मुक्तक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मुक्तक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

बुधवार, 4 जनवरी 2023

मुक्तक , करोड़ों की दुआएं

      नमस्कार , एक नया मुक्तक हुआ है समात फर्माएं मैं इसे बीना किसी भूमिका के पेश कर रहा हूं मुझे यकीन है आपके दिल तक पहुंचेगा |


-----

तेरे पास नफरत है बददुआएं हैं मुझे देने के लिए 

मेरे पास अनमोल वफाएं हैं तुझे देने के लिए 

ये दुनिया मुझे बहुत गरीब समझती है लेकिन 

मेरे मां के पास करोड़ों की दुआएं हैं मुझे देने के लिए 

-----


     मेरा ये मुक्तक आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |


मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

मुक्तक , नवरात्रि

     नमस्कार 🙏आपको श्री राम नवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ | विषय - नवरात्रि पर विधा - मुक्तक में दिनांक - 17/4/2021 दिन - शनिवार को साहित्य बोध के फेसबुक पटल पर मैने ये मुक्तक लिखा था जिसे पटल के द्वारा सम्मानित किया गया है | आप भी रचना पढ़े व बताएं की कैसी रही | 

रचना - 


अपनी शक्ति सब को फिर दिखाओ मां 

अपने भक्तों को इस संकट से बचाओ मां 

कोरोनारुपी असुर पाप लेकर आया है 

इस असुर का भी सर्वनाश करने आओ मां 

    मेरा ये मुक्तक आपको कैसा लगा मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

रविवार, 11 अप्रैल 2021

दो मुक्तक , फिर वही बात

     नमस्कार , काव्य कलश पत्रिका परिवार के साप्ताहिक प्रतियोगिता आयोजन शब्द सुगंध क्रमांक -40 में विषय-फिर वही बात में विधा-मुक्तक में दिनांक-19/02/2021 , दिन-शुक्रवार को मैने अपने लिखे दो मुक्तक प्रतियोगिता में सम्मिलित किए थे जिन्हें प्रतियोगिता के संपादकों के द्वारा सम्मानित किया गया है 

रचना-


ये सभी नखरे आज कर रही है

चल ना इशारे ये रात कर रही है

मैं कह तो रहा हूँ हां मोहब्बत है

यार तू फिर वही बात कर रही है


वो थोडा़ बहुत घबराई है

फिर तब जरा सा शर्माई है

क्या अदाकारी है रुठने की

फिर वही बात नजरआई है

     मेरे ये मुक्तक आपको कैसे लगे मुझे अपने विचार कमेन्ट करके जरूर बताइएगा | मै जल्द ही फिर आपके समक्ष वापस आउंगा तब तक साहित्यमठ पढ़ते रहिए अपना और अपनों का बहुत ख्याल रखिए , नमस्कार |

शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

मुक्तक , चार र चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 19

      नमस्कार , पिछले एक महिने के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मैं अपके समक्ष प्रस्तुत करने कि इजाजत चाहूँगा , मुक्तक देखें के

हर सबूत को हर सत्य को तोड़ मरोड़ करने पर आमादा हैं 

वो पत्रकारिता के नाम पर कातिलों से गठजोड़ करने पर आमादा हैं

आतंकियों और कातिलों को मासूम बनाकर tv चैनलों पर दिखाने वाले

ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा हैं


बिना आग लगे कहीं से यू ही धूआं निकलता नही है

झुठ के तेल के बिना सच का चिराग जलता नही है

तुम सच कह रहे हो भारत तुम पर भारत यकीन करता है

किसी के काला कहने से सुरज का सच बदलता नही है


मोहब्बत का ठोंग रचा जाता है वफा का नाम लेकर

वो तुमसे झुठ बोलता है तुम्हारे खुदा का नाम लेकर

तुम भी तीसरी बार मोहब्बत करो दिल साफ करके

और इसकी शुरुआत करों पहली दो बेवफा का नाम लेकर


पाप को तेरी ललकार सुनी है आज पुरी दुनियां ने

सत्य की सच्ची पुकार सुनी है आज पुरी दुनियां ने

अत्याचारी दंभ भरेगा कब तक अपनी झुठी सत्ता का

हिन्द के शेरनी कि दहाड़ सुनी है आज पुरी दुनियां ने


'चौकिदार चोर है' के खुब नारे लगे थे

चुनाव जीतने इसी के सहारे लगे थे

कोई इन्हें न झुठा कहो न कहो फरेबी

पास होने के चक्कर में पप्पु हमारे लगे थे


हर पीडित बेटी के साथ इंसाफ होना चाहिए

योगी तेरे राज से ये आगाज होना चाहिए

बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

इस महामारी का जड़ से इलाज होना चाहिए


स्वार्थ के लिए इस धरा को नर्क मत करो

सियासत के लिए दिखावे का वर्क मत करो

एक जगह खुब होहल्ला दुसरी जगह सन्नाटा

नेताजी सुनोंं बेटी बेटी में तो फर्क मत करो

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

मुक्तक , बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

      नमस्कार , उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले से दिल दहला देने वाली #कथित सामुहिक बलात्कार की घटना देश में छायी हुई है , कुछ लोग इसे निर्थया 2 कह रहे है और कहा भी जाना चाहिए क्योंकि खबरों के मुताबिक उस बहन के साथ बर्बरता ही इतनी कि गई थी तभी तो वह पंन्द्रह दिन वह दर्द सहती रही और आखिर में दर्द नही सह पाई और इस दुनियां से चल बसी | खबर है कि चारों आरोपियों को पकड़ लिया गया है और कडी़ कार्यवाही करने का आश्वासन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के द्वारा दिया जा रहा है | आथी रात को परिवार की मर्जी के बीना बेटी की लाश जलाने को लेकर पुलिस कि भुमिका संदेह के घेरे में है | मेरी यही मांग और प्रार्थना माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी से है जिसे मैने इन चार लाइनों में लिखा है


हर पीडित बेटी के साथ इंसाफ होना चाहिए

योगी तेरे राज से ये आगाज होना चाहिए

बलात्कार आज समाज में फैली महामारी है

इस महामारी का जड़ से इलाज होना चाहिए


     मगर इस बीच इसे लेकर जैसा हिंन्दुस्तान में आम तौर पर चुनाव के वक्त पर होता है सियासत भी खुब हो रही है | कुछ लोग इस सामाजिक अपराथ को दलित बनाम स्वर्ण बनाने पर लगे है , कुछ नेता मौकाफरस्ती कर रहे हैं , बलात्कार की खबरे अन्य राज्यों से भी आरही है पर सलेक्टिव होकर केवल उत्तर प्रदेश के हाथरस ही जा रहे है पीडित परिवार से मिलने मगर अन्य जगहों पर नही | ऐसे नेताओं के लिए भी मैने चार लाइनों में यू अपनी बात कहने कि कोशिश की है 


स्वार्थ के लिए इस धरा को नर्क मत करो

सियासत के लिए दिखावे का वर्क मत करो

एक जगह खुब होहल्ला दुसरी जगह सन्नाटा

नेताजी सुनोंं बेटी बेटी में तो फर्क मत करो


     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


शनिवार, 29 अगस्त 2020

मुक्तक , ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा है

           नमस्कार , पिछले कुछ वर्षो से हम देख रहें है कि कुछ टी वी चैनल आतंकवादीयों अलगाववादीयों और अपराधियों को पत्रकारिता के नाम पर अपना मंच प्रदान करते आए हैं और न शिर्फ मंच प्रदान करते हैं बल्कि बाकायदा उनका महिमामंडन भी करते है राष्ट की जन भावना के साथ खिलवाड़ करते आए हैं तथा अपराधियों के अपराथ को सामान्यीकृत करने का प्रयास करते आए हैं और इसका हालिया उदाहरण सुसांत सिंह राजपुत के केस में देखने को मिला जब एक तथाकथीत बडे़ चैनल ने इस केस कि मुख्य आरोपी को बैठाकर हास्यास्पद सवाल पुछे और मुख्य आरोपी को पुरा समय दिया जिससे वह पिडी़त पर ही संगीन आरोप लगा सके और उसका चरित्र हनन कर सके और न सिर्फ पिडी़त बल्की उसके पुरे परीवार पर आरोप लगा सके और उनका भी चरित्र हनन कर सके | यह बहुत दुर्भाग्यपुर्ण बात है |

      इसलिए अब समय आ गया है कि इन टी बी चैनलों का पुर्णतय बहिस्कार करके इन्हे सत्य से और राष्ट की जन भावना से अवगत कराया जाए | इसी ख्याल पर मैने एक मुक्तक लिखा है 

हर सबूत को हर सत्य को तोड़ मरोड़ करने पर आमादा हैं 

वो पत्रकारिता के नाम पर कातिलों से गठजोड़ करने पर आमादा हैं

आतंकियों और कातिलों को मासूम बनाकर tv चैनलों पर दिखाने वाले

ये हमारी इंसाफ की लडा़ई को कमजोर करने पर आमादा हैं

     जिस तरह से घने अंधेरे को रोशनी की एक किरण हरा देती है उस तरह से टीवी पत्रकारिता में भी कुछ चैनल ऐसे है जो रोशनी की वही किरण हैं और अगले मुक्तक में मैने एक चैनल का नाम भी लिखा है यदि आप समझ जाएं तो कमेंट में लिखिएगा

बिना आग लगे कहीं से यू ही धूआं निकलता नही है

झुठ के तेल के बिना सच का चिराग जलता नही है

तुम सच कह रहे हो 'भारत' तुम पर भारत यकीन करता है

किसी के काला कहने से सुरज का सच बदलता नही है

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


बुधवार, 19 अगस्त 2020

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 18


     नमस्कार , पिछले दो तीन हप्तों के दौरान मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख रख रहा हुं 

कोई तुझे अपना बच्चा कहता है

कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है

जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग

अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है


सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने

हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने

तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया

जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने


इन आंखों में अश्क यूही नही आता

जिसका इंतजार है वोही नही आता

चांद की जगह सुरज नही ले सकता

यहां किसी कि तरह कोई नही आता


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


शहीदों वाला इनका आगाज होना चाहिए

अंदाज इनका भगत आजाद होना चाहिए

भले गांधी रहें मन से सरदार रहें तन से

पर हर बच्चे के दिल में सुभाष होना चाहिए


अपने जमीन की हिफाजत भी नहीं की गई तुमसे

सच की ईमान की सियासत भी नहीं की गई तुमसे

दोस्त कहकर मौन रहकर बौने को राजा बना दिया

इसे निरंकुशता कहें या कायरता बगावत भी नहीं की गई तुमसे

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

  इन मुक्तकों लिते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |


गुरुवार, 13 अगस्त 2020

डॉ राहत इंदौरी साहब , मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है

       नमस्कार , मुंतजिर हुं कि सितारों की जरा सी आंख लगे , चांद को छतपे बुला लुंगा इशारा करके | राहत इंदौरी का sab tv  पर वाह वाह क्या बात है के शो में सुना मेरा पहला यही वो शेर है जिसने मुझे उस दौर में राहत साहब का दिवाना बना दिया था और मेरी दिवानगी का आलम यह था कि जब मैं शो देखता था तो पेन और कॉपी लेकर बैठता था  राहत साहब को तभी से मैं लगातार पढ़ता सुनता और देखता आ रहा हुं और यदि मैं सच कहुं तो आज जिस तरह भी टूटी फुटी गजल या शेर कह पाता हुं तो उसमें राहत साहब का बडा़ योगदान है क्योंकी उन्हीं की शायरी को सुन सुन कर मुझे शायरी से मोहब्बत हो गयी


       राहत साहब के जाने का सबसे बडा़ नुकसान यह हुआ है कि अब आने वाली पीढि़यां हिंदी उर्दु शायरी के इस अजिम जादुगर शायर का लाइव नही सुन पाएंगी मगर मुझे यहा थोडा़ सुकून है कि कम से कम एक बार मैने राहत साहब को लाइव सुना है  मैं चाहता था कि जीवन में कम से कम एक बार उनसे मिलुं और उन्हें अपनी गजलें और शेर सुनाउं और उनसे कुछ दाद लूं मगर अब मेरा ये ख्वाब महज एक ख्वाब बनकर रह गया है इसलिए मैने शेर में भी कहा है कि मेरा तो निजी नुकसान हुआ है |


दुनिया के लिए एक शख्स हलाकान हुआ है

मगर मेरा तो निजी नुकसान हुआ है


      अब जब राहत साहब हमारे बिच नही रहे तो उनकी तमाम ग़जलें तमाम शेर हमें उनके हमारे बीच होने का आभास कराते रहेंगें मेरी प्रभु श्री राम से प्रर्थना हैं कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें ओम शांति 🙏


     राहत साहब की शायरी को लेकर लोगों का अक्सर मिला जुला रुप रहा | जब से मैने उन्हें पढ़ना सुनना शुरु किया था तब से मैने यह महसुस किया की उनकी शायरी को लेकर अक्सर ही कुछ लोग नाराज तो कुछ लोग ताराज रहें | उनके कुछ शेरों को लेकर उनसे असहमत था और हमेशा मुझे यह लगता रहा कि राहत साहब ने ये क्यों लिखा और यही तो एक अच्छे पाठक की निशानि है अगर वह रचनाकार की तारिफ कर सकता है तो आलोचना भी कर सकता है | इसी को मन में रखकर मैने एक मुक्तक यू कहा है


अब हो गया मेरे लिए सपना वो

मानता ही नही था मेरा कहना वो

तो क्या हुआ तमाम गिले सिकवे थे 

मगर था तो मेरा अपना वो


      इन विचारों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

मुक्तक , जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग


        सुशांत सिंह राजपुत कि आत्महत्या की खबर जब मैने सुनी थी तो मैं काफी भावुक हो गया था और मैने अपने इंस्टाग्राम पर यह पोस्ट लिखी थी -

आप को मैं निजी तौर पर नही जानता था मगर टीवी पर आपको तब से जानता हुं जब आप पवित्र रिश्ता के मानव बने थे |
मुझे याद है कि #zeetv पर प्रसारीत होने वाला यह धारावाहीक हमारे जीवन का हिस्सा हो गया था हम सब कई घंटे बैठकर इस धारावाहीक का इंतजार करते थे और पवित्र रिश्ता खत्म होने के बाद भी आप हमारे लिए मानव ही रहे धोनी अन टोल्ड स्टोरी के बारे में भी हम बात करते हुए यही कहते थे की मानव धोनी बना है
आप के इस तरह से चले जाने का दुख हमारे लिए बहोत ही असहनीय है प्रभु श्री राम से मेरी करबद्ध प्रार्थना है की आपकी पुण्य आत्मा को अपने चरणों मे स्थान दें #sushantsinghrajput #rip 🙏

      जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे कई तथ्य और कल्पनाएं सामने आ रही हैं कुछ लोगों का मानना है सुशांत सिंह राजपुत ने आत्महत्या कि है जैसा की खबरों में बताया गया मगर कुछ प्रसंसकों का मानना है जिनमें मै भी हुं कि उनकी हत्या हुंई है बहरहाल जो भी सच हो वो सब के सामने आना चाहिए | वैसे सुशांत के केस की जांच मुंबई पुलिस कर रही है मगर सुशांत के बहुत प्रसंसकों की मांग है की इस केस की जांच CBI के द्वारा होनी चाहिए | हमे उम्मीद है कि सुशांत सिंह राजपुत को न्याय मिलेगा |

        बिते एक महीने मे मैने सुशांत को केन्द्र में रखकर दो मुक्तक लिखें है और इन मुक्तकों को मैने अपने विभिन्न सोशल मिडिया चैनलों पर पोस्ट भी किया है जिन्हे आप लोगों ने बहुत पसंद भी किया है पर आज मै इन्हें साहित्यमठ पर प्रकाशित कर रहा हुं , मुझे यकिन है की आप भी इन्हें सराहेंगे

कोई तुझे अपना बच्चा कहता है
कोई तुझे बहोत सच्चा कहता है
जब तू था भरा बुरा कहते रहे लोग
अब हर कोई बडा़ अच्छा कहता है

इन आंखों में अश्क यूही नही आता
जिसका इंतजार है वोही नही आता
चांद की जगह सुरज नही ले सकता
यहां किसी कि तरह कोई नही आता

        मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

शनिवार, 4 जुलाई 2020

मुक्तक , हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने


  नमस्कार , 15 जुन की रात भारत और चीन की सीमा पर जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) कहा जाता है कि गलवान घाटी में जिस तरह से चीनी सैनिकों ने कायरता पुर्वक हमारे भारतीय सैनिको पर धोखे से हमला किया वह बहोत ही निंदनीय है और हमारी भारतीय सेना के जवानों ने जिस बहादुरी से चीनी सैनिकों का सामना किया और विभिन्न मिडिया रिपोर्ट्स के आधार पर 50 के करीब चीनी सैनिक मार गिराए यह दिखाता है कि भारत की सेना कि बहादुरी का मुकाबला दुनियां की कोई भी सेना नही कर पाएगी | इस दोनों सेनाओं की झड़प में हमारी भारतीय सेना के एक अधिकारी सहीत 20 भारतीय जवान भी शहीद हुए हैं और पुरा देश उनकी वीरगती और सर्वोच्च बलिदान को नमन करता है |

        इस पुरे घटना क्रम पर मैने तीन मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हुं उम्मीद है आपको प्रसंद आएंगे

शहीदों के दम पर कायम हमारी आजादी है
भारत के दुश्मनों अब तय तुम्हारी बर्बादी है
मलाल ये के दुश्मन भी दो कौंडी़ के मिले हैं हमें
एक कि नस्ल जेहादी है दुसरे की धोखेबाजी है


कहते हैं रोने से शहीदों की शहादत का मान घटता है
मातृभूमि पर बलिदान होकर ही जीवन का मान बढ़ता है
जिसके घर का चिराग बुझा है अंधेरा तो वही जानेगा
बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर मां का कलेजा फटता है


सारे समझौतें को संबंधों को सीमाओं को जो तोडा़ तुमने
हमे निहत्था जान झुंड बना जो घात लगाकर घेरा तुमने
तबाही का बर्बादी का और मौत का तांडव देख लिया
जो हल्दी घाटी के वीरों को गलवान घाटी पर छेडा़ तुमने

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आए है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

मुक्तक , चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 17


  नमस्कार , पिछले कुछ तिन चार हप्ते में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मैं आपके संज्ञान में लाना चाहुंगा यदि मेरे यह मुक्तक आपको पसंद आएं तो मुझे अपने कमेन्ट्स के माध्यम से जरुर अवगत कराए

बाकी है मेरी शान अपने बुजुर्गों पर
मेरी हरेक पहचान अपने बुजुर्गों पर
हजारों वर्ष जुम्ह सहकर भी पंथ नही बदला
ये है मुझे गुमान अपने बुजुर्गों पर


हिंन्द के हिंन्दुस्तानीयों के खातमें की हसरत क्यों
तुमको जय श्री राम के नाम से इतनी दहशत क्यों
अपने आलीशान घरों में कुत्ते पालने बालों
तुम लोगों को गाय से इतनी नफरत क्यों


ये तो है के बहोत कम लिखता हुं
मगर जितना भी लिखता हुं गम लिखता हुं
तनहा होने का ये असर हुआ है मुझ पर
कि अब मैं की जगह हम लिखता हुं


शहीदों के दम पर कायम हमारी आजादी है
भारत के दुश्मनों अब तय तुम्हारी बर्बादी है
मलाल ये के दुश्मन भी दो कौंडी़ के मिले हैं हमें
एक कि नस्ल जेहादी है दुसरे की धोखेबाजी है


कहते हैं रोने से शहीदों की शहादत का मान घटता है
मातृभूमि पर बलिदान होकर ही जीवन का मान बढ़ता है
जिसके घर का चिराग बुझा है अंधेरा तो वही जानेगा
बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर मां का कलेजा फटता है

    मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

शनिवार, 23 मई 2020

मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 16

      नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

धुतकारते क्यो हैं आने जाने वाले
क्या चाहते हैं ये जमाने वाले
वो दिल दुखाएं और हम रोए भी नही
क्या चाहते हैं ये चाहने वाले


बिगडी़ दोस्ती और खराब कर लेते हैं
आ पुराना हिसाब किताब कर लेते हैं
मेरे जयाति ताल्लुकात नही हैं उनसे
हां कहीं मिले तो अदबो आदाब कर लेले हैं


डर की सल्तनत को सरकार नही मानेगा
किसी गैर का अपनी रुह पर अधिकार नही मानेगा
हमारे हौसले के जद में आती है पुरी दुनियां
हिन्दूस्तान कोरोना से हार नही मानेगा


उसकी खुशीयां अंजाने के साथ भग गई
घर कि इज्जत जमाने के साथ भग गई
खबर छपी थी कल के अखबार में
फलाने कि बीबी फलाने के साथ भग गई


वाक्ये गिनने पे आया तो पैंतिश छत्तीश निकले
जिन्हे खुदा समझता था मै वो इबलीश निकले
कितनी गलतफहमीयां होती हैं हसीनाओं को लेकर
उनके एक दो आशिक नही पुरे इक्कीश निकले

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

मुक्तक . चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 15

       नमस्कार , पिछले एक महीने में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हें मैं आपके साथ साझा कर रहा हुं

ये आधा गिलास अॉशु है जिसे शराब कहती है ये दुनियां
हम लोग हि तो सच कहते है हम्हीं को खराब कहती है ये दुनियां
सब कहते हैं जहा पड़ता है सब जलाकर राख कर देता है
यानि के मोहब्बत को तेजाब कहती है ये दुनियां


सपनों कि हिफाजत नही करता मै
यानि कि मोहब्बत में सियासत नही करता मै
मै जानता हुं तेरे विचार मु्क्तलिफ हैं मुझसे
मगर तेरी खिलाफत नही करता मै


पार्टी मालिक के दरबार में हमाली मत करो इमरान
झुठ बोलकर दुआओ से हाथ खाली मत करो इमरान
तुम्हारी हकिकत क्या है जान ही गया है पुरा भारत
बस यही मसवरा है इमान कि दलाली मत करो इमरान


जवानी पर लगी कालिख बन के रह जाओगे
मासुका नही मिली तो नाबालिग बन के रह जाओगे
ऐ खुदा तुझे मालिक कहती है ये दुनियां
इसी गुमा में रहे तो मालिक बन के रह जाओगे


दिल कि दूरीयें में तरक्की चाहता हुं मैं
दुश्मनी भी पक्की चाहता हुं मैं
थोडा़ और थोडा़ और नफरत कर मुझसे
बेवफाई मी सच्ची चाहता हुं मैं

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |
 

शनिवार, 14 मार्च 2020

कुछ मुक्तक

     नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

दुनियॉ लगी है बस पैमाने बनाने में
मै लगा हुं हथेलियों के दस्ताने बनाने में
एक स्कुल बनाने में जिन्दगी गुजर जाती है
एक माह भी नही लगते मयखाने बनाने में


मेरा दिल है भारत मेरा वतन मासाअल्लाह
मेरी जान इस पर कुर्वान मेरे चमन मासाअल्लाह
झुठ बोलकर यार मेरे हमवतनों को गुमराह न कर
तु तो माहिर है इसी में तेरा फन मासाअल्लाह


कभी सोचता हुं कि इतना चाहुं इतना चाहुं उसे
मगर और कितना चाहुं कितना चाहुं उसे
ये कैसी तिशनगी है कि समंदर पिकर भी नही मानती
प्यास बढती जाती है जितना चाहुं जितना चाहुं उसे


दुनियां ने मोहब्बत का दायरा लिख दिया
मैं उसका शायर और उसे शायरा लिख दिया
जितने में उसका आशिक एक शेर नही कह पया
उतनी देर में मैंने उस पर मुशायरा लिख दिया


तमाम पेंडो़ से परिंदे जुदा होगए यार
वो हंसते हुए मंजर कहां होगए यार
एक दौर में यहा महफिले सजा करती थी यारों कि
अब वो सारे दिन हवा होगए यार


वो मंजर कहां देखा था कहां देखा था मैने
मुझे याद नही खंजर कहां देखा था मैने
निकल रहे थे उसके आंख से इतने अॉशु
अब याद आया मुझे समंदर कहां देखा था मैने


शायर है झुठी गुफ्तगु भी खुशुशि कर रहा है
मुल्क को चाहनेवालों सच बोलों जरुरी कर रहा है
मेरे दोस्तों अब बारी आई है दोस्ती निभाले कि
क्योकि दुस्मन अपना काम बखुबी कर रहा है

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

सोमवार, 6 जनवरी 2020

मुक्तक , char char lineno me bate karunga aapse

      नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

दिल मानने को तैयार नही है
इसे दिमाग पर ऐतबार नही है
मैने एकतरफा मोहब्बत कि थी उससे
वो मेरी गुनहगार नही है


जहर को निवाला निवाला कह रहे हैं
बाल झड़ने को पांव का छाला कह रहे हैं
जिनके दामन पर हजारों दाग धब्बे हैं
वो दिल्ली में चिल्लाकर दूध को काला कह रहे हैं


ये तो नासमझी है मक्कारी है फरेबी है
सही और गलत बयानी में अंतर करीबी है
आज देश में कुत्ते पालने का मतलब अमीरी हो गई
और गाय पालने का मतलब गरीबी है


ठंड दे रही है सबको कितनी बेदना
सियासत में नही बची है कोई संवेदना
राहुल कि रजाई खिंचकर मोदी ने ये कहा
GST भरो पहले फिर रजाई ओढना


आओ अपने रहनुमाओ का सत्कार करते हैं
इन्हे फिर से दिखा दो कि कितना प्यार करते हैं
दो चार मौतें रोज होती हैं गहलोत ने कहा
हम इनकी सियासत को नमस्कार करते हैं

        मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

मुक्तक char char lineno me bate karunga aapse

     नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

तेरी अंतरआत्मा जानती है तेरा इमान जानता है
क्या सच है हिन्दू जानता है मुसलमान जानता है
क्यों लगी है आग तेरे सिने में नया कानुन बन जाने से
ये बात तो सारा का सारा हिन्दूस्तान जानता है


दिल तोडनेवाला रहम नही खाता
ऑशु नही पीता गम नही खाता
तेरा नया दिवाना बस चार दिनों का है
सच कहता हुं पर किसी कि कसम नही खाता


अफवाह फैलाकर डराया जा रहा है
वजिरेआजम को चोर बताया जा रहा है
जिसे जाली कहके देश ने दो बार नही लिया
वही जाली नोट फिर से चलाया जा रहा है


हार कि नही जीत की खबर आएगी
तिरगी का सिना चिरकर सहर आएगी
शेरनी तो हर हाल में शेरनी है चुहिया नही
साजिशों के हर जाल से निकल आएगी
 . char char lineno me bate karunga aapse

बुजुर्गों के बनाएं कुछ उसूल रोक रहे हैं
सही गलत हम हर पहलू पर सोच रहे हैं
जब से दहाड़ना बंद कर दिया है शेरों ने
तभी से जंगल में कुत्ते बहोत भोंक रहे हैं

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

मुक्तक . char char lineno me bate karnga aapse

     नमस्कार , इस महिने के मध्य में मैने कुछ मुक्तक लिखे हैं जिन्हे मै आपके दयार में हाजिर कर रहा हुं मुझे यकिन है कि मेरे ये मुक्तक आपको मुतासिर करेंगें |

मोहब्बत अबकी बार है नयी बात है यार
पहला पहला प्यार है नयी बात है यार
मै तो हर रोज करता ही था मगर इस बार उन्हे
मेरे आनलाइन होने का इंतजार है नयी बात है यार


मिजाजे आशिकाना समझ लेता
गर वो अंदाजे शायराना समझ लेता
क्यू तेरे पिछे पिछे चक्कर नही लगाया
गलत मुझको ये जमाना समझ लेता


मौतों को भी नफे नुक्सान में बांट लेती है
वोट के समीकरणों में काट छांट लेती है
राम राज्य के सपने दिखाएगी ये तुमको
याद रखना सियासत है थुककर चाट लेती है


अपने माली हालात के हकिकत कि सजावट नही करते
सिसकते है रोते हैं आशुओ कि लिखावट नही करते
जो लोग राष्ट को गाली देकर खुद को राष्टप्रेमी कहते है , ये देखो
ये लोग भुख से मर जाते है मगर मुल्क के खिलाफ वगावत नही करते


जो चुप हैं वो मुर्दें हैं जो बोल रहे हैं जिन्दा है
सारे कानुन लाचार हैं भारत माता शर्मिंदा हैं
आज के कुष्ण राम शर्म करो मेरी मौत पर
सारे दुशासन जिन्दा हैं सारे रावण जिन्दा है

    मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार | 

बुधवार, 20 नवंबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 14

     नमस्कार , पिछले बीते महीने भर में मैने कुछ मुक्तक लिखें हैं जिन्हे मै आप के दयार में हाजीर  कर रहा हूं मुझे यकिन है आपको ये मुक्तक यकिनन पसंद आएंगे

अमृत पीने की तमन्ना कौन नही करता
मौत से ज्यादा जीने की तमन्ना कोन नही करता
मेरा उसका वस्ल बहोत मुस्कील है मगर
चांद को छुने की तमन्ना कौन नही करता

इश्वर अल्लाह भगवान गीता बाइबल कुरान मुझमें हैं
सारे हिन्दुस्तान में हुं मै और सारा हिन्दुस्तान मुझमें है
एक तरफ हैं फूलों के खेत खलिहान और पर्वत पहाडियां है
एक तरफ समंदर और सारा रेगिस्तान मुझमें है

जाने क्या इश्क के खेल में क्या अच्छा या बुरा है
आओ जाने तुम्हे मोहब्बत के बारे में कितना पता है
कैसी चलन है वो तुम्हे उसके बारे में क्या पता है
तम्हे उसके बारे में मुझसे ज्यादा पता है

खुशीयां मेरे हिस्से में कम और बहोत ज्यादा गम आते हैं
दिल तो बहोत रोता है मगर आंख में आशु जरा कम आते हैं
मेरी तरफ उंग्ली करके सारे रहनुमाओं ने ये कहा
पहले तुम आगे चलो फिर पिछे पिछे हम आते हैं

वही है हयात की कहानी मगर किरदार बदलते रहते हैं
दुनिया एक किराए का घर है और किराएदार बदलते रहते हैं
कभी मोहब्बत कभी गम कभी खुशी कभी तन्हाई
दिल बीमार भी वही है बस आजार बदलते रहते हैं

मन की सारी सेटिंग डिस्टर्ब हो गयी
जीवन के प्रोग्राम की इंटरप्ट हो गयी
वायरस कि तरह घुस गई हो दिल की हार्डडिस्क मे
मोहब्बत की सारी फाइले करप्ट हो गयी

जहर नहीं बेचता चटपटा चूरमा बेचता हूं मैं
बच्चों के लिए मीठी गोली और खुरमा बेचता हूं मैं
उस मोहल्ले की सारी लड़कियां मेरा इंतजार करती है
नाक की नथनी कान की बाली आंखों के लिए सूरमा बेचता हूं मैं

      मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तकों को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे 13

      नमस्कार , सितंबर महिने और अब तक में मैने ये कुछ नए मुक्तक लिखें हैं जो मेरी पिछली चली आ रही श्रंखला 'चार चार लाइनों में बातें करुंगा आपसे' का हिस्सा है | मैं ये चाहुंगा के आप इन मुक्तो को भी पढे जिस तरह से आपने मेरे सभी पुराने मुक्तकों को पढा है |

भले ही हर बदन पर खादी नही है
यहा हर कोई उदारवादी नही है
हर व्यक्ति हर वर्ग हर जाती एक समान है
चलो सुकून है आज का समाज मनुवादी नही है

रेगिस्तान के खेतों में चूडी खनकेगी
हर खलिहान के माथे पर बिंदी चमकेगी
ये बता दो पत्थर की इमारतों को
सब्ज जमीन पर जिंदगी पनपेगी

रेट के टीलों को सजल कहने वाले
खेत के खरपतवारों को फसल कहने वाले
मोहब्बत का एक मिसरा नही लगा पाए
चलो निकलो ,बड़े आए हैं गजल कहने वाले

उजागर है दुनिया में सच छिपा नही है
ये बता कि आज तुझसे कौन खफा नहीं है
ये जो खुद को मसीहा कहता है पड़ोसियों का
ये शख्स तो अपनों का सगा नही है

मोहब्बत अबकी बार है , नई बात है यार
पहला-पहला प्यार है , नई बात है यार
मैं तो हर रोज करता ही था मगर इस बाल
उसे मेरे ऑनलाइन आने का इंतजार है , नई बात है यार

हर मदहोश शख्स में बस शराबी देखते हैं
ये क्या लोग हैं के बस खराबी देखते हैं
उन यारों का याराना छुट गया यार वरना
मेरे यार तो हर मौसम में ख्वाब गुलाबी देखते हैं

      मेरी ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इस मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

रविवार, 8 सितंबर 2019

मुक्तक, चार चार लाइनों में बातें करूंगा आपसे 12

     नमस्कार, पिछले एक महीने के दरमिया में लिखे गए अपने कुछ मुक्तक आपकी महफिल में रख रहा हूँ मुझे उम्मीद है कि आपको मेरे यह मुक्तक अच्छे लगेंगे

अब के तैयार हो के आया हूं नुमाइश में तेरी
देखना हैं कितनी आग है ख्वाइश में तेरी
देखना कोई आसान सा इंतहान न ले ले ना
मैं तो जान भी देने आया हूं आज़माइश में तेरी

तिरयात हर जहर का नही होता
एक मुसाफिर हर सफर का नही होता
कश्मीर हिंदुस्तान का हिस्सा ही नहीं मस्तक है
जीते जी धड कभी सर से अलग नही होता

ये खुदा की लाठी का असर लगता है
तुम्हार फैलाया हुआ ही जहर लगता है
ये जो उड़ी है तुम्हारे चेहरे की हवाईया
ये तो मेरी शख्सियत का असर लगता है

आ अब आशुओ से कहें अब ये बहेंगे नही
वो तो गैर हैं तुझसे सच्ची बात कहेंगे नही
आज हम दोनों तो लड़ते रहेंगे सरहदों के लिए
कल ये सरहदें रहेंगी हम दोनों तो रहेंगे नही


उसका यही बचकाना रवैया तो हैरान कर रहा है
जिसे जंग से बचना चाहिए वही ऐलान कर रहा है
खुद उसके घर में पीने के लिए पानी नही है
हमे समंदर दिखा दिखा के परेशान कर रहा है

इस तरह से कहा कोई कहानी मुकम्मल होती है
दो जिस्म मिलाकर एक जवानी मुकम्मल होती है
जब जरा जरा सी लहरे ज्यादा लहराती हैं
दो नदियों के संगम से एक रवानी मुकम्मल होती है

     मेरे ये मुक्तक अगर अपको पसंद आई है तो आप मेरे ब्लॉग को फॉलो करें और अब आप अपनी राय बीना अपना जीमेल या जीप्लप अकाउंट उपयोग किए भी बेनामी के रूप में कमेंट्र कर सकते हैं | आप मेरे ब्लॉग को ईमेल के द्वारा भी फॉलो कर सकते हैं |

      इन मुक्तक को लिखते वक्त अगर शब्दो में या टाइपिंग में मुझसे कोई गलती हो गई हो तो उसके लिए मै बेहद माफी चाहूंगा | मै जल्दी ही एक नई रचना आपके सम्मुख प्रस्तुत करूंगा | तब तक अपना ख्याल रखें अपनों का ख्याल रखें , नमस्कार |

Trending Posts