नमस्कार , कोरोना महामारी के इस काल में हम सब ने कई अनुभव पाए जैसे कोरोना बीमारी का दर्द , कही हो न जाए इसका डर , अपनों को खोने का गम , घरों में कैद रहने की घुटन आदी | इन्ही एहसासों को मैने एक कविता में लिखने की कोशिश की है और मुझे यह आपको बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है की मेरी इस कविता को साहित्यपीडिया ने अपने साझा कविता संग्रह 'कोरोना' में प्रकाशित किया है | मेरी यह कविता आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार अवश्य बताइएगा |
'कोरोना' तुझे हाय लगेगी मेरी
मैं कई महीनों से कैद हूँ घर में
बस तेरे डर से
अनलाँक नही कर पा रहा हूँ खुद को
बस तेरे डर से
दूर रहना बस तू सदा ही कोरोने
मेरे प्यारे घर से
नही तो सुनले वर्ना
‘कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी
घमंड छोड़कर सच को देख
तूने किए हैं पाप अनेक
अपने अंजाम को पाएगा तू
एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा तू
अब जो एक भी जीवन छीना तूने
तो कान खोलकर सुनले वर्ना
कोरोना’ तुझे हाय लगेगी मेरी
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इस कविता को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
सायिक और सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार सर
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