सोमवार, 25 जुलाई 2022

ग़ज़ल , खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे

      नमस्कार , कुछ दिनों पहले मैने ये ग़ज़ल लिखी थी पर कुछ संकोच में था इसलिए आपके समक्ष हाजिर नही कर रहा था पर आज हिम्मत करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं 


खुद में ही मस्त रहोगे तो घमंडी हो जाओगे 

बेतुके बेबुनियाद और पाखंडी हो जाओगे 


वो माहौल है सत्ता विरोध का की क्या कहने 

तुम सच बोल दो गे तो संघी हो जाओगे 


मई की गर्मी जैसे भले हों हौसले तुम्हारे 

सरकारी फाइलों के जाल में फंसकर ठंडी हो जाओगे 


आम आदमी तो आम तक नही खरीद सकता 

आजकल मंडी में जाओगे तो मंडी हो जाओगे 


या सब चुप हैं या हूआं हूआं कर रहें हैं 

तनहा तुम भी चुप रहे तो शिखंडी हो जाओगे 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

ग़ज़ल , दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर

      नमस्कार , आज मैने ये ग़ज़ल लिखी है जिसे मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं इस यकीन पर की आपको अच्छी लगेगी और आपका प्यार इसे मिलेगा |


दाद दीजिए जनाब सरकारी विकास पर 

56 भोग तैयार रखें हैं मंत्री निवास पर 


तय करना है आवाम का गला कितना काटा जाए

पार्टी मीटिंग रखी गयी है अध्यक्ष निवास पर 


अब बस बोतल खुलने की देर है फिर रामराज्य आएगा 

लोकतंत्र लिखा हुआ है हरेक गिलास पर 


ज्यादा से ज्यादा क्या होगा कोई भूख से मर जाएगा

इससे मातम थोड़ी ना मनेगा विधायक आवास पर 


जो बस फाइलों में दिखता है हकिकत में नही 

साहेब तरस आता है मुझे आपके ऐसे विकास पर 


बोलने को और भी बहुत कुछ बोल सकता है तनहा 

चुप हो रहा है मगर आप की लिहाज पर 


     मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



मंगलवार, 19 जुलाई 2022

ग़ज़ल , वो जादूगर है पल में खजाना बना दे

      नमस्कार , 26 जून 2022 को मैने ये ग़ज़ल लिखी थी जिसे मैने एक पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भेजा था मगर किसी कारण बस अब तक यह प्रकाशित नही हो सकी है इसलिए मैने यह निश्चय किया की पत्रिका में प्रकाशन का मोह छोड़कर मुझे इसे आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए | ग़ज़ल का आनंद लें 


वो जादूगर है पल में खजाना बना दे 

नुमाइश ऐसी कि बस दिवाना बना दे 


वो बस बातें बना रहा है अच्छी-अच्छी 

उससे कहो मेरे धर का खाना बना दे 


अमीरी दिखाने को महल बना लिया 

ये नही की एकनया दवाखाना बना दे 


कमाल ये नही है कमाल की बात है 

बेकारों को कमाल ये जमाना बना दे 


काले बादल दिख रहे हैं आसमान में 

वो फिर बरसात का न बहाना बना दे 


फसल , धर , बाढ़ सब का बनता है 

तनहा दिल टूटने का हर्जाना बना दे 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

ग़ज़ल , थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है

 नमस्कार , एक नयी ग़ज़ल के कुछ शेर यू देखें 


थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है 

नदियों की पीर से किनारा टूटता है 


जो-जो झूठ न बोल पाए चुप रहे 

सच बोलने से भाईचारा टूटता है 


कतार में खड़े हैं दुआएं मांगने को

खबर है आज की रात तारा टूटता है 


तुम क्यों परेशॉ हो इस खामोशी से 

हादसों से यकीन तो हमारा टूटता है 


कच्च मकान और मुहब्बत में यकी

तनहा बरसात में सारा टूटता है 


   मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |



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