शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

हजल, ज्यादा दिन थोड़ी हुए

   नमस्कार ,  हजल गजल का ही हास्यात्मक स्वरुप है |  कल सुबह एक हजल न्यू हुई के

हजल, ज्यादा दिन थोड़ी हुए


उस हसीना से आंख मिलाओ , ज्यादा दिन थोड़ी हुए
उसके भाइयों से मार खाए , ज्यादा दिन थोड़ी हूए

मेरी महबूबा बहुत कम खर्चीली है
उसे तीन लाख का शौपिंग कराएं , ज्यादा दिन थोड़ी हुए

नेताजी वापस आते ही चुनाव की तैयारियों में लग गए
तिहाड़ जेल से छुटकार आए , ज्यादा दिन थोड़ी हुए

एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन मुझसे बस एक बार मिलना चाहता है
मुझे उसका पर्श चुराए , ज्यादा दिन थोड़ी हूए

दुनिया को शुन्य मैं ने दिया है
अभी मुझे आगरा से भागकर आए , ज्यादा दिन थोड़ी हुए

       मेरी हजल के रूप में एक और छोटी सी यह कोशिस आपको कैसी लगी है मुझे अपने कमेंट के जरिए जरुर बताइएगा | अगर अपनी रचना को प्रदर्शित करने में मुझसे शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो तहे दिल से माफी चाहूंगा |  एक नई रचना के साथ मैं जल्द ही आपसे रूबरू होऊंगा | तब तक के लिए अपना ख्याल रखें  अपने चाहने वालों का ख्याल रखें | मेरी इस रचना को पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया | नमस्कार |

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