बुधवार, 7 अप्रैल 2021

ग़ज़ल , मेरे गम , मेरे जख्म या मेरी दवा चाहते हो

        नमस्कार , मेरी ये ग़ज़ल जिसका विषय मोहब्बत है विधा ग़ज़ल है  मेरी ये रचना संगम सवेरा के मासिक ई पत्रिका मे प्रकाशित हुई है | पर उसमें एक शेर जो पांचवें क्रमांक का पर है प्रकाशित नही की गई है | आप इस पुरी ग़ज़ल को पढ़ीए और अपनी राय दीजिए | 

मेरे गम , मेरे जख्म  या  मेरी दवा चाहते हो 

एक बार बता तो दो  की तुम क्या चाहते हो 


अब इनके चहचहाने पर भी तुम्हें एतराज है 

तो क्या तुम परिन्दों तक को बेजुबा चाहते हो 


अब हर कोई तुम्हारी मोहब्बत की दुहाई देता है 

सुना  है  के  तुम  मुझे  बेइंतिहा  चाहते  हो 


मुसलसल  मन्नतें  करते हो  आजकल  तुम 

तुम  क्या  मुझे  ही  हर  मर्तबा  चाहते  हो 


फासले भी घटने नही देते नजदीकीयां भी बढ़ने नही देते 

क्या तुम जुलम भी मुझपर तयशुदा चाहते हो 


एक बस तुम्हारा दिल ही तनहा नही है तनहा 

किसी  को  तो  तुम भी  बेपनाह  चाहते हो 

       मेरी ये ग़ज़ल आपको कैसी लगी मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

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