोशिश की है और जो कुछ टूटा फूटा हो पाया है वो आज आपके हवाले कर रहा हूं

जहर के कारोबार का यही अंजाम होगा
बदनाम तो वो होगा ना जिसका कोई नाम होगा

बतन के दुश्मनों से जो दोस्ताना कारोबार करता है
उसका होगा भी तो कितना कौडी दो कौडी का इमान होगा

अपने बेटों की लाशों को भी देखकर जिसकी आंखें नम न हो
आपको लगता है कि की वो शख्स इंसान होगा

कभी शाख से टुटते पत्ते देखें हैं तुमने
मतलब तुमने हमे कभी गौर से नही देखा

पतलों को ये गुमान हैं के कभी मोटे नही होंगे
मोटों को ये गलतफहमी है के कभी पतले नही होंगे

आँसूओं की यही खासियत होती है
आने और जाने का कोई निशान नहीं छोड़ते

एक नाम के दो लफ्ज जब से नारे हो गए हैं
आपसी दोस्त दुश्मन सारे हमारे हो गए हैं

ये हमारी मेहनत और आवाम की मोहब्बतों का नतीजा है
मुखालफिन भी अब मुरीद हमारे हो गए हैं

ये नजारा पहले देखिए खुदा जाने फिर कब मयस्सर हो
कितने खुबसुरत लोग महफिल में तमाशा देखने आए हैं

कितना समझदार समझता था तुझसे पहली दफा मिलने से मै खुद को
आखिर तेरे मासुम से चेहरे ने बेवकूफ बना ही दिया मुझको 

जंगवाजों जंगवाजी यू भी दिखाई जाती है
हार हो या जीत हो दुश्मन शर्मिंदा रहना चाहिए

कुछ लोग अपने नाम कुछ लोग अपने काम से पहचाने जाते हैं
दुनिया मिसाल देती है जिनकी कुछ लोग अपने अंजाम से पहचाने जाते हैं

शहद समझकर आतंकवाद के जहर को पालने वालों
जहर पहले उस प्याले को जलाता है जिसमें वो रखा जाता है

लफ्जों में लगी हुई बीमारी नही हो सकता
तनहा बागी हो सकता है दरबारी नही हो सकता

हमारे सारे बनते हुए काम गड़बड़ा जाते हैं
जब भी सुनते हैं तुम्हारा नाम सकपका जाते हैं

किसी दिन दिल हिचकिचाना बंद करें तो बताएं तुम्हें
हम तुमसे बात करते हुए हड़बड़ा जाते हैं

होश आने पर मदहोशी का खामियाजा न भुगतना पड़ जाए कहीं
संभालो खुद को जवानी की दहलीज़ पर अक्सर पाँव लड़खड़ा जाते हैं

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      इन शेरो शायरी को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

रविवार, 21 जुलाई 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 8

नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें

वो जमीन दरगाह हो जाती है जहां किसी नवाजी का सर लगता है
वो धरा किसी तीर्थ से कम नही जहां प्रसाद वितरण का लंगर लगता है
न मंदिर तोड़ो न मसजिद तोड़ो न चर्च न गुरुद्वारा
अब मुझे जलता हुआ हिन्दुस्तान देखकर डर लगता है

जमुरियत को लगा है आजार कहेंगे
आस्तीन के सांपों को मक्कार कहेंगे
हमारी हिम्मतअबजाई करो जमुरियत वालों
हम मुल्क के गद्दारों को गद्दार कहेंगे

हीज्र कि रात गुजरती है सहर छोड़ जाती है
नदी कि बाढ उतरती है लहर छोड़ जाती है
मेरा जिस्म जिस कदर आग का दरिया बना है
बुखार उतर भी जाए तो असर छोड़ जाती है

नही चाहिए था मोहब्बत का इस कदर नुमायाँ होना
अपने ही जिस्म है और किसी और का साया होना
मोहब्बत चुनने की आजादी सब को होनी चाहिए ये हक है
मगर अच्छा नही है बेटियों का इस कदर पराया होना

हेराफेरी का हिसाब जायज़ नही है
बेअदबी से दिया जबाब जायज़ नही है
इंसाफ करने के लिए अदालते हैं , मुंसिफ हैं
यू भीड़ का इंसाफ जायज़ नही है

खुदा जिन्दा रहे ना रहे भगवान जिन्दा रहे ना रहे इंसान जिन्दा रहना चाहिए
सरकार कोई भी आए निजाम कोई हो हालात कैसे भी हो दिल में हिन्दुस्तान जिन्दा रहना चाहिए
जंगवाजों जंगवाजी यू भी दिखाई जाती है
हार हो या जीत हो दुश्मन शर्मिंदा रहना चाहिए

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      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 7

नमस्कार, बीते एक दो महीनो के दरमिया में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हें आज मै आपके दयार में रख रहा हूं अब यहां से आपकी जिम्मेदारी है कि आप मेरे इन मुक्तकों के साथ न्याय करें

मुख्तसर शफर हो इसलिए पुराना शहर छोड़ा हैं मैने
नए दिन रात के लिए पुराना साम सहर छोड़ा है मैने
मोहब्बत का एक नया आशियाना बनाने के लिए
उस शहर में अपना पुराना घर छोड़ा हैं मैने

अपने किए के होने वाले अंजाम से चीढ होती है
तपती धूप पसंद लोगों को सर्द साम से चीढ होती है
क्या गज़ब होगा के कोई शैतानो का मुरीद हो यहां
हिन्दुस्तान में अब लोगों को राम के नाम से चीढ होती है

तुझसे दिल लगाने का मलाल है मुझे
अपने दिल की बात न कह पाने का मलाल है मुझे
तेरे मेरे दरमिया ये दूरीया ये दुनिया नही होती तो बहोत अच्छा होता
तेरे बगैर मुस्कुराने का मलाल है मुझ

एक ही हूजरे में कई लोग रहते हैं
खुदा तेरे सजदे में कई लोग रहते हैं
आज पुरानी तसवीरों की एक किताब मिली तो ये जाना
मेरे दिल के हर कोने में कई लोग रहते हैं

जो शर्म उचित वक्त पर आए ना उस शर्म पर लानत है
जो कर्म समाजहित में ना हो उस कर्म पर लानत है
देशप्रेम व्यक्त करने वाले शब्दों के उच्चारण से आपत्ति है जिसे
जिस धर्म में राष्टप्रेम गुनाह है उस धर्म पर लानत है

तू इस कहानी का हिस्सा नया नया नही है
तेरा मेरा किस्सा नया नया नही है
मै जानता हूं वो बहोत खफ़ा है मुझसे
मगर उसका ये गुस्सा नया नया नही है

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सोमवार, 8 जुलाई 2019

नज्म, कितनी गरीब है ज़िन्दगी

       नमस्कार, जब से मैने होश संभाला है तब से लेकर आज तक जिंदगी ने मुझे जो भी दिया या है जो कुछ भी मैने महसूस किया है उऩ सभी एहसासो को एक नज्म में पिरोने की कोशिश की है मै अपनी इस कोशिश में कितना कामयाब हुआ हूं ये आप मुझे बताएंगे, अब यहां से आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है |

कितनी गरीब है ज़िन्दगी

हर घडी सांसों की मोहताज है
कितनी गरीब है ज़िंन्दगी
कभी आंसू कभी मुस्कान
कभी काम कभी आराम
कितनी अजीब है ज़िंदगी

जब जिसको चाहती है
कई नाच नचा देती है
पल में दौलत से मालामाल
किसी को तो किसी को
एक एक निवाले का
मोहताज बना देती है
फिर भी सबको यहां
कितनी अजीज है ज़िन्दगी

किसी को बेशुमार फन
से नवाजा है तो
तो किसी को अधूरे मन
से तन नवाजा है
कभी नेकी तो कभी पापा है
किसी की ख़ातिर श्राप है
फिर भी अपनी अपनी
नसीब है ज़िन्दगी

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रविवार, 7 जुलाई 2019

ग़ज़ल, बुराई है बहोत अच्छा होना

     नमस्कार, ये गजल आज लिखा है मैने |आप पढ़े और पढकर बताए की कैसी रही

मन से मासूम दिल का सच्चा होना
इतना आसान भी नहीं है बुढ़ापे मे बच्चा होना

अब ये काबिलियत भी कमजोरीयों के दायरे में आती है
आजकल बुराई है बहोत अच्छा होना

अपने क़ातिल की आह सुनकर भी घबराहट होने लगे
इसी को कहते है दिल का कच्चा होना

इंसाफ़ का वादा किया था सो खुद के साथ इंसाफ़ किया
इसे को कहते है वादे का पक्का होना

वो मुझे आशुओ से तर देखना चाहता था तनहा मुस्कुराता रहा
उसका लाजिम था हक्का बक्का होना

        मेरीे ये गजल अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

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शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

ग़ज़ल, कैद हूं मैं

नमस्कार, अभी मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आब आपके साथ साझा करने जा रहा हूं | मुझे यकीन है की मेरी ये गजल आपको अच्छी लगेगी

किसी बियाबान में कैद हूं मैं
जिस्मे इंसान में कैद हूं मैं

मजबूरन परिंदों की तरह आजाद उड़ भी नही सकता
अपने मकान में कैद हूं मैं

मै चाहूं भी तो मैं से आगे नही निकल सकता
अपनी पहचान में कैद हूं मैं

किसी कि ख्वाहिशों का गला घोटना रिवाज है यहां
कैसे खानदान में कैद हूं मैं

जिसकी मर्जी के बीना एक पत्ता तक नही हिलता
ऐसे भगवान में कैद हूं मैं

यहां लोग जहन से बहरे हैं कोई चीखे भी तो कैसे
कितने सुनसान में कैद हूं मैं

खुशबूदार फूल होना भी कितना बडा गुनाह है
किसी फूलदान में कैद हूं मैं

अपने काम से काम इस्तेमाल करती है दुनिया मुझको
तनहा किसी सामान में कैद हूं मैं

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गीत, एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

    नमस्कार, मै जो गीत आज आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं उसे मै ने तकरीबन डेढ़ वर्ष पूर्व लिखना शुरु किया था और आज वो गीत पूर्ण हो गई तो मैने ये तय किया कि इस गीत को आपके सामने प्रस्तुत कर देना चाहिए | इस गीत का भाव हमारे देश में लड़कियों के प्रति हो ने वाली हिंसा की दर्दनाक और शर्मनाक ऐसी घटनाएं है जो किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक हैं | मैं चाहता हूँ कि आप इस गीत को एक बार जरूर पढे और अगर आपके दिल को छू जाए तो औरों के साथ भी साझा करें |

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

उड उड कर रोज दाने खाती थी चुगकर
कभी हंसती थी जोर से कभी शर्माती छुपकर
घुमना चाहती थी वो सारा गगन
रहती थी बस अपनी धुन में मगन
एक दिन भटक गई घर का रास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

आने वाले खतरे से चिड़िया अनजान थी
चेहरे पर मुस्कान और घोसले की जान थी
कितनी मासूम, कितनी थी भोली
उसकी सुंदरता देख दुनिया हैरान थी
बस दाल के दो दाने थे उसका नाश्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

एक चिडा रोज उसका करता था पीछा
कहता था चिडिया से प्यार है तुमसे
तुम भी करो प्यार कहता था हमसे
जब मानी नही चिडिया तो कर्म किया निचा
अपना लिया उसने जुर्म का रास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

एक दिन वो भी आया जब हैवानीयत की हद हो गई
ज़िन्दगी शर्मिंदा थी, इंसानियत मरगई
चिडे ने उस दिन जब जबरन मरोडी कलाई
और चिडिया के तन से खिचा दुपट्टा
तब चिडिया ने किया विरोध वो नही मानी
तो चिडे ने फेंका चिडिया के चेहरे पर तेजाब वाला पानी
पल में चिडिया का जीवन जलकर खॉख था
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

दुनिया जिसे पहले कहती थी खुबसुरत
अब देखती भी नही समझकर बदसूरत
जीत गया चिडा चिडिया को जलाकर
आजाद उड रहा है कानून को कुछ बोटियां खिलाकर
और चिडिया का हर सपना जलकर राख था
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

सुनना जरूर तुमको रब का वास्ता
एक चिडिया सुना रही है अपनी दास्तॉ

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गुरुवार, 4 जुलाई 2019

गजल, मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की

    नमस्कार, हफ्ते भर पहले मैने एक गजल लिखी है जिसे मैं आज आपके साथ साझा करने जा रहा हूं

मोहब्बत के हाथों मजबूर होने की
सजा मिल रही है बेकसूर होने की

खुद को जमाने भर का बादशाह समझ लेना
यही तो निशानी है गुरुर होने की

किसी के दिल पर बादशाहत चाहते हो
यही वो उमर है फ़ितूर होने की

मुझे लगता है वो मेरी जिस्म का आधा हिस्सा है
उसे शिकायत है मुझसे दूर होने की

सजा बगैर गुनाह किए भी मिल सकती है
हर बार जरूरी नहीं कसूर होने की

शर्त रखकर मोहब्बत हो नहीं सकती
मोहब्बत में हर बात होती है मंजूर होने की

दुनिया चाहती ही यही है कि तन्हा गुमनाम हो जाए
मगर मुझे जिद है मशहूर होने की

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