शनिवार, 17 मार्च 2018

मुक्तक , मोहब्बत में दीवाना हूं

   आज मै आप के सामने मेरी कुछ दिनों पहले लिखी श्रृंगार रस की चार लाइनों की कुछ कवितएं रख रहा हूँ | इन कविताओं को मुक्तक भी कहा जाता है | आशा है के आप इन्हें सराहें

मुक्तक , मोहब्बत में दीवाना हूं

                            (1)
न समझो तो फसाना हूं
न मानो तो बहाना हूं
क्याे मानति नही हो जब जनती हो सब
मोहब्बत में दीवाना हूं  मोहब्बत का दीवाना हूं

                           (2)
दिल में दर्द है जितना
रगों में मर्ज है जितना
मै तुम्हारे प्यार कि बातो में ऐसे खोगया हूं कि
समंदर में जितना पानी हिमालय सर्द है जितना

                            (3)
न समझो तो होती है कहनी में गलतफहमी
उलझन हो तो होती है आसानी में गलतफहमी
उन्हें तुमसे प्यार है या दोस्ती कभी पूछ कर देखो
क्योंकि अक्सर ही होती है जवानी में गलतफहमी

    मेरे यह मुक्तक आप को कैसी लगी मुझे अपने कमेंट्र के जरिये जरूर बताइएगा |
अगर मेरे विचारों को लिखते वक्त मुझसे  शब्दों में कोई त्रुटि हो गई हो तो मैं उसके लिए बेहद क्षमा प्रार्थी हूं |  नमस्कार |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Trending Posts