शनिवार, 28 दिसंबर 2019

कविता , जौहर कंड

      नमस्कार , मैने एक नयी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं मुझे आशा है कि आपको मेरी ये कविता पसंद आएगी और आप कविता के मुल भाव तक पहुंच पाएंगे

जौहर कुंड

शोकरहित हर्षित होकर
 मृत्यु समय से परिचित होकर
अपने सतित्व कि रक्षा के खातिर
अपने स्त्रीत्व कि सुरक्षा के खातिर
अपने हाथों से मिल जुल कर
कुंड में ज्वाला जलाती विरांगनाए
इतिहास ने देखा है भारत कि धरा पर
जौहर कुंड सजाती विरांगनाए
हंसते हुए जल जाती विरांगनाए
जय भां भवानी के
जय घोष लगाती विरांगनाए

      मेरीे ये कविता अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 7 दिसंबर 2019

गजल , दिललगी सब से बारी बारी करो

     नमस्कार , यहा मै अपनी नयी गजल आपकी जानीब में रख रहा हुं मेरी दिली तमन्ना है कि मेरी ये नयी गजल आपको बेहद पसंद आएगी

दिललगी सब से बारी बारी करो
पहले जमी फिर आस्मा से यारी करो

ये जमीन जहरिली हो चूकी है
यहां से कहीं और बसने कि तैयारी करो

हवाओ से बाते करना पुराना हो चुका है
इस दौर में तुफानों पर सवारी करो

आस्मा जहर का धुआ बन गया है
सांसे चाहिए तो सजरकारी करो

घरवालों की यही नसीहत रहती है
नौकरी करो तो सरकारी करी

कोई गुलबदन महताब महजबी दिल चुरा नले
अपने सामान की पहरेदारी करों

मसला ये नही की कौन मोहतरम है
फैसले में सब कि रायशुमारी करो

अपने जिस्म के वास्ते सच बोलो
अपनी रुह से वफादारी करो

वस्ल का मंजर हसीन होता है तनहा
मोहब्बत में पहले हीजरत की तैयारी करो

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       इस गजल को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 30 नवंबर 2019

ग़ज़ल, देख रहा हुं मै

     नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

दुनिया भर का जुल्म अपने अंदर देख रहा हुं मै
खुन कि दरिया खुन का समंदर देख रहा हुं मै

क्या बताउ तुम्हे मैने सब भर ख्वाब में क्या देखा
अपने ही मौत का मंजर देख रहा हुं मै

क्यों ना रोऊ बारुद कि खेती सुनकर
सारी कि सारी धरती बंजर देख रहा हुं मै

अब भी वक्त है इंसानो रुख जाओ
हिलती हुई जमीन हवाओ में बवंडर देख रहा हुं मै

क्या कहुं कि खुदा गुनाह माफ करदे मेरे
तनहा कयामत का मंजर देख रहा हुं मै

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ग़ज़ल, तुम मानोगे नही

    नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

आज सुबह कि बात है तुम मानोगे नही
मुझे लगा कि रात है तुम मानोगे नही

वो हाथ उठाता है अपनी शरिक ए हयात पर
यकिनन जानवर कि जात है तुम मानोगे नही

क्यो देता है वो मुझे पीठ पिझे गालियां
यही उसकी असल औकात है तुम मानोगे नही

मोहरे हैं वक्त नसीब हालात और मुश्तकबील
हयात खुदा कि बिछाई विसात है तुम मानोगे नही

दुश्मनों ने जश्न मनाया है तनहा मेरी हार का
ये मेरी फेंकी हुई खैरात है तुम मानोगे नही

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ग़ज़ल, वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

      नमस्कार , ये नयी गजल बिना किसी तमहिद भुमिका के आपके रुबरु रखना चाहुंगा

अपने अॉशुओ से मेरे जख्मों कि हिफाजत करती थी ना
वो भी मुझसे मोहब्बत करती थी ना

कभी रोजा रखती थी कभी मन्नते मांगती थी
वो कितनी रवायत करती थी ना

कम से कम घर में सन्नाटा तो नही पसरा रहता था
वो तो कितनी शिकायत करती थी ना

ख्यालात मुक्तलिफ नही होते थे हमारे
फिर भी वो मेरी खिलाफत करती थी ना

हयात कि वो खुशीयॉ उसके साथ ही चली गई तनहा
वो तो फरमाइसें करके मेरी आफत करती थी ना

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ग़ज़ल, आदाब बदल लेते है

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तर्को ताल्लुक अदबो आदाब बदल लेते हैं
लोग चेहरा देखकर हिजाब बदल लेते हैं

नफे नुक्शान का ऐसा गणित पढती है दुनिया
फायदे के लिए सच कि किताब बदल लेते है

मोहब्बत करने जा रहे हो तो याद रखना
मोहब्बत में नजरों से सारा हिसाब बदल लेते है

तनहा उस मोड की उस गली से मत जाना
इशारों इशारों से दिल जनाब बदल लेते है

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ग़ज़ल, क्या बात कर रहा है यार

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उसे मेरा इंतजार है क्या बात कर रहा है
उब भी मुझसे प्यार है क्या बात कर रहा है

जो शख्स जुवान तो जुवान अॉख तक से झुठ बोलता है
तुझे उसकी बात का ऐतबार है क्या बात कर रहा है

आवारा तितलीयों को आदत होती है फूल बदलते रहने की
मेरा तो है उसका भी पहली बार है क्या बात कर रहा है

ये तो दिल टुटने का बस दिखावा है फेसबुक पर
असल में नए आशिकों को इस्तेहार है क्या बात कर रहा है

माना तनहा थोडा बहोत नासमझ है मगर इतना भी नही
उसने कहा है मेरा उसके दिल पर इक्तेयार है क्या बात कर रहा है

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ग़ज़ल, थोडा सा पानी है

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जिंदगी कि जरा सी निशानी है
उस गड्ढे में थोडा सा पानी है

यही दो गज जमीन है सल्तनत मेरी
यही कब्र मेरी राजधानी है

निजाम ने कहा है तारीफ करो या चुप रहो
बोलना हुक्म की नाफरमानी है

दर्द ने टटोल कर तप्सिल किया है
मेरा अॉशु , अॉशु है या पानी है

अजीब सबाल पुछा है मुंशफ ने चोर से
क्या चोरी का हुनर खानदानी है

दुश्मनी नयी नयी है मेरी तनहा उनसे
वरना दोस्ती तो बहोत पुरानी है

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गाना, तु रब कि महरबानी है

      नमस्कार , मेरा एक छोटा सा नया गाना आपकी खिदमत में हाजिर है मुझे आशा है कि आपको प्रसंद आएगा

तु रब कि महरबानी है

जैसे कोई परिंदा चहके
जैसे कोई गुलाब महके
बरषा बरसे जैसे सावन मे
मेंहदी हो जैसे आंगन में
सपनों जैसी अब जिंदगानी है
तु मेरी प्रेम कहानी है
तु रब कि महरबानी है

तेरा मेरा मिलना दुआ है
दिल में कुछ तो हुआ है
धडकन कि सदा इबादत है
हुंई जो सच्ची मोहब्बत है
ये रब कि कैसी मनमानी है
तु मेरी प्रेम कहानी है
तु रब कि महरबानी है

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कविता, पहला करवा चौथ

      नमस्कार , मेरी ये कविता दरहसल पहली बार करवा चौथ करने वाली वन विवाहित महिलाओ पर आधारित है और मेरी यह कविता मेरी अनुभुतियों का शाब्दीक रुप है

पहला करवा चौथ

करवा में जल भास्कर
पुरवा से ढक कर
चलनी में दीप रखकर
सोलह सिंगार कर
दिन भर का उपवास कर
सुहागने सुहाग के साथ
कर रहीं है चौथ के चांद की प्रतीक्षा
सदा प्रेम इसी तरह बना रहे
यही है मन कि इच्छा
दिन भर की भूखी प्यासी
सुहागन की मनोकामना
इतनी कठिन तपस्या के बाद
हे चंन्ददेव अब और न लो
मेरे सब्र कि परीक्षा
निकलआओ गगन में

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कविता, चौथ का चांद है

      कविता , एक अलग तरह कि कविता पढ के देंखे यह कविता शायरी कि तरह है मैने भी जब इसे लिखा था तो मै यही सोच रहा थाकि यह कविता है की नज्म पर जहा तक मुझे पता है यह कविता हि है

सौहर ने बेगम को देखकर ये कहा
वाह क्या बात है चौथ का चांद है

माशुक ने माशुका को देखकर ये कहा
पहली मुलाकात है चौथ का चांद है

शायर ने शायरा को देखकर ये कहा
हूस्न लाजबाब है चौथ का चांद है

जीजा ने साली को देखकर ये कहा
नयी नयी गुलाब है चौथ का चांद है

मयकदे में शराबी ने मय को देखकर ये कहा
भरी हुई गिलास है चौथ का चांद है

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कविता, जिसके पास रजाई नही है

   नमस्कार , ठंड का मौसम कई मायनों में सब के लिए अलग अलग चीजों के लिए याद रहता है कुछ के लिए मिठे एहसास तो कुछ के लिए कडवे और एक चीज जो इसके केंद्र में रहती है वो है रजाई | पर आज मै इस कविता के माध्यम से हमारे देश भारत के उस वर्ग की बात जो गरिबी रेखा के निचे आते है जिनके नसिब में दो वक्ता भर पेट खान नही है तन पर पुरे कपडे नही है मगर शायद हमारे इसी देश का एसी कार से धुमने वाली बहुमंजिला इमारतों में रहने वाला हवाई जहाज में शफर करने वाला वर्ग समझ ही नही सकता | वैसे तो भारत कि कई जगह कि सर्दीया मसहुर है मगर दिल्ली कि सर्दी की बात ही अलग है

जिनके पास रजाई नही है

अपने बिस्तर पर
अपनी रजाई में दुबका हुआ हुं मै
इस सच से बेखबर की
यही ठंड तो उनके लिए भी है
जिनके पास रजाई नही है
मखमल का कंबल नही है
कंबर तो दूर पुरे तन पर वस्त्र नही हैं
विवाईयां हैं पाव में चप्पल नही है
बिमारीयां तो बहुत हैं
मगर दवाई नही है
और मै सबसे कहता फिरता हुं
बहुत ठंड है

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कविता, अंगीठी , चमगादड

     नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज दुसरी बार दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

अगीठी

कुडकुडाती ठंड में
रात कि गिरती ओश में
सूबह के जाडे में
हाथों को जमने से
पुरे बदन को ठीठुरने से
कानों को गलने से
कौन बचाती है
अंगीठी

चमगादड

उल्टी फितरत
टेढी नियत
आवाज की तेजी
पंखो की ताकत
डरावनी सुरत
नाम जरुरत
दुश्मनों मे दहशत

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कविता, कल कि रात , तलाक बीच में

      नमस्कार , अभी तक मैने अपनी हिन्दी मे जो सभी पोस्ट की है उनमें केवल एक रचना पोस्ट कि है पर आज पहली बार प्रयोग के तौर पर दो कविता रचनाएं पोस्ट कर रहा हुं मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा |

कल कि रात याद रहेगी

जब तुमने मुझे गहरी नींद से उठाया था
कुछ कहना है कहके बालों को सहलाया था
मुंह से चुप रहकर आखों से सब बताय था
मेरे हाथ मे अपना हाथ रखकर पलकों को
मुस्कुराकर शर्माकर झुकाया थां
तेरी मिठी सिसकीयों शदा सदा रहेगी
कल कि रात याद रहेगी

तलाक बीच में कहां से आया

प्यार हमारा , तकरार हमारी
रिश्ता हमारा , तफरत हमारी
सफर हमारा , मंजील हमारी
शेर हमारा , महफिल हमारी
ये हीज्र बीच में कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

माना के सब ठीक आजकल नही है
पर ये रिश्ता अभी विफल नही है
क्या हुआ गर हम अभी सफल नही हैं
मगर अलगाव मुश्किलों का हल नही है
हमारे दरमियान ये दखल कहां से आया
तलाक बीच में कहां से आया

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मंगलवार, 26 नवंबर 2019

कविता, भारत का संविधान

      नमस्कार , आज यानि 26 नवंबर को हमारे सबसे प्राचिन महान विविधता से परिपुर्ण देश भारत का संविधान दिवस है इसकी आपको ठेर सारी शुभकामनाए एवं बधाई | जैसा कि हम सब जानते है भारत दुनियां का सबसे बडा  लोकतांत्रिक देश है साथ ही साध हमारे भारत देश का संविधान दुनियां का सबसे सडा लिखित एवं निर्मित संविधान है और हम सभी देश वासियों को इस पर गर्व है |

       हमारे देश का संविधान इतना बहा एवं महान है कि इसके बारे मे मै कुछ भी लिखु कम ही रहेगा मगर फिर भी मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जो यहां उपस्थित है जिसे आपके प्यार कि जरुरत है

भारत का संविधान

एक किताब जो न्याय है
नियम है , विधी है
जो दंण्ड है , क्षमा है
स्पष्ट है , निरपेक्ष है
जो कर्तव्य है , अधिकार है
विचार है , आधार है
जो समान है , सम्मान है
साधन है , समाधान है
जो प्रतीक है , पवित्र है
प्रधान है , विधान है
जो सत्य है , महान है
वो भारत का संविधान है

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कविता, डर कभी नही जीतेगा

      नमस्कार , आज का दिन कही न कही इंसानीयत के लिए खतरो के प्रति विचार विमर्श एवं मानवता पर लगे एक काले धब्बे का प्रतिक है न शिर्फ भारत के लिए अपितु पुरी दुनिया के लिए | आज 26 नवंबर है जिसे 26 /11 भी कहा जाता है | आज ही के दिन हमारे भारत के महाराष्ट प्रांत के मुम्बई शहर के ताज होटल मे 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला किया था जिसमे सैकडों लोगों की जान गई थी | जैसा कि हम जानते है आतंकबाद आज दुनियी के लिए बहोत बडी चुनैती भी है और खतरा भी जिससे आज भारत समेत दुनिया के सैकडों देश पीडित है लेकिन फिर भी आतंकबाद के इस मुद्दे पर पुरी दुनिया एक टेबल पर नही आ पा रही है | ऐसे वक्त में मै मानता हुं कि हमारे प्रधानमेत्री जी का आतंकबाद के खिलाफ दुनियां के हर बडे म्च पर बोलना पहोत ही प्रभावी एवं साहसिक कदम है

       आज के दिन को याद करते हुए उस हमले में अपनी जान गवाले वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि स्वरुप मैने एक छोटी सी कविता लिखी है जिसे आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं

डर कभी नही जितेगा

सच कभी नही हारेगा
डर कभी नही जितेगा
मानवता कभी मिटेगी नही
किसी हाल में झुकेगी नही
दहसत का विनाश होगा
आतंक का सर्वनाश निश्चित है
तफरत का विनाश निश्चित है
प्रेम हमारा सुनहरा कल होगा
ज्यो गंगा का निर्मल जल है
प्रेम की सदा विजय होगी

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कविता, रंडी कहोगे मुझे

       नमस्कार , आज कि मेरी जो कविता है वह हमारे समाज के उस तबके के पर आधारित है जिसे समाज में कोई स्थान नही दिया जाता या यू कहुं तो उन्हे समाज का हिस्सा ही नही माना जाता जबकी सच्चाई ये है कि यही लोग हमारे सभ्य समाज कहने के अनुरुप में खामियों का आईना हैं | ये कविता है देह व्यापार मे लिप्त लोगो की तथा समाज के उनके प्रति रवैये की | मैने कही पढा था की हमारे भारत में करिब 80 लाख से 1 करोड से ज्यादा देह व्यापार मे लिप्त लोग हैं एवं यह आंकडा कम होने के बजाय दिन दुनी रात अठगुनी बढ रहा है जो कि यकिनन सरकारी नाकामयाबी है | मैने इस कविता में कई पहलुओ को लिखने की कोशिश की है मै इसमे कितना कामयाब रहा ये तो आप ही कविता पढकर मुझे बता सकते हैं

रंडी कहोगे मुझे

हां मै देह व्यापार करती हुं
तो क्या कहोगे मुझे ?
रंडी कहोगे
वेश्या कहोगे
तबायब कहोगे
पतुरिया कहोगे
प्रास्टीट्युड या सेक्स वर्कर कहोगे
बोलोना क्या कहोगे मुझे ?

पुछोगे नही मै रंडी कैसे बनी
कैसे करने लगी अपनी कोमल देह का सौदा
कैसे बेचने लगी अपनी चीखो को
कैसे पीने लगी अपनी आंशुओ को
कैसे धोने लगी आचल पर लगे खुन के दागों को
कैसे जश्न मनाने लगी सिने पर मिले जख्मों का
कैसे घोट पाई मै गला
अपने शुखी संसार के सपनों का
कैसे पी लेली हुं जमाने भर कि जील्लत ताने गालीया
मै तम्हारी सभ्य समाज के सिने मे पालने वाली जलन हुं
इस दुनियां के बनाए नियमों से आजाद
तिरस्कार कि गली में रहने वाली घुटन हुं
हां मै बद्चलन हुं
जिसे तुमने बनाया है

याद है तुम्हे
जब पेट की आग जलाती थी
जब मै तुम्हारे पास काम गांगने आती थी
तब तुम मेरी काबिलीयत नही मेरे सिने के उभार देखते थे
कैसे लचकती है मेरी कमर बार बार देखते थे
तो लो मै अब दिखाने लगी हुं
मुझे जन्म देने वाले तुम तो मेरे पिता थे
फिर मात्र कुछ नोंटो के लिए क्यो बेच दिया तुमने मुझे
मै तो यहां बोरे मे कैद लायी गयी थी
तब से कौन आया है यहां मेरी सुध लेने
मै तो शादी के बाद अपने पति को खा गई थी
यही कहा था समाज ने मुझे
जलिल करके ससुराल से निकाली गई थी
ऐसी लाखों कहानीयां है मेरी
बोलो कितनी सुनाउ तुम्हे
कहा कहा के लगे जख्म दिखाउं तुम्हे

आज जो तुम मुझ पर उंगली उठा रहे हो
ये तुम किसे निचा दिखा रहे हो
याद है वो रात जब तुम शराब के नशे मे गुम थे
मेरे जिस्म के पहले खरिदार तो तुम थे
सच सच बोल दुं क्या वो बात
मै नही गई थी तुम्हारा दरबजा खटखटाने
तुम हि आए थे मेरे पास
मुझे गाली देकर तुम किस गफलत में गुम हो
मेरी बर्बादी के जिम्मेदार तुम हो
तुम जरुरत हो इस बाजार की
तुम्हे जरुरत है इस बाजार की
और मै बाजारु हुं

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      इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

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